कर्म का सिद्धांत जैसे कर्म करे जन कोई वैसे फल पता है सो ही”* – संत अश्वनी बेदी जी

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लुधिआना, 25 सितंबर —

श्री राम शरणम् , श्री राम पार्क में चल रहे श्री रामायण ज्ञान यज्ञ में संत अश्वनी बेदी जी महाराज ने कहा कि
श्री रामायण में “कर्म का सिद्धांत जैसे कर्म करे जन कोई वैसे फल पता है सो ही”—इसी अटल सत्य को सरल शब्दों में व्यक्त महाराज दशरथ अयोध्या कांड में करते है ।
‘कर्म’ शब्द का अर्थ केवल शारीरिक कार्य नहीं है, बल्कि इसमें मनसा, वाचा और कर्मणा—यानी मन से किए गए विचार, वाणी से कहे गए शब्द और शरीर से किए गए कार्य—तीनों ही शामिल हैं। हर विचार, हर शब्द, और हर क्रिया ब्रह्मांड में एक ऊर्जा तरंग छोड़ती है, जो लौटकर हमारे पास आती है। यह एक ऐसी खेती की तरह है जहाँ हम बीज बोते हैं, और उसी के अनुरूप हमें फसल मिलती है। यदि बीज सकारात्मक अच्छाई, प्रेम, ईमानदारी के होंगे, तो फल भी मीठा होगा। यदि बीज नकारात्मक बुराई, द्वेष, छल के होंगे, तो फल कड़वा होगा।

कर्म के फल मुख्यतः दो ही प्रकार के होते हैं: शुभ अच्छाऔर अशुभ बुरा।
जब कोई व्यक्ति दूसरों के प्रति दया, करुणा, ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से कार्य करता है, तो उसके खाते में पुण्य जमा होता है। इसका परिणाम सुख, शांति, संतोष और जीवन में सकारात्मकता के रूप में मिलता है। यह फल व्यक्ति को आंतरिक खुशी और संतुष्टि प्रदान करता है, जिससे उसका जीवन अधिक समृद्ध और सार्थक बनता है।

जब कोई व्यक्ति स्वार्थ, लालच, हिंसा, या अन्यायपूर्ण तरीके से कार्य करता है, तो उसके खाते में पाप जमा होता है। इसका परिणाम दुख, पीड़ा, अशांति, पछतावा और जीवन में बाधाओं के रूप में सामने आता है। यह फल तत्काल न मिलकर विलंब से भी मिल सकता है, लेकिन कर्म का लेखा-जोखा कभी चूकता नहीं।

कर्म का सिद्धांत हमें जिम्मेदारी सिखाता है। यह हमें यह बोध कराता है कि हम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं हैं। यह सिद्धांत जीवन में नैतिकता और सदाचार बनाए रखने के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा का काम करता है। यह डर से नहीं, बल्कि समझ से सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कर्मफल केवल इसी जीवन तक सीमित नहीं होता। भारतीय ग्रंथों अनुसार, यह फल अगले जन्मों तक भी चलता है, जिसे संस्कार या भाग्य के रूप में देखा जाता है। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण बात वर्तमान में है—हमारा वर्तमान कर्म ही हमारा भविष्य निर्धारित करता है।

श्री रामायण का पाठ करते यह हमें सिखाता है कि हम अपने जीवन को केवल संयोग या किस्मत के भरोसे न छोड़ें, बल्कि सचेत रूप से अच्छे कर्म करें। जैसा कि पंक्ति में कहा गया है, “जैसे कर्म करे जन कोई वैसे फल पता है सो ही,” यह हमें निरंतर याद दिलाता है कि हमें अपने विचारों, शब्दों और कार्यों के प्रति सजग रहना चाहिए। अंततः, सद्कर्म ही वह मार्ग है जो हमें सच्चा सुख, शांति और जीवन की मुक्ति दिला सकता है।
सभा में माँ रेखा बेदी, आशिमा बेदी , संयम भल्ला , राधा सिंहल ने पाठ करवाया , रजिंदर नारंग , रामेश्वर गुप्ता , राज गुप्ता , वीणा सोनी , किरण खरबंदा , शुचिता दुग्गल , सोनिया तिवारी , उमा मित्तल , सुदर्शन जैन सहित बड़ी संख्या में साधकों ने श्री रामायण जी पाठ भावना सहित किया ।

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