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मुद्दे की बात : आखिर नकली दवाएं कैसे पहचानें ?

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नामी कंपनियां अपनी दवाओं पर इस बारे में जारी करती हैं निर्देश

सीडीएससीओ यानि सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइज़ेशन ने दवाओं पर एक मासिक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें 48 ऐसी दवाएं शामिल हैं, जो आवश्यक गुणवत्ता पैमाने पर खरी नहीं उतरीं। अब बुनियादी सवाल यह है कि टैस्ट में फेल हो चुकी या नकली दवाएं आम आदमी आखिर किस तरह पहचान सकता है ?

यहां गौरतलब है कि तकरीबन आठ साल पहले ब्रांडेड कंपनियों के नाम का दुरुपयोग कर बेची जाने वाली नकली दवाओं पर रोक लगाने का मुद्दा जोरशोर से उठा था। तब भी जल्द इन रोक लगाने को इस दिशा में नामी दवा कंपनियों ने नई व्यवस्था शुरू की थी। इसमें कंपनियों ने अपने सीरप के लेबल, टेबलेट कैप्सूल के स्ट्रिप पर कोड और कंपनी का हेल्पलाइन नंबर छापना शुरू कर दिया था। इस हेल्पलाइन से रैपर अथवा शीशी पर दर्ज हेल्पलाइन नंबर पर लोग एसएमएस कर संबंधित दवा की हकीकत जान सकते हैं। इस तरह मरीज और उनके परिजन ठगी का शिकार होने से बचेंगे, बल्कि मरीजों की जान से भी खिलवाड़ नहीं हो पाएगा। बताया जाता है कि कई नामी दवा कंपनियां हर स्ट्रिप पर अलग-अलग सीरीज के कोड और मोबाइल नंबर प्रिंट कराती हैं। मरीज या उसके परिजनों को अगर किसी दवा पर शक हो तो उसे संबंधित दवा के रैपर स्ट्रिप पर दिए हेल्पलाइन नंबर पर एसएमएस करना होगा। कंपनी मोबाइल पर जानकारी भेजेगी कि वह दवा असली है या नकली। दवाई पर लिखा कोड 9901099010 नंबर पर एसएमएस करने पर दस सेकंड के अंदर आपके पास एक थैंक्यू मैसेज भी आएगा।
दवा कारोबार से जुड़े लोगों के अनुसार कई शहरों में तो नकली दवा का कारोबार धड़ल्ले से चलता है। अधिकतर नकली दवाएं बिहार और उत्तर प्रदेश से आती हैं। सालभर में सैकड़ों करोड़ रुपए से अधिक का यह कारोबार या कहें गोरखधंधा है। देखने में यह नकली दवा ब्रांडेड दवा की तरह ही होती हैं, पर यह विभिन्न तरह के चीजों से तैयार होती हैं। जिनसे मरीजों पर इनका दुष्प्रभाव पड़ता है। सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के लिए भी यह जरूरी है कि ड्रग मैन्युफैक्चरर्स से रिटेल मार्केट और मरीज के बीच एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जाए कि रोगी खुद दवाइयों की असली नकली की पहचान कर पाएं। इस क्रम में बार कोडिंग और ट्रेस एंड ट्रैक टेक्नोलॉजी उसे इस काम में मदद करेगा।
ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया काफी पहले दवाइयों की पहचान के लिए दवा निर्माता कंपनियों को बार कोड के साथ 10 से 16 अंक लिखने का निर्देश दे चुका था। बार कोड के नीचे लिखे नंबर को एसएमएस करने पर कंपनी उसका जवाब भेजेगी। जवाब में दवा का नाम, इसके निर्माण की तारीख, एक्सपायरी की तारीख मिलाए गए साल्ट की मात्रा की जानकारी के साथ लेबोरेटरी की रिपोर्ट होगी। एसएमएस से यह भी पता चलेगा कि दवाई की वास्तविक कीमत क्या है।

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