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मुद्दे की बात : हाथरस जैसे हादसे आखिर कब तक ?

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ऐसे आयोजनों की अनुमति से पहले पुख्ता सुरक्षा-बंदोबस्त की जांच जरुरी

उत्तर प्रदेश के हाथरस में मंगलवार को बड़ा हादसा हो गया। यहां फुलराई गांव में साकार हरि बाबा का सत्संग चल रहा था। सत्संग समाप्त होने के बाद यहां से जैसे भी भीड़ निकलना शुरू हुई तो भगदड़ मच गई। कार्यक्रम में शामिल होने आए 124 लोगों की इस हादसे में मौत हो गई। जबकि 150 से ज्यादा जख्मी बताए जा रहे हैं।

इसे विडंबना ही कहेंगे कि इस हादसे के बाद सबसे बड़े सूबे यूपी की सरकार और प्रशासन भी जाग गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि यह महज हादसा है साजिश, इसकी गंभीरता से जांच होगी। हादसे का कारण यानि लापरवाही बरतने वाले आयोजकों और साजिशकर्ताओं को कतई बख्शा नहीं जाएगा। खैर, यह संतोष की बात है कि खुद सीएम अगर ऐसी सोच के साथ कार्रवाई करेंगे तो फिर हाथरस जैसी त्रासदी शायद न हो। मगर सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ऐसा यूपी जैसे राज्य में पहली बार हुआ है। इसी राज्य में ही नहीं, दूसरे सूबों में धार्मिक आयोजनों, धार्मिक यात्राओं व अन्य समागमों में भगदड़ मचने या अव्यवस्था के चलते कुचलने, दम घुटने से लोगों की मौतें होती रही हैं।

फिर सरकारें उन हादसों से सबक क्यों नहीं लेती हैं। खासकर ऐसे प्रवचन समागमों में तो अपेक्षा से अधिक भीड़ जुटना आम बात है। समाज में चौतरफा दुखों से घिरे लोग, खासकर गरीब तबका ऐसे बाबाओं के प्रवचन समागमों में अपनी समस्याओं के समाधान की आस लेकर दौड़ते हुए जाता है। हाथरस हादसे में जान गंवाने वाले और जख्मी भी ज्यादातर मध्यम और निन्म वर्ग के लोग ही रहे। अगर शासन-प्रशासन इस मामले में संवेदनशीलता से काम ले तो आयोजन से पहले ही एहतियातन तमाम पहलुओं से जांच-पड़ताल के बाद ही इनकी अनुमति दी जानी चाहिए। तभी इस तरह के हादसों पर रोक लग पानी संभव होगी।

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