आजकल कोर्ट मैरिज का जमाना है इसलिए लोग धीरे-धीरे पारम्परिक विवाहों की प्रक्रिया को भूलने लगे है । पहले हिन्दू विवाह पद्यति में सप्तपदी के बिना विवाह संस्कार पूरा नहीं होता था। वर और वधु के बीच सात-पांच वचनों का एक मौखिक अनुबंध होता था। इसे ही भांवर पड़ना भी कहते थे। हिन्दू विवाह प्रथा की ही तरह लोकतंत्र में अब सप्तपदियाँ पढ़ी जाने लगीं है। सत्ता की सीता का वरण करने के लिए जो चुनाव पहले एक-दो दिन में निबट जाते थे उन्हें अब सात-सात चरणों तक खींचा जाने लगा है। सत्ताधीशों की सुविधा केलिए कुछ भी किया जा सकता है ,किया जा रहा है।
अठारहवीं लोकसभा चुनाव के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने जब मतदान के लिए 7 चरणों की घोषणा की थी उसी समय इसे लेकर सवाल किये गए थे,किन्तु केंचुआ इन सवालों के जबाबों को या तो पी गया था या फिर गोलमोल जबाब देकर उसने बचने की कोशिश की थी ,लेकिन देश की जनता हकीकत समझ चुकी थी कि जो किया जा रहा है सत्तारूढ़ दल की सुविधा को देखते हुए किया जा रहा है। बहरहाल मतदान के छह चरण पूरे हो चुके हैं ,अर्थात सात में से छह भाँवरें पड़ चुकी हैं।। सातवीं भांवर 1 जून को पड़ेगी उसके बाद 4 जून को इस रहस्य से पर्दा उठेगा की सत्ता की सीता ने किस पार्टी या गठबंधन का वरण किया और किसे ठुकराया ?
मतदान के सातवें चरण में काशी यानि बनारस की वो सीट भी है जिससे गंगापुत्र यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी खुद चुनाव लड़ते है। उनकी सीट को मतदान के अंतिम चरण में जानबूझकर रखा गया या ये महज संयोग है ,ये कहना न कठिन है और न बहुत आसान । आप जैसा चाहें वैसा समझ लें।उन्हें जीत की हैट्रिक नए कीर्तिमान कि साथ बनाना है। उनकी लोकप्रियता का असली पैमाना या मीटर काशी ही है।इस काशी में वे मुसलमान भी हैं जो ज्यादा बच्चे पैदा करने कि आरोपी भी है। वे मुसलमान भी हैं जो मंगलसूत्र छीनने कि लिए भी बदनाम किये जा चुके हैं। इसलिए ये चरण सत्ता की सीता को हासिल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस चरण में सर्वाधिक 13 सीटें अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। इन सीटों को जीते बिना भाजपा सत्ता की सीता को हासिल नहीं कर सकती।
सातवें चरण में उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर चुनाव होना है, उनमें वाराणसी की सीट भी शामिल है, जहां से नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में भी इसी चरण में चुनाव होना है। महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलेमपुर, चंदौली, मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज में भी भाजपा की अच्छी-खासी पकड़ है। भाजपा के लिए दिक्कत गाजीपुर, घोसी और बलिया की सीट पर होने वाली है। इनमें गाजीपुर और घोसी की सीट पर भाजपा चुनाव हार भी चुकी है। घोसी, बलिया और गाजीपुर की लोकसभा सीट भाजपा के लिए मुश्किल इसलिए भी मानी जा रही है क्योंकि हालिया यूपी चुनाव 2022 में इन इलाकों में आने वाली विधानसभा सीटों पर भाजपा की हालत काफी खस्ता रही थी। इन 3 लोकसभा इलाकों में 15 विधानसभा की सीटें हैं। इनमें से सिर्फ दो सीटें ही भाजपा जीत पाई थी। बाकी सभी सीटें विपक्षी दलों कांग्रेस, सपा और बसपा के पास गई थीं।
आगामी 1 जून 2024 को देश के कुल 8 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में बाकी के बचे 57 लोकसभा सीटों के लिए वोटिंग की जाएगी। इन 8 राज्यों में सात राज्य बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और एक केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ हैं।सत्तारूढ़ भाजपा ने चुनावों से ठीक पहले बिहार ,हिमाचल प्रदेश ,झारखण्ड में ऑपरेशन लोटस चलकर सत्ता हासिल करने की कोशिश की थी। भाजपा को अकेले बिआहर में कामयाबी मिल। इससे पहले महाराष्ट्र में भी आपरेशन लोटस के जरिये भाजपा सत्ता तक पहुंची ,अब यही राज्य भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। भाजपा ने अनेक मुद्दों और अवसरों पर केंद्र का साथ देने वाले ओडिशा को छेड़कर भी इस बार अपनी मुसीबतें बढ़ा ली हैं।
देश में ऐसा कोई राज्य नहीं है जहाँ इस चुनाव में भाजपा को चुनौतियों का सामना न करना पड़ रहा है । यहां तक की मप्र,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जहाँ भाजपा ने पिछले साल ही सरकारें बनाई थीं वहां भी 2019 की तरह क्लीनस्वीप करना आसान नजर नहीं आ रहा। बकौल अरविंद केजरीवाल भाजपा अब पंजाब और दिल्ली में ऑपरेशन झाड़ू चलने वाली है। इसे नाकाम करने कि लिए केजरीवाल अपने सहयोगी दलों कि साथ मोर्चे पर हैं। भाजपा ने पूरे इंतजाम किये हैं की केजरीवाल हों या हेमंत सोरेन सत्ता की नयी दुल्हनिया कि दीदार किसी भी सूरत में न कर पाएं।
इस अंतिम चरण की सबसे ज्यादा हाट सीट काशी ही ह। कहते हैं कि भाजपा ने इस बार अपने सबसे बड़े नेता को देश के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत का तोहफा देने का टारगेट सेट किया है. भाजपा ने वाराणसी सीट पर 10 लाख से भी अधिक वोट के अंतर से जीत का लक्ष्य रखा है। किसी चुनाव में सबसे अधिक वोट के अंतर से जीत का कीर्तिमान फिलहाल भाजपा के ही सीआर पाटिल के नाम दर्ज है। पाटिल 2019 के चुनाव में गुजरात की नवसारी सीट से 6 लाख 89 हजार वोट के अंतर से जीते थे। पार्टी नहीं चाहती कि चुनाव अभियान में किसी तरह का लूपहोल रह जाए। इसीलिए पूरा संगठन और सरकार इस समय काशी में मौजूद है।
इस चुनाव में लोकतंत्र की भावी तस्वीर उभरकर सामने आएगी। यदि भाजपा तीसरी बार सत्ता में आती है तो लोकतंत्र की सूरत कुछ और होगी और यदि एनडीए गठबंधन सत्ता में आता है तो तस्वीर कुछ और होगी। ये चुनाव तय करेगा कि संसद विमर्श से चलेगी या मेजें थपथपाकर ध्वनिमत से। ये चुनाव तय करेगा कि संसद के नक्कारखाने में तूतियों की आवाज भी सुनी जाएगी या उसे हमेशा के लिए दबा दिया जाएगा ? ये चुनाव तय करेंगे कि महिलाओं के गले का मंगलसूत्र बचेगा या नही ? उनकी दो में से एक भैंस बचेगी या खोल ली जाएगी? ये चुनाव तय करेगा कि देश में आरक्षण को लेकर सत्ता प्रतिष्ठान का रुख क्या होगा ? ये चुनाव तय करेगा कि नई सरकार न्यायपालिका को भी अपना पालतू तोता बनाएगी या नहीं ? यानि अनेक ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जो मतदान के इस अंतिम चरण से बाबस्ता हैं। हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव को झाड़ू-पोंछा करने वाली , वर्तन साफ़ करने वाली मशीनों की तरह ही चुनाव करने वाली ईवीएम ज्यादा प्रभावित नहीं कर पायेगी। इस बार का जनादेश निर्दोष होगा। जय सियाराम
@ राकेश अचल
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