मुद्दे की बात : अमेरिका में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ पर लगेगी पाबंदी !

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भारत का एतराज, अमेरिका अल्पसंख्यकों की आड़ में कर रहा बदनाम

अमेरिका में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानि रॉ पर पाबंदी लगाने की मांग हुई है। अमेरिका के यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम यानि यूएससीआईआरएफ़ ने साल 2025 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, रॉ पर प्रतिबंध लगाने की मांग इसी रिपोर्ट का हिस्सा है।

इस मामले को लेकर बीबीसी के साथ ही अन्य मीडिया रिपोर्ट सामने आई। उन्होंने सालाना अमेरिकी रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें दावा किया गया है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति लगातार ख़राब हो रही है। दरअसल धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हमले और भेदभाव के मामले बढ़ रहे हैं। हालांकि, भारत ने अमेरिकी रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए इसे ‘पक्षपाती और राजनीति से प्रेरित’ बताया। यूएससीआईआरएफ़, 1998 के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के ज़रिए बनाया गया एक अमेरिकी संघीय आयोग है। इसका मुख्य काम अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों पर शोध और निगरानी करना है। इस साल की रिपोर्ट पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया काफ़ी हद तक पिछले कुछ वर्षों की प्रतिक्रियाओं जैसी थी। पिछले कुछ सालों से यूएससीआईआरएफ़ लगातार भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक उत्पीड़न पर चिंता जताता रहा है और भारत हर बार इसे ख़ारिज करता आया है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि जून में लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी समेत बीजेपी नेताओं ने मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी और ग़लत सूचना का प्रसार किया।

इन बयानों के असर के बारे में दावा है कि इस तरह की बयानबाज़ी ने धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों को बढ़ावा दिया. यह चुनाव के बाद भी जारी रहा। रिपोर्ट राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अल्पसंख्यकों पर हमले का दावा भी करती है। रिपोर्ट कहती है कि जनवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक का नेतृत्व किया, जो बाबरी मस्जिद के अवशेषों पर खड़ा है। इस (मस्जिद) को 1992 में एक हिंदू भीड़ ने ध्वस्त कर दिया था। अभिषेक के बाद, छह राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले हुए। अधिकारियों ने मुस्लिम-स्वामित्व वाली संपत्ति को बुलडोज़र से गिराकर भारत के दंड संहिता की धारा 295 का भी बार-बार उल्लंघन किया। इस धारा में अवैध मानी जाने वाली मस्जिदों सहित पूजा स्थलों के विनाश या क्षति को अपराध माना जाता है।

यूएससीआईआरएफ़ की रिपोर्ट में भारत आपराधिक क़ानून और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद का भी ज़िक्र मिलता है। दावा है कि सरकार ने अपने आपराधिक संहिता को नए कानून से बदल दिया, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यक ख़तरे में आ सकते हैं। अगर उन्हें भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला माना जाता है। सीएए के बारे में लिखा गया कि मार्च में सरकार ने 2019 के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू करने के लिए नियम पेश किए, जिसमें पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश से भागकर आए गै़र-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को फ़ास्ट-ट्रैक नागरिकता प्रदान की गई। 2019 में सीएए का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए यूएपीए के तहत कई लोग हिरासत में रहे, जिनमें उमर ख़ालिद, मीरान हैदर और शरजील इमाम शामिल हैं।

यूएससीआईआरएफ़ कमिश्नर डेविड कुर्री का कहना है कि अमेरिकी सरकार को धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए वकालत करने वाले उन सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए भारतीय अधिकारियों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। जिन्हें मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया।

अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की 2025 की वार्षिक रिपोर्ट पर मीडिया के सवालों का भारतीय विदेश मंत्रालय ने जवाब दिया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हमने अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की हाल ही में जारी 2025 की वार्षिक रिपोर्ट देखी है, जो एक बार फिर पूर्वाग्रह से भरी हुई और राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित लगती है। यूएससीआईआरएफ़ बार-बार कुछ घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है और भारत के बहुसांस्कृतिक समाज को ग़लत तरीके से दर्शाने की कोशिश करता है। यह धार्मिक स्वतंत्रता की चिंता से ज़्यादा एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत एक अरब 40 करोड़ लोगों का देश है, जहां दुनिया के लगभग सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। हमें उम्मीद नहीं है कि यूएससीआईआरएफ भारत के विविधतापूर्ण और सहिष्णु समाज को सही ढंग से समझेगा या इसकी सच्चाई को मानेगा। भारत एक मज़बूत लोकतंत्र और सहिष्णुता का प्रतीक है, जिसे कमज़ोर करने की ये कोशिशें नाकाम रहेंगी। असल में, यूएससीआईआरएफ़ को ही शक के दायरे में रखा जाना चाहिए। भारत को ‘कंट्रीज़ ऑफ़ पर्टिकुलर कंसर्न’ कैटेगरी में रखा गया है। भारत के अलावा पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान, चीन, और पाकिस्तान को भी इसी कैटेगरी में रखा गया है। जबकि श्रीलंका को ‘स्पेशल वॉच लिस्ट कंट्रीज़’ में रखा गया है।

पाकिस्तान के बारे में रिपोर्ट बताती है कि 2024 में, पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति और भी ख़राब होती चली गई। रिपोर्ट के मुताबिक़, धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय-विशेष रूप से ईसाई, हिंदू और शिया और अहमदिया मुसलमान, पाकिस्तान के सख्त ईशनिंदा कानून के तहत उत्पीड़न का दंश झेल रहे हैं। जबकि इसके लिए जिम्मेदार लोगों को शायद ही कभी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा हो। अफ़ग़ानिस्तान के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान का शासन आने के बाद महिलाओं और लड़कियों की ज़िंदगी सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई है। यूएससीआईआरएफ़ ने अमेरिकी सरकार से तालिबान के ज़िम्मेदार अधिकारियों पर टारगेटेड प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है।

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