चीन का दावा, पर्यावरण पर गलत असर नहीं पड़ेगा बांध बनाने से, पड़ोसी देश चिंतित
विश्व में सबसे ज़्यादा बांध चीन ने बनाए हैं, दिसंबर, 2024 में चीन ने विश्व का सबसे बड़े महत्वाकांक्षी बांध-डैम बनाने की योजना को मंज़ूरी दी। इस बांध के ज़रिए चीन पानी से बिजली का उत्पादन बढ़ाएगा। इससे चीन के बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता घटाने के अपने प्रयासों में तेज़ी आएगी। पेचीदा इंजिनियरिंग के ज़रिए बनने वाले इस बांध को तैयार होने में कई साल लगेंगे। हालांकि इसकी जगह-विशाल आकार को लेकर चिंताएं भी खड़ी हो रही हैं।
बड़ा सवाल, चीन विश्व का सबसे बड़ा बांध क्यों बना रहा है ? वाशिंगटन डीसी स्थित स्टिमसन सेंटर में एनर्जी, वाटर-सस्टेनेबिलीटी प्रोग्राम के निदेशक ब्रायन आयलर पंद्रह साल तक चीन में रह कर काम करते हुए दुनिया भर में बांध के डिज़ाइनों का अध्ययन कर चुके हैं, उनके अनुसार यह एक सुपर डैम होगा। दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध चीन का थ्री-गॉर्जेस बांध है, जो सबसे लंबी नदी यांग्त्ज़ी पर बना है। इस नए बांध से चीन तीन गुना अधिक पनबिजली का उत्पादन कर सकेगा। अधिकांश देशों के पास इतनी बड़ी मात्रा में बिजली उत्पादन की क्षमता नहीं है। यह सुपर डैम तिब्बत के दूरस्थ इलाके में यारलुंग त्सांगपो नदी पर बनाया जाएगा। तिब्बत पर चीन ने 1950 में कब्ज़ा किया था। इस बांध को वहां बनाया जाएगा, जहां नदी का बड़ा घुमाव है। इस बांध के लिए हिमालय के पहाड़ों में लंबी सुरंगे खोद कर नदी का रुख बदला जाएगा। जब सुरंगों से बड़ी मात्रा में पानी तेज़ी से निकलेगा तो पावर जनरेटर टर्बाइन घूमेगी जिससे बिजली बनेगी। चीनी प्रशासन का दावा है कि इस बांध के बनने से पर्यावरण पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा।
एक अनुमान के अनुसार इस विशाल बांध के निर्माण में 127 अरब डॉलर का खर्च आएगा।
चिंता का एक मुद्दा यह भी है कि हिमालय क्षेत्र में अक्सर भूकंप आते रहते हैं।
जनवरी की शुरुआत में तिब्बत में एक भूकंप में कम से कम 127 लोग मारे गए और सैंकड़ों घायल हो गए थे। जिस नदी पर यह बांध बन रहा है, वह चीन से निकलने के बाद दूसरे देशों में भी बहती है। उन देशों को इस बांध से चिंता हो रही है। चीन के इस सुपर डैम या विशाल बांध के निर्माण से भारत और बांग्लादेश पर असर पड़ सकता है.
इस बांध के निचले हिस्से में भारत और चीन की सीमा है। भारत में यह नदी ब्रह्मपुत्र कहलाती है। भारत को चिंता है कि चीन इस बांध के ज़रिए नदी का पानी अपने उन क्षेत्रों की तरफ कर सकता है, जहां पानी की किल्लत है। बीबीसी व अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन इस पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। चीन इस नदी का पानी रोक कर उसे उत्तरी इलाकों की ओर कर सकता है जहां आबादी ज़्यादा है। इस वजह से भारत में सूखे की समस्या पैदा हो सकती है और ऐसा हो भी चुका है।
एक चिंता यह भी है कि अगर भारत में मानसून के मौसम में चीन इस बांध से अधिक पानी छोड़ दे तो भारतीय इलाकों में बाढ़ आ सकती है।
हालांकि चीन ने दावा किया कि इस बांध से निचले क्षेत्र के देशों पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। भारत भी एक नए हाइड्रोपावर बांध के निर्माण की योजना बना रहा है। भारत ने अपने बांध की योजना 2024 में बनाई थी। जबकि चीन ने अपने सुपर डैम की घोषणा दिसंबर 2024 में की है। नीरज सिंह व अन्य एक्सपर्टस के मुताबिक भारत के बांध से काफ़ी कम मात्रा में बिजली बनाई जाएगी और इस पर अभी विचार ही हो रहा है। दूसरी तरफ, भारत ने नदी के पानी को लेकर बांग्लादेश, भूटान व पाकिस्तान से समझौते कर रखे हैं। दूसरी तरफ चीन किसी अन्य देश से बात किए बिना ही अपना बांध बना रहा है। अगर अन्य देशों के बीच इस बारे में सहमति नहीं बन पाए तो तनाव बढ़ सकता है। जिनेवा ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट में जल कूटनीति के प्रोफ़ेसर मार्क ज़ैटून का कहना है कि पानी के बंटवारे को लेकर कई देशों के बीच संघर्ष होता है। इसकी मिसाल इथियोपिया और मिस्र के बीच दशकों से चल रहा जल विवाद है। 2011 में इथियोपिया में ग्रैंड रेनेसां इथियोपियन बांध का निर्माण शुरू हुआ था. यह अफ़्रीका का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध होगा, जिसका निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है।
अंतर्राष्ट्रीय जल कानून के सिद्धांतों के अनुसार पानी का बंटवारा ऐसे होना चाहिए, जो सभी के हित में हो। प्रोफ़ेसर मार्क ज़ैटून कहते हैं कि कई जल विवादों का कम से कम अस्थायी समाधान अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय के माध्यम से हुआ है।
चीन के लिए दूसरे क्षेत्रों की ओर पानी का रुख करना काफ़ी खर्चीला होगा। वैसे अभी किसी को नहीं पता कि इस प्रोजेक्ट का स्वरूप क्या होगा। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभालते ही अमेरिका को पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि से बाहर कर लिया है। ऐसी स्थित में चीन जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया का नेतृत्व कर सकता है।
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