मोदी के 11 साल के कार्यकाल में अपनी बहुमत वाली सरकार ही नहीं बच सकी
मणिपुर में एन.बीरेन सिंह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़े के बाद राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। यहां गौरतलब है कि मई, 2023 से राज्य में जातीय संघर्ष चल रहा है, जिसमें 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। हिंसा की वजह से मैतेई और कुकी, दोनों समुदाय के हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। इसी 9 फरवरी को बीरेन सिंह ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाक़ात कर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था। इसके बाद से ही नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति बनाने के लिए बीजेपी के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा विधायकों और राज्यपाल के साथ बैठकें कर रहे थे।
मीडिया रिपोर्ट्स में यह मुद्दा सुर्खियों में है। बीबीसी की खास रिपोर्ट और राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा दावा है कि सीएम को लेकर सहमति नहीं बनने से राज्य में यह कदम उठाया गया। मणिपुर में विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त, 2024 को पूरा हुआ था। अगला सत्र छह महीने के अंदर बुलाया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। संविधान के अनुच्छेद 174(1) के मुताबिक विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतर नहीं हो सकता है। कुल 60 मेंबरी विधानसभा में बीजेपी के पास 37 विधायक और सहयोगी दलों के 11 विधायक हैं। बावजूद इसके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया। मई, 2023 से मणिपुर के अंदर हिंसा जारी है। कई विधायक बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व से अपनी नाराजगी जता चुके हैं। समाधान ना होने की स्थिति में प्रदेश बीजेपी के अंदर ही कुर्सी की लड़ाई शुरू हो गई।
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता संभालने के बाद यह पहला मौका है, जब उन्हें अपने ही शासन वाले राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। वह भी अपने अहंकार-ज़िद के कारण, बेहतर होता, वे सुप्रीम कोर्ट की मणिपुर में कानून व्यवस्था फेल हो जाने की टिप्पणी के तत्काल बाद सीएम बदल देते। कुछ ऐसी ही बात अंग्रेज़ी अखबार ‘द हिंदू’ की डिप्टी एडिटर विजेता सिंह भी कहती हैं। उनके मुताबिक मणिपुर में बीजेपी की लीडरशिप बंटी हुई है। पार्टी में ही बीरेन सिंह को लेकर प्रो और एंटी गुट बन गए थे। विधायक दिल्ली से शिकायत कर रहे थे, लेकिन हाईकमान बीरेन सिंह को समय दे रहा था कि चीजें ठीक हो जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कुकी लोग बीरेन और उनके लोगों को नहीं चाहते, वहीं मैतई किसी कुकी नेतृत्व को नहीं देखना चाहते। बीजेपी के भी कई कुकी विधायक चुनकर आए थे। पार्टी के सामने चुनौती किसी ऐसे नेता को चुनने की थी, जो दोनों पक्षों को संभाल पाए, लेकिन किसी एक नेता पर सहमति नहीं बन पाई।
मणिपुर के राज्यपाल ने 10 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र को पहले ही अमान्य घोषित कर दिया था।
मणिपुर की राजनीति को कई दशकों से कवर करने वाले इंफाल रिव्यू ऑफ़ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स के संस्थापक संपादक प्रतीप फंजौबाम के मुताबिक 10 फरवरी से शुरू होने वाले सत्र में बीरेन सिंह के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लगाने की तैयारी हो रही थी। बीजेपी को डर था कि बीरेन सिंह की वजह से फ्लोर टेस्ट की स्थिति में उनके कई विधायक पार्टी व्हिप की अवहेलना कर सकते हैं। केंद्र में अपनी सरकार होते हुए ऐसा होना पार्टी के लिए छीछालेदर का कारण बन सकता था। अक्टूबर, 2024 में भी सत्तारूढ़ बीजेपी के 19 विधायकों ने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की थी।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री की इस राय से राजनीतिक-विशलेक्षक भी सहमत हैं। उनका मुताबिक अपनी साख बचाने को बीरेन सिंह का इस्तीफ़ा लिया गया। अगर विधानसभा सत्र शुरू होता, तो सबसे पहले विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव रखता और ऐसे में सरकार गिर जाती।
सीनियर कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कहा कि बीजेपी ने स्थिति को भांप लिया था। वो जानते थे कि उनकी सरकार गिर जाएगी। सियासी-माहिर यह भी मानते हैं कि पीएम मोदी को अमेरिका जाना था, उन्हें आशंका थी कि राष्ट्रपति ट्रंप उनसे मणिपुर के बारे पूछ सकते हैं। मणिपुर में चर्चों और ईसाइयों पर हुए हमलों को लेकर यूरोप और अमेरिका चुप बैठने वाले नहीं हैं। इसलिए भी जल्दबाजी में बीरेन सिंह का इस्तीफ़ा लिया गया। अगर समय से बीरेन सिंह को हटा दिया जाता है तो आज मणिपुर संवैधानिक संकट की दहलीज पर नहीं खड़ा होता। साल, 2022 में मणिपुर में बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई थी, 60 विधानसभा सीटों वाले इस विधानसभा में बीजेपी ने 32, कांग्रेस ने 5 और अन्य ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी। नतीजों के करीब पांच महीने बाद जनता दल यूनाइटेड के जीते हुए 6 में से 5 विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। ऐसे में मणिपुर में बीजेपी के पास अपने 37 विधायक यानि पूर्ण बहुमत है। करीब तीन साल का कार्यकाल बचा है, बावजूद इसके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ रहा।
मोदी के 11 साल के शासन में यह पहली बार है, जब पार्टी की अंदरूनी लड़ाई इस तरह से एक्सपोज हुई। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पीएम मोदी की सख्त प्रशासक वाली छवि धूमिल हुई है। डबल इंजन की सरकार के नारे की हवा निकल गई। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद ज्यादा कुछ बदलने वाला नहीं है, क्योंकि पहले भी मणिपुर में सरकार तो केंद्र से ही चल रही थी। संसद में दिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण का जिक्र भी माहिर करते हैं, जिसे लेकर विपक्ष बीजेपी पर हमलावर हो सकता है। फरवरी, 2023 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कांग्रेस पर अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि वो कौन लोग हैं, जिन्होंने अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया ? एक प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 356 का 50 बार दुरुपयोग किया और वो नाम है श्रीमती इंदिरा गांधी। विपक्षी और क्षेत्रीय दलों की सरकारों को गिरा दिया। पत्रकार
विजेता कहती हैं कि अब विपक्ष भी बीजेपी पर भी अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग का आरोप लगाएगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने की ताकत देता है। वहीं किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के असफल या कमजोर पड़ने पर राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन कर लेते हैं। राष्ट्रपति शासन लगाने को राज्यपाल, राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजते हैं। फिर राष्ट्रपति केंद्रीय कैबिनेट की सलाह के बाद इसे लागू कर देते हैं। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद भंग हो जाती है और राज्य सरकार के सभी मामले राष्ट्रपति के पास जाते हैं। ऐसी स्थिति में दो महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी होती है। राष्ट्रपति शासन को छह महीने से लेकर अधिकतम तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है। विशेष स्थितियों में इसकी सीमा और अधिक हो सकती है। देश में पहली बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साल 1951 में किया था, इसे पंजाब में लगा करीब एक साल तक जारी रखा गया था।
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