मुद्दे की बात : आप के गढ़ दिल्ली में उस पर बीजेपी कैसे पड़ी भारी ?

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आप की ईमानदारी वाली छवि को भाजपा ने रणनीतिक तरीके से किया दागदार साबित

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद सियासी-चर्चाएं जारी हैं। देश की राजधानी यानि अपने ही गढ़ में आम आदमी पार्टी को हार ही नहीं मिली, बल्कि ख़ुद पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल भी नई दिल्ली विधानसभा सीट नहीं बचा पाए। पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा से चुनाव हार गए।

यहां काबिलेजिक्र है कि केजरीवाल ने पिछले साल सितंबर महीने में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने भ्रष्टाचार के एक मामले में ज़मानत मिलने के कुछ दिन बाद ही यह फ़ैसला किया था। जब केजरीवाल जेल में थे तो विपक्षी पार्टियां उनके इस्तीफ़े की मांग कर रही थीं। तंज़ कस रही थीं कि दिल्ली की सरकार जेल से चल रही है। तब केजरीवाल ने इन मांगों को अनसुना कर दिया था। वह पिछले साल 21 मार्च को जेल गए थे और यह 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ था। तब विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि विरोधियों को निशाने पर लेने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। केजरीवाल दिल्ली की आबकारी नीति में कथित अनियमितता के मामले में छह महीने जेल में रहे थे। सीएम पद से इस्तीफा देते केजरीवाल ने कहा था कि मैंने जनता की अदालत में जाने का फ़ैसला किया है. जनता ही बताएगी कि मैं ईमानदार हूं या नहीं। अब दिल्ली की जनता ने फ़ैसला सुना दिया। यह किसी के बेईमान या ईमानदार होने से ज़्यादा यह है कि दिल्ली के अगले सीएम केजरीवाल नहीं बल्कि कोई बीजेपी से होगा। खैर, इसे लेकर बीबीसी समेत तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केजरीवाल को शायद यह अंदाज़ा नहीं था कि इस इस्तीफ़े के बाद उन्हें 2030 के अगले चुनाव तक इंतज़ार करना होगा।

दरअसल केजरीवाल ने राजनीति में दस्तक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के ज़रिए देकर अपनी पार्टी और ख़ुद के कट्टर ईमानदार होने का दावा करते रहे। ऐसे में जब भ्रष्टाचार के मामले में वह जेल गए तो यह उनकी छवि के बिल्कुल उलट था। पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार के मुताबिक केजरीवाल की भ्रष्टाचार विरोधी छवि ज़रूर कमज़ोर हुई है, लेकिन मेरे ख़्याल से यह भारत के मतदाताओं के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं रहा है। भारत में नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगना कोई नई बात नहीं है। ये बात ज़रूर है कि राजनीति में जिस छवि के साथ केजरीवाल 12 साल पहले आए थे, वो छवि कमज़ोर पड़ी है।

कई विश्लेषक मानते हैं कि  सत्ता में आने से पहले केजरीवाल कहते थे कि वह सरकारी बंगला नहीं लेंगे और अपनी छोटी गाड़ी पर ही चलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं कर पाए। वे केजरीवाल की हार सबसे बड़ी वजह यह मानते हैं कि दिल्ली के लोगों के मन में यह शंका घर कर गई थी कि आप ने जो वादा किया है, उसे डिलीवर करना मुश्किल है। वहीं, दिल्ली के आभिजात्य इलाक़ों में रहने वाले मध्य वर्ग को पहले ही लगता था कि उनके टैक्स के पैसे सब्सिडी में जा रहे हैं। इन्हें पहले भी फ्री में बस सेवा और बिजली-पानी को लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं थी। केजरीवाल पानी-बिजली और अन्य तरह की सब्सिडी की बात कर रहे थे, लेकिन यह कोई एक्सक्लूसिव नहीं था। ऐसा अब भारत की कई पार्टियां कर रही हैं। माहिरों की नजर में सब्सिडी को हटा दें तो आप की और क्या विशेषता रह जाती है ?

याद करें कि 2023 में केंद्र की मोदी सरकार ने दिल्ली सर्विस बिल पास किया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। हालांकि केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बदल दिया था। इस बिल के पास होने के बाद दिल्ली सरकार के ज़्यादातर अधिकार एलजी के पास चले गए थे। एक और बात, दिल्ली में धार्मिक और जातीय पहचान की राजनीति का ज़ोर नहीं रहता। ऐसे में केजरीवाल ने ग़रीबों के मुद्दे की राजनीति शुरू की थी, लेकिन ग़रीबों का ही भरोसा डगमगाने लगा तो आप के लिए मुश्किल स्थिति होनी ही थी।

नई दिल्ली की तिहाड़ जेल में केजरीवाल महीनों रहे और उन्हें जब ज़मानत मिली तो सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तें लगाईं। जैसे वह मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं जा सकते हैं, ऐसे में उनका इस्तीफ़ा देना लाजिमी था। हालांकि केजरीवाल ने अपने इस्तीफ़े को जनता के अप्रूवल से जोड़ दिया था।

यहां गौरतलब है कि धर्मवीर गांधी 2014 में आप के टिकट पर पंजाब से लोकसभा सांसद बने थे। केजरीवाल से मतभेद के कारण वह योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ पार्टी से बाहर हो गए थे। अब पटियाला से कांग्रेसी सांसद हैं, वह दिल्ली में आप की हार पर कहते हैं कि केजरीवाल ने जो अपनी छवि पेश की थी, उस पर खरे नहीं उतरे। केजरीवाल भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए और अभी ज़मानत पर बाहर हैं। वह अपनी जाति कई बार बता चुके व धर्मनिरपेक्षता उनके लिए कोई अहम विचारधारा नहीं है। आप के संस्थापकों में शुमार प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव व प्रो. आनंद कुमार जैसे लोग भी थे, लेकिन अब ये सारे अलग हो चुके हैं। गांधी के मुताबिक केजरीवाल ने किन लोगों को राज्यसभा भेजा, उनमें अशोक मित्तल पंजाब में लवली यूनिवर्सिटी के मालिक हैं। ज़्यादातर वैसे लोगों को सांसद बनाया है, जिनसे पैसा मिल सके। 2024 के लोकसभा चुनाव में आप ने ख़ुद को बीजेपी के विक्टिम की तरह पेश किया था, लेकिन जनता पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

आम आदमी पार्टी नवंबर, 2012 में बनी और उसे दिल्ली में सात में से एक भी लोकसभा सीट पर उसे नहीं मिली। दिल्ली की जनता 2014 से 2020 तक आम चुनाव में बीजेपी को वोट करती रही और विधानसभा में आम आदमी पार्टी को। हालांकि 2025 आते-आते यह सिलसिला भी थम गया है। अब दिल्ली की सातों लोकसभा सीट भी बीजेपी के पास और दिल्ली की सरकार भी बीजेपी के पास। बताते चलें कि केजरीवाल ने आप की बुनियाद कांग्रेस विरोधी राजनीति पर रखी थी, लेकिन एक साल बाद 2013 में उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बना ली थी। फिर 49 दिनों में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री से इस्तीफ़ा दे दिया था और इसके बाद फिर से कांग्रेस के ख़िलाफ़ मुखर हुए थे। 2024 आते-आते केजरीवाल कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन में शामिल हो गए। दिल्ली और गुजरात में आम चुनाव में दोनों पार्टियों में गठबंधन भी हुआ, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं मिला। हालांकि 2025 के विस चुनावों में कई सीटों पर कांग्रेस से गठबंधन नहीं होने का नुकसान भी आप को उठाना पड़ा है। कुल मिलाकर माहिरों की नजर में केजरीवाल मौजूदा वक्त आप की बदतर हालत के लिए खुद जिम्मेदार हैं।

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