ट्रंप के रवैये से भारत ही नहीं, कई देश होंगे प्रभावित, अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर
अमेरिका से कारोबार करने वाले देशों पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ के ऐलान के बाद दुनिया भर के शेयर बाज़ार में खलबली मची है। चीन के जवाबी टैरिफ़ ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में मुश्किलें बढ़ने की आशंका पैदा कर दी। ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ़ से अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, चीन, भारत के बाज़ारों में पसोपेश वाला माहौल है।
इसे लेकर बीबीसी समेत तमाम बड़े मीडिया हाउस की रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं।
जिनके मुताबिक अमेरिका और ब्रिटेन के शेयर बाज़ारों के सूचकांक क़रीब पांच फ़ीसदी से अधिक गिर गए। अमेरिकी बाज़ार में कोविड महामारी के बाद की यह सबसे बड़ी गिरावट है। दुनिया के सभी देशों पर 10 फ़ीसदी और बड़े ट्रेडिंग पार्टनर्स के ख़िलाफ़ अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ़ के ऐलान के बाद पूरी दुनिया के शेयर बाज़ारों में निवेशकों ने लाखों करोड़ डॉलर गंवा दिए। इसके साथ ही अमेरिकी बाज़ार में महंगाई और बेरोज़गारी का भी ख़तरा बढ़ गया है। हालांकि ट्रंप ने कहा है कि टैरिफ़ का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने देश में रोज़गार के बेहतर आंकड़ों का हवाला देते इन चिंताओं को दरकिनार कर दिया। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में आने वाले निवेशकों और यहां भारी निवेश करने वालों के लिए मेरी नीतियां कभी नहीं बदलेंगीं, ये अमीर होने का बेहतरीन समय है। दो अप्रैल को ट्रंप ने कई देशों पर लगने वाले टैरिफ़ की घोषणा की थी। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका में 1968 के बाद आयातित चीज़ों पर ये सबसे बड़ी टैक्स बढ़ोत्तरी है, इससे कारोबारी मंदा आएगी और कई देश मंदी में फंसेंगे।
सबसे बड़ा ख़तरा वैश्विक टैरिफ़ वॉर छिड़ने का है। चीन ने अमेरिका पर 34 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा इसके संकेत दे दिए हैं। चीन इससे पहले अमेरिका को अपने प्रोडक्ट निर्यात करने वाली कुछ कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुका है। इनमें रेयर अर्थ मैटेरियल का निर्यात करने वाली कुछ कंपनियां शामिल हैं। रेयर अर्थ मैटेरियल फ़ोन से कार तक की मैन्युफैक्चरिंग में काम आते हैं। चीन के जवाबी टैरिफ़ पर ट्रंप ने कहा कि चीन ने ग़लत रास्ता अख़्तियार किया, वो घबरा गया है। उसके लिए ये मुश्किल साबित होगा। हालांकि चीन के साथ ही अमेरिका के दूसरे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर यूरोपीय संघ ने भी जवाबी टैरिफ़ लगाने के संकेत दिए हैं। अमेरिकी सप्लाई चेन के लिए अहम वियतनाम जैसे देशों ने बातचीत के ज़रिए टैरिफ़ पर समझौते के संकेत दिए हैं, लेकिन अगर यूरोप और दूसरे एशियाई देशों ने भी जवाबी टैरिफ़ लगाए तो पूरी दुनिया के ट्रेड मार्केट में बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। यूरोपियन यूनियन के ट्रेड कमिश्नर मारोस सफ़्कोविक ने कहा है कि उन्होंने अमेरिकी अधिकारियों के साथ साफ़ बात की। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि कारोबारी रिश्तों को लेकर एक नए नज़रिये की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि इससे महंगाई बढ़ेगी और ग्रोथ धीमी होगी, यह कब तक बनी रहेगी, कहा नहीं सकते।
हालांकि ट्रंप ने टैरिफ़ के ऐलान के बाद पॉवेल से ब्याज़ दरों को घटाने की अपील की है। इससे पहले इनवेस्टमेंट बैंक जेपी मॉर्गन के चीफ़ इकोनॉमिस्ट ब्रूस केसमैन ने कहा कि इस साल के अंत तक दुनिया में मंदी आने की 60 फ़ीसदी आशंका है। इससे पहले बैंक ने 12 मार्च को कहा था कि मंदी की आशंका 40 फ़ीसदी तक है। बीबीसी के इकोनॉमिक्स एडिटर फ़ैसल इस्लाम के मुताबिक अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए पिछले कुछ दशकों से चला आ रहा युग अब ख़त्म होने वाला है। टैरिफ़ की बढ़ी हुई दरें निश्चित तौर पर महंगाई बढ़ाएंगी। अमेरिकी उपभोक्ता लंबे समय से विदेश से आने वाले सस्ते सामान का लाभ उठाते रहे हैं। हालांकि इसकी क़ीमत उन्हें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की नौकरियों से हाथ धोकर चुकानी पड़ी है। अब अमेरिका चाहता है कि उसके यहां मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े रोज़गार बढ़ें, लेकिन देखना ये होगा कि बदले हालात में इनका क्या होगा। ट्रंप के नए टैरिफ़ के ऐलान के साथ एपल और नाइकी जैसी कंज्यूमर कंपनियों के शेयरों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई। दोनों कंपनियां अपनी सप्लाई के लिए एशियाई देशों पर काफ़ी निर्भर हैं। ये सिर्फ कंज्यूमर कंपनियां ही नहीं, अब हेल्थकेयर और यूटिलिटीज़ कंपनियां भी इससे प्रभावित होती दिख रही हैं।
अमेरिका में होराइजन इनवेस्टमेंट्स के रिसर्च एंड क्वांटिटेटिव स्ट्रेटेजीज़ के हेड माइक डिकसन ने बीबीसी से कहा कि माहौल काफी ख़राब है। सबसे बड़ी चिंता चीन के जवाबी टैरिफ़ को लेकर है। अमेरिका के न्यू जर्सी में अप्लायंस स्टोर चलाने वाले पैट मस्करीटोलो ने कहा नए टैरिफ़ के बाद उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ सकती है, वो पिछले साल से ही इस कारोबार हैं। उन्होंने ग्राहकों से कहा है कि वो जितनी जल्दी हो सके, ख़रीदारी कर लें, वरना रेफ़्रिजरेटर, एसी जैसे सामानों की क़ीमत 30 से 40 फ़ीसदी तक बढ़ जाएगी।
ट्रंप ने बारंबार भारत को ‘टैरिफ़ किंग’ कहा है। जाने-माने अमेरिकी अर्थशास्त्री लॉरेंस एच. समर्स ने अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट पर चिंता ज़ाहिर करते कहा कि बाज़ार में गिरावट किसी बैंक के फ़ेल होने, महामारी, तूफ़ान या किसी देश की किसी कारस्तानी की वजह से नहीं आई। ये ट्रंप की ऐसी नीतियों का नतीजा है, जिन पर उन्हें गर्व है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, यह बेहद ख़तरनाक है।
इसे लेकर बीबीसी के डिप्टी इकोनॉमिक्स एडिटर दर्शिनी डेविड के मुताबिक नए टैरिफ़ से वियतनाम और कंबोडिया जैसे देशों को सबसे ज़्यादा नुक़सान होगा। जो अमेरिकी सप्लाई चेन का अहम हिस्सा रहे और हाल के दिनों में अमेरिका को निर्यात के सहारे जिनकी समृद्धि बढ़ी है। ट्रंप के टैरिफ़ के बाद भारत के भी कुछ सेक्टरों को बड़े नुक़सान की आशंका है। विश्लेषकों के मुताबिक़, इससे भारत के स्मार्टफ़ोन मार्केट पर असर पड़ सकता है। एप्पल के भारत में आईफ़ोन असेंबलिंग प्लांट लगाने के बाद इसका स्मार्टफ़ोन निर्यात बढ़ कर 6 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। हालांकि नए टैरिफ़ से इसे नुक़सान पहुंच सकता है, क्योंकि आईफ़ोन में लगने वाले ज़्यादातर पुर्जे आयातित हैं। अमेरिका को निर्यात होने वाले आइटमों में जेम्स एंड ज्वैलरी की हिस्सेदारी 30 फ़ीसदी है, ऊंचे टैरिफ़ से इसका निर्यात भी प्रभावित होगा। भारत का टेक्सटाइल निर्यात पहले ही चीन और बांग्लादेश से भारी प्रतिस्पर्द्धा झेल रहा है। टैरिफ़ बढ़ने से इसका निर्यात और महंगा हो जाएगा। हालांकि नए टैरिफ़ से भारत के फ़ार्मा सेक्टर को बाहर रखा गया है, लेकिन आगे वो कुछ दवाओं पर टैरिफ़ का ऐलान कर सकते हैं। भारत के स्टील और एल्यूमीनियम प्रोडक्ट पर अमेरिका पहले ही 25 फ़ीसदी का टैरिफ़ लगा चुका है।
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