मुद्दे की बात : रूस-अमेरिका की नज़दीकी भारत को कितनी फ़ायदेमंद ?

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भारत की विदेश-नीति, ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार अमेरिका ने रूस के पक्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ में मतदान किया है। यह प्रस्ताव यूक्रेन में युद्ध की समाप्ति के लिए था। यूएन ने रूस को यूक्रेनी क्षेत्र से तत्काल हटाने के समर्थन वाले एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। जिके पक्ष में 93 और विरोध में 18 वोट पड़े, हालांकि 65 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। प्रस्ताव का समर्थन करने वालों में जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे प्रमुख यूरोपीय देश शामिल हैं। इसे लेकर तमाम मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं। बीबीसी की खास रपट के मुताबिक रूस समेत अमेरिका, इसराइल और हंगरी ने इस प्रस्ताव के खिलाफ़ वोट किया, जो यूक्रेन-रूस युद्ध के तीन साल पूरा होने पर लाया गया था।

भारत और चीन ने संयुक्त राष्ट्र में हुए इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हिस्सा नहीं लिया। भारत में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के अनुसार भारत की नीति सुसंगत तरीके से एक समान है। भारत चाहता है कि यूक्रेन युद्ध का हल बातचीत के ज़रिए ही निकाला जाए। कभी यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के ख़िलाफ़ बेहद कड़ा रुख़ अपनाने वाला अमेरिका लगातार रूस के क़रीब जा रहा है। जब से डोनाल्ड ट्रंप दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बने, वह रूस के समर्थक बन यूक्रेन के ख़िलाफ़ बयान दे रहे हैं। कभी रूस के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र में पेश प्रस्ताव पर वोटिंग से अनुपस्थित रहने के कारण अमेरिका ने भारत की निंदा की थी। अब वो ख़ुद ही रूस के समर्थन में वोटिंग कर रहा है। अमेरिका के इस नए कूटनीतिक क़दम से दक्षिण एशिया खासकर भारत पर भी असर पड़ सकता है।

सऊदी अरब में यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका-रूस के बीच एक दौर की बातचीत हो चुकी है। ट्रंप ने 25 फ़रवरी से दूसरे दौर की बातचीत का ऐलान किया है। हालांकि पहले दौर की बातचीत में यूक्रेन और यूरोप की तरफ से कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ था। तब यूक्रेन के यूरोपीय सहयोगियों और ख़ुद यूक्रेन ने इस बातचीत की आलोचना कर कहा था कि युद्ध को लेकर कोई भी बातचीत बिना यूक्रेन और यूरोप की भागीदारी के नहीं हो सकती। यूएन में अमेरिकी राजदूत डोरोथी शे ने रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर कहा कि कई प्रस्ताव पास किए गए, लेकिन युद्ध को खत्म नहीं करा पाए हैं। युद्ध कई सालों से चल रहा है। रूस और यूक्रेन के लोग इससे पीड़ित हैं। अमेरिका के रूस के साथ आने से नए रिश्ते बन रहे हैं। चीन हमेशा से रूस के साथ था, फिर भी उसने रूस के पक्ष में मतदान करने से दूरी बनाई। ऐसे में अमेरिका का रूस के पक्ष में वोटिंग करना अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन पर असर डाल सकता है।

यूक्रेन की उप विदेश मंत्री मारियाना बेट्सा ने कहा कि उनका देश अपने रक्षा के अधिकार का उपयोग कर रहा है। रूस का हमला संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का भी उल्लघंन है। विशेषज्ञों के मुताबिक़ भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते मज़बूत हो रहे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़रवरी के अमेरिका दौरे के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक और सामरिक रिश्तों में मज़बूती आने की संभावना है। दोनों देशों के बीच 2030 तक व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने की सहमति बनी है। हालांकि 2024 तक दोनों देशों के बीच महज 129 अरब डॉलर का कारोबार था। पीआईबी पर जारी भारत और अमेरिका के संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने तय किया है कि अमेरिका अंतर-संचालन और रक्षा औद्योगिक सहयोग को मज़बूत करने के लिए भारत के साथ रक्षा बिक्री और सह-उत्पादन का विस्तार करेगा। वहीं रूस के भारत के साथ सामरिक और व्यापारिक रिश्ते पुराने हैं। पीआईबी पर जारी दोनों देशों के बीच 9 जुलाई 2024 के संयुक्त बयान में कहा गया था कि दोनों पक्षों ने मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम के तहत रूसी मूल के हथियारों और रक्षा उपकरणों के रखरखाव के लिए स्पेयर पार्ट्स, घटकों, समुच्चयों और अन्य उत्पादों के भारत में संयुक्त विनिर्माण को प्रोत्साहित करने पर सहमति व्यक्त की।

भारत की नीति रही है कि रूस-यूक्रेन के युद्ध में किसी का पक्ष ना लेना। इस नीति के बारे में विदेश मामलों के जानकार रोविंदर सचदेव का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल मे इस मुद्दे को अहमियत दी है। भारत के लिए ये एक बड़ी राजनयिक उपलब्धि होगी कि यूरोपीय देशों के तनाव में उसकी शांति सेना वहां तैनात हो।वहीं रूस अमेरिका की दोस्ती से रूस का चीन की तरफ़ झुकाव कम होगा जो भारत के लिए फायदेमंद साबित होगा। भारत अमेरिका की कूटनीति पर पैनी नज़र रखेगा। हालांकि सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि भारत किसी भी सूरत में रूस को नहीं छोड़ सकता था,  भारत ने अतीत में अमेरिका का ख़ूब अनुभव किया है। अफ़ग़ानिस्तान को अमेरिका ने युद्धग्रस्त इलाक़ा बनाकर छोड़ दिया। इराक़ में क्या किया सबको पता है, सीरिया में कुर्दों के साथ क्या किया, पूरी दुनिया ने देखा. भारत ने ख़ुद भी पाकिस्तान के साथ जंग में अमेरिका का रुख़ देखा है। ऐसे में पश्चिम के देश कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत रूस को छोड़ अमेरिका पर भरोसा करने लगे ? भारत ने ईरान के मामले में ट्रंप की बात इसलिए मान ली थी कि बड़े पैमाने पर हित प्रभावित नहीं हो रहे थे। तेल ख़रीदने की ही बात थी और तेल बेचने वाले देशों की कमी नहीं है।

भारत और रूस के संबंध ऐतिहासिक रहे हैं। जब भारत में ब्रिटिश हुक़ूमत थी, तब ही सोवियत यूनियन ने 1900 में पहला वाणिज्यिक दूतावास खोला था, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्माहट शीत युद्ध के दौरान आई।

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