मुद्दे की बात : चीन के साथ ट्रंप के ‘टैरिफ़ वॉर’ का फ़ायदा क्या भारत उठा सकता है ?

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माहिरों की राय, भारत को विदेश से व्यापार मामले में उठाने होंगे अहम कदम

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पदभार संभालने के बाद से ही जिन क़दमों की शुरुआत की है या जिन फ़ैसलों के संकेत दिए हैं, उससे दुनिया में अफरातफरी मची है। उनसे ऐसा लगता है कि वैश्विक नीतियों को लेकर एक प्रकार की अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल बन गया है। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि ट्रंप की चुनावी जीत के साथ ही विश्व में इस तरह की आशंका की चर्चा शुरू हो गई थी।

दुनियाभर के मीडिया की निगाहें इस तरफ लगी हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक अब राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ़ लगाने के निर्णय ने पूरी दुनिया को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। पहले उन्होंने दुनिया के लगभग हर देश से आने वाले उत्पादों पर 10 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया। फिर विभिन्न देशों के लिए इसे अलग-अलग रूप में इसे संशोधित किया। उसके बाद चीन को छोड़ बाकी के लिए 90 दिनों की अस्थायी राहत की घोषणा की। चीन के लिए यह टैरिफ़ अब भी प्रभावी है। जबकि चीन भी इसका कड़ा जवाब दे रहा है। वहीं, बाक़ी देशों को भी दी गई 90 दिन की यह राहत स्थायी नहीं है। इसका मतलब है कि उन्हें इस दौरान अमेरिका के साथ अपने हितों को लेकर एक बेहतर समझौते की दिशा में पहल करनी होगी। अब सवाल यह है कि ट्रंप की नीतियों से भारत के सामने कौन सी चुनौतियां उभरेंगी, क्या इनमें  कुछ अवसर भी छिपे हैं ? अमेरिका और चीन के बीच जारी इस व्यापारिक तनातनी के क्या मायने हैं और भारत को इसे किस नज़रिए से देखना चाहिए ?

इसके साथ ही यह जानना भी ज़रूरी है कि यूरोपीय देशों में इन क़दमों को लेकर किस तरह की चिंताएं पैदा हो रही हैं। सवाल, अमेरिका-चीन के बीच भारत कैसे संतुलन बनाएगा और 90 दिन बाद के हालात क्या इशारा करते हैं ? बीबीसी के कार्यक्रम ‘द लेंस’ में भारत के पूर्व राजनयिक प्रभु दयाल, विदेश नीति-कूटनीतिक मामलों से संबंधित वरिष्ठ पत्रकार नयनिमा बासु व लंदन से वरिष्ठ पत्रकार शिवकांत शामिल हुए। उनके मुताबिक अमेरिका व चीन लगातार एक-दूसरे पर टैरिफ़ को लेकर पलटवार कर रहे हैं। नतीजतन दोनों देशों ने एक-दूसरे पर 100 फ़ीसदी से भी अधिक टैरिफ़ लगाए।अमेरिका ने चीन पर टैरिफ़ बढ़ा 145% किया, जबकि अन्य देशों को 90 दिनों की अस्थायी छूट देते हुए रेसिप्रोकल टैरिफ़ को घट समान रूप से 10 फ़ीसदी कर दिया। ऐसे में सवाल है कि इन 90 दिनों में भारत टैरिफ़ को लेकर क्या क़दम उठा सकता है ?

भारत के पूर्व राजनयिक प्रभु दयाल के मुताबिक भारत नहीं चाहता कि आपसी तनाव बढ़े। यही वजह है कि उसने अमेरिका से व्यापारिक रूपरेखा तय करने को बातचीत की शुरुआत की है। भारत किसी व्यापारिक युद्ध में शामिल होने के बजाए ऐसा माहौल चाहता है जिससे दोनों पक्षों को लाभ हो। भारत जैसे को तैसा नीति से दूरी बनाना चाहता है, ताकि माहौल ना बिगड़े नहीं। अमेरिका में आर्थिक सुस्ती देखते हुए ट्रंप के सलाहकारों की सलाह है कि 90 दिनों की राहत दी जाए, ताकि अन्य देशों से बातचीत कर समझौते हो सकें। चीन और अमेरिका को यह एहसास है कि बढ़ता तनाव उनके हित में नहीं है। भारत-अमेरिका के रिश्ता अनोखे हैं, फ़िलहाल 90 दिनों की रोक के ऐलान का कोई बड़ा मतलब नहीं है। ज़रूरी है कि यह व्यापार समझौता आम लोगों के बीच चर्चा का विषय बने, इस पर हस्ताक्षर सोच-समझकर हो, ना कि राष्ट्रपति ट्रंप के दबाव में आकर करें। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। बावजूद इसके हालिया संरक्षणवादी व्यापार नीतियों ने इसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे कर दिया है। बड़ा सवाल, अगर ट्रंप की नीतियों से मंदी आती है तो इसका भारत पर कितना असर पड़ेगा ? माहिरों के मुताबिक अगर मंदी आती है तो वह सभी देशों के लिए नुक़सानदेह होती है।  भारत को भी अपने उत्पाद अन्य देशों में बेचने होते हैं। अगर वैश्विक मंदी से मांग घटती है तो भारत को भी नुक़सान उठाना पड़ेगा।

चीन अभी  आर्थिक रूप से नाज़ुक स्थिति में है, अगर इस व्यापारिक संघर्ष में अमेरिका चीन को और कमज़ोर कर देता है, तो यह भारत के लिए लाभदायक हो सकता है। हालांकि भारत, चीन के सस्ते सामान के आयात को नहीं रोक पा रहा है तो हमें अपनी रक्षा प्रणाली मज़बूत करनी होगी। अभी चीन में भारत के मुकाबले मज़दूरी-कीमत ज़्यादा हो चुकी है।  भारत में कुशल कारीगर मौजूद हैं। ऐसे में अगर हम चीन से डरते हैं तो फिर हम वैश्विक स्तर पर कैसे प्रतिस्पर्धा करेंगे ? इतिहास गवाह है कि जब भी किसी देश ने व्यापार में संरक्षणवादी दीवारें खड़ी करनी चाही, तब वहां मंदी का दौर आया। इस बार स्थिति और भी ज़्यादा गंभीर है, क्योंकि जब टैरिफ़ लगाए जाते हैं और अगर यह स्पष्ट हो कि वे कितने समय तक लागू रहेंगे तो व्यापारी अपनी रणनीति तय कर सकते हैं। अब असमंजस, एक महीने बाद क्या होगा, ट्रंप के बाद अगला राष्ट्रपति क्या नीति अपनाएगा तो अस्थिरता और बढ़ेगी। इसलिए मंदी का ख़तरा ना केवल भारत, बल्कि यूरोप और अमेरिका पर भी मंडरा रहा है। अगर 90 दिनों के बाद भारत-अमेरिका में कोई सहमति नहीं बनी तो इसका असर भी दिखेगा। चीन लगातार ट्रंप के टैरिफ़ का जवाब दे रहा है। अब सवाल, भारत ट्टैरिफ़ का जवाब कैसे देगा। दरअसल ट्रंप दुनियाभर पर धौंस जमा रहे हैं। ऐसे में सभी देशों को मज़बूती से जवाब देना चाहिए।

अब समय आ गया कि भारत कोई ठोस व्यापार समझौता कर ले। साथ ही ज़रूरी है कि यह ना लगे कि भारत किसी दबाव में झुका है। जो भी बातचीत हो, वह दोनों पक्षों के लिए लाभकारी हो। सब जानते हैं कि ट्रंप प्रशासन से बातचीत करना आसान नहीं है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका गए थे तो ट्रंप ने उन्हें अपना ‘क़रीबी दोस्त’ कहा था। हालांकि कुछ ही दिनों में उन्होंने 26 फ़ीसदी रेसिप्रोकल टैरिफ़ की घोषणा कर दी। यह साफ़ है कि अमेरिका के लिए दोस्ती एकतरफ़ा होती है और नीति वही अपनाई जाती है जो वे ख़ुद तय करते हैं। हालांकि अमेरिका-चीन में बढ़ती तनातनी को कई विशेषज्ञ भारत के लिए लाभकारी मान रहे हैं। उनके मुताबिक इस संघर्ष से भारत के लिए वैश्विक बाज़ार में पैर जमाने का एक बेहतर मौका है। जैसे-जैसे अमेरिका चीन से दूरी बनाएगा, भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के नए रास्ते खुलेंगे। यह भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है, क्योंकि इससे अन्य देशों के साथ व्यापार के नए रास्ते खुल सकते हैं। एक समय था जब भारत वस्त्र उद्योग में एक बड़ी ताक़त था, लेकिन अब यह क्षेत्र बांग्लादेश-श्रीलंका में चला गया। मसलन, पिछले क्रिसमस में लंदन में कपड़ा बाज़ार में  ‘मेड इन इंडिया’ के टैग नहीं मिले। सारे कपड़े बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका-पाकिस्तान में बने थे। यह स्थिति चिंताजनक है और इस पर भारत सरकार-उद्योग जगत को गंभीरता से विचार करना होगा। अगर ऐसा नहीं किया तो भारत, यूरोप ही नहीं, किसी भी देश से प्रभावी व्यापार समझौता नहीं कर पाएगा।

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