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मुद्दे की बात : तीसरी बार कितनी मजबूत होगी मोदी सरकार

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अबकी बार मोदी सरकार रहेगी लाचार

फिलहाल तक इस बात में कोई शक नहीं कि रविवार 9 जून की शाम नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर कुछ रिकॉर्ड भी कायम करेंगे। एनडीए, भाजपा और मोदी प्रशंसक बेशक अपने-अपने तरीके से उन रिकॉर्ड को बाखूबी परिभाषित भी करेंगे। हालांकि इस गुणगान के बीच जनता के बीच सरसरी तौर पर यही संदेश जाएगा, अबकी बार, तीसरी बार मोदी सरकार। हालांकि मजबूत सरकार के नजरिए से आंकलन किया जाए तो तमाम बड़ी आशंकाएं तीसरी मोदी सरकार के गठन से पहले ही सिर उठाती नजर आ रही हैं।

मसलन, इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ‘अबकी बार, 400 पार’ का जोरदार नारा उछालकर भी बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई। नतीजतन सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों के सहारे की जरूरत पड़ गई। इनमें सबसे प्रमुख सहयोगी 16 सीटों वाली चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी है। दूसरे नंबर पर 12 सीटों वाली नीतीश कुमार की जेडीयू है। जबकि 7 सीटों वाली शिवसेना और 5 सीटों वाली एलजेपी प्रमुख सहयोगियों में शामिल हैं। वैसे तो बहुमत का आंकड़ा इन सहयोगियों ने ही पार करा दिया। इनके अलावा गठबंधन का धर्म निभाने के लिए बीजेपी को एनडीए के सहयोगी दलों आरएलडी और दूसरे छोटे दलों को भी सरकार में हिस्सेदारी देनी पड़ सकती है।

फिलहाल तक जो खबरें छनकर सामने आई हैं, उनके मुताबिक मुख्य ‘संकटमोचक’ दलों टीडीपी और जेडीयू की राजनीतिक-महत्वकांक्षा कोई कम नहीं है। उनको कम से कम 10 मंत्रालय चाहिएं, वो भी दमदार विभाग उनकी मांग में शामिल हैं। इसी तरह चिराग पासवान की एलजेपी और शिंदे-गुट वाली शिवसेना भी कम से कम दो-दो मंत्रालयों से कम में संतुष्ट नहीं होंगी। इसके अलावा आरएलडी, अपना दल जैसी अन्य छोटी पार्टियां भी एक-आध मंत्री पद की उम्मीदें पाले हुए हैं। सियासी-जानकारों की नजर में बीजेपी को तीसरी सरकार में 15 मंत्रालयों का ‘बलिदान’ सहयोगियों की खातिर करना पड़ सकता है। ऐसे में अपने महत्वकांक्षी भाजपा सांसदों को इस ‘एडजस्टमेंट’ के लिए बतौर पीएम मोदी क्या आसानी से राजी कर पाएंगे, यह यक्ष-प्रश्न हो सकता है।

अब पिछली दो बार रही मोदी सरकारों पर सरसरी नजर डालें तो परिस्थितियां काफी अलग थीं। पहली 2014 वाली मोदी सरकार में बीजेपी 282 के आंकडे़ के साथ बहुमत में थी। तब सहयोगी दलों के हाथ महज 5 मंत्री पद ही लगे थे। हालांकि 2019 में दूसरी मोदी सरकार में हालात ज्यादा मजबूत हुए और 303 का आंकड़ा होने के चलते 72 सीटों वाले सहयोगी दलों को महज दो मंत्री पद ही दिए गए थे। जानकारों की नजर में पिछली बार अपनी कम हिस्सेदारी को देखते हुए इस बार सहयोगी दल समर्थन के समय ही चौकन्ने रहे हैं। अंदरखाते उन्होंने मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर पुख्ता बातचीत पहले ही कर ली है। अगर भाजपा मंत्रालयों के बंटवारे के वक्त सहयोगियों को उनकी मांगों के मुताबिक हिस्सा नहीं देगी तो नाराजगी शुरुआती दौर में ही पनपने की आशंका रहेगी।

यह भी मुमकिन है कि शुरुआत  में सब-कुछ सही चले, लेकिन सहयोगियों की इच्छाएं आगे चलकर और बलवती हो सकती हैं। विपक्ष भी सत्ता पक्ष की संख्या बल वाली कमजोरी से बेहतर तरीके से वाकिफ होने की वजह से मूकदर्शक तो नहीं रहेगा। सियासी-परंपरा के मुताबिक विपक्ष बना बनाया खेल बिगाड़ने के लिए बीच-बीच में सत्ता में सहयोगी दलों

को जरुर टटोलने की कोशिश करेगा। अगर सहयोगी जरा भी नजरंदाज किए गए तो वे विपक्षी इंडी-ब्लॉक में जाने की गीदड़-भभकी दे सकते हैं। यहां सबसे गौरतलब पहलू है कि राजनीतिक-हल्कों में ‘पलटीमार’ मशहूर हो चुके बिहार के मौजूदा सीएम नीतीश कुमार कब क्या कदम उठा लें, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता। कुल मिलाकर, तीसरी बार मोदी सरकार में यही बुनियादी फर्क होगा कि खुद पीएम मोदी पांच साल सफलतापूर्वक राज तो कर सकते हैं, लेकिन असुरक्षा की भावना के साथ। सरकार बेहतर तरीके से चलाने पर उनका जितना ध्यान रहेगा, उससे ज्यादा सहयोगी दलों के ‘सम्मान’ के साथ उनकी ‘निगरानी’ पर ऊर्जा खर्च करनी पड़ेगी। अगर सरकार  कमजोर पड़ेगी तो सेहतमंद लोकतंत्र के लिए भी यह बेहतर स्थिति नहीं होगी। जिसका खमियाजा भी जनता ही भुगतेगी। दरअसल सहयोगी दलों के राजनीतिक-स्वार्थों की पूर्ति के लिए मजबूरन केंद्र सरकार जनहितकारी योजनाओं का लाभ समान भाव से सभी राज्यों तक नहीं पहुंचा सकेगी। इस बाबत दोनों प्रमुख सहयोगी दलों के मुखिया नायडु और नीतीश अपनी महत्वकांक्षाएं पहले ही जाहिर कर चुके कि उनको अपने-अपने सूबों में राजनीति चमकाने के लिए कौन से मंत्रालय और क्या स्पेशल पैकेज जरुर करके चाहिएं।

 

 

 

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