लुधियाना 26 मार्च : दयानंद अस्पताल की मैनेजर यूनिवर्सिटी में चुपचाप लिए गए 11 सदस्यों के बाद जहां शहर में चर्चा छड़ी हुई है वहीं पर अस्पताल से जुड़े पुराने सदस्यों और उनके परिवारों में भी गहन चर्चा का दौर है इससे पहले अस्पताल की प्रबंधक कमेटी में सर्व समिति से सदस्यों का चयन किया जाता रहा है
पूर्व प्रधान बने रहे एक मिसाल वर्तमान में बदला स्वरूप
पूर्व प्रधान बृजमोहन लाल मुंजाल के समय में सभी के हितों का ध्यान रखा जाता रहा है परंतु वर्तमान में अस्पताल की मैनेजिंग सोसाइटी में मुंजाल परिवार अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है अगर कोई बागी तेवर दिखता है तो वह ज्यादा समय सोसाइटी में नहीं रहता अगर रहता है तो उसे किनारे कर दिया जाता है यह सिलसिला लगभग एक दशक से पहले भी सामने आया जब अस्पताल की मैनेजिंग समिति के सचिव ने बागी तेवर दिखाये और मैनेजिंग समिति के सर्व सम्मति के चुनावो की बजाए बजाए मतदान से चुनाव कराने की बात कही जिसका समर्थन कई प्रमुख घराने के सदस्यों ने भी किया और अस्पताल में एक अलग वर्ग सामने आने लगा परंतु चुनावो से पहले ही मुंजाल परिवार ने अन्य सदस्यों की मेजोरिटी को अपने साथ मिला लिया और पूर्व प्रधान की एक अपील पर सभी सदस्य जो पहले पूर्व सचिव का समर्थन कर रहे थे उसी के विपरीत खड़े हो गए और सचिव के रूप में काम कर रहे पदाधिकारी को उसके पद से हटा दिया अस्पताल के सूत्र बताते हैं कि अस्पताल की प्रगति में दो समान नाम वाले व्यक्तियों ने अहम रोल अदा किया है और विकास के नए आयाम स्थापित किये
आर्य प्रतिनिधि सभा के नामांकित सदस्यों पर भी अनिश्चिता की तलवार लटकी
अस्पताल की मैनेजिंग सोसाइटी में पिछले कुछ वर्षों में पपलू की तरह आए अब आर्य प्रतिनिधि सभा के 11 सदस्यों का भविष्य भी अब अधर में लटक गया है जिसका कारण दिल्ली की आर्य प्रतिनिधि सभा ने अस्पताल की मैनेजिंग सोसाइटी में अपना दावा पेश कर दिया बताया जाता है किस समिति में उनके सदस्य भी शामिल किए जाएं उल्लेखनीय है कि वर्तमान में आर्य प्रतिनिधि सभा के 11 सदस्य अस्पताल की मैनेजिंग सोसाइटी में शामिल है जिनके नाम अभी भी अस्पताल की वेब साइट पर दिखाएं जा रहे हैं इनमें से वरिष्ठ प्रधान के पद पर सुदर्शन शर्मा जबकि सदस्यों में प्रेम भारद्वाज, अशोक परुथी, नरेश कुमार शर्मा, सुधीर शर्मा, श्रीमती राजेश शर्मा, विजय साथी, विशाल पारुथी एसएम शर्मा तथा श्रीमती सविता उप्पल शामिल है परंतु जैसे ही दिल्ली किया रे प्रतिनिधि सभा ने अपना दावा ठोका है तब से पंजाब में शामिल किए गए सदस्यों की सदस्यता पर तलवार लटक गई है
कैसे बना दयानंद अस्पताल मेडिकल इंस्टीट्यूशन
आज के दयानंद अस्पताल को दशकों पहले लुधियाना मेडिकल स्कूल के नाम से शुरू किया गया था जानकार बताते हैं कि सन 1938 में सावन बाजार में एक छोटी सी जगह पर इसकी शुरुआत की गई बाद में इसका नया नामकरण करते हुए इसे दयानंद मेडिकल स्कूल के नाम से शुरू किया गया और पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर से पंजीकरण कराया गया इसके फाउंडर सदस्यों में बनारसी दास सोनी जो आजाद हिंद फौज में कैप्टन के पद पर भी कार्यरत रहे इसके अलावा डॉक्टर रामस्वरूप व अन्य लोगों ने अस्पताल की स्थापना में अपना अहम रोल अदा किया और माइनॉरिटी स्टेटस के आधार पर सरकार से इसका पंजीकरण करने को कहा जिसे मान लिया गया बाद में दयानंद मेडिकल स्कूल को सिविल लाइन में शिफ्ट कर दिया गया और इसके विस्तार को देखते हुए अस्पताल के लिए अलग से कमेटी बनाने का निर्णय किया गया और यह फैसला किया गया की कमेटी में आर्य प्रतिनिधि सभा के 11 सदस्य शामिल होंगे परंतु अस्पताल के विस्तार के शुरू होने के बाद 1964 और 1966 में लिए गए फैसलों को दरकिनार कर दिया गया परंतु कई वर्ष बीतने के बाद सुदर्शन शर्मा के प्रधान बनने के बाद आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब ने इसमें अपना दावा ठोक दिया और अस्पताल की मैनेजिंग सोसाइटी पर अपनी सदस्यता को लेकर दबाव बनाने लगे जिसे बाद में गहरे दबाव में आकर मान लिया गया और बिना सक्रिय रूप से अस्पताल के कामकाज में भाग लेने के आर्य प्रतिनिधि सभा ने अपना झंडा गाढ़ दिया जिसे लेकर आर्य प्रतिनिधि सभा के अन्य राज्यों के पदाधिकारी में कशमकश रहने लगी परंतु अब आर्य प्रतिनिधि सभा की आपसी झगड़ों को लेकर अस्पताल की मैनेजिंग समिति के सदस्यों में शांति का अनुभव किया जा रहा है क्योंकि उनका मानना है कि अब सभा के आपकी फैसले में बरसों लग जाएंगे
सोसाइटी बढ़ाने लगी अपने सदस्यों की संख्या
आर्य प्रतिनिधि सभा के 11 सदस्यों के निकल जाने तथा पूर्व में कई सदस्यों की मौत होने के पश्चात खाली पड़े पदों को भरने के लिए यह चुपचाप नए सदस्य बनने की प्रक्रिया शुरू की गई ताकि किसी को खबर ना हो और बिना किसी विरोध के यह प्रक्रिया संपन्न कर दी जाए और ऐसा हुआ ही चुपचाप किए गए सदस्यों की नियुक्ति के बारे में यह भी कहा जाता है कि नए सदस्यों की नियुक्ति से समाज में यह भी संदेश न जाए की आर्य प्रतिनिधि सभा के सदस्यों की जगह पर नए सदस्य नियुक्त किये जा रहे हैं क्योंकि आप से झगड़े की वजह से पहले से मनोनीत किए गए 11 सदस्य अब अस्पताल के दरवाजे तक पहुंच गए हैं कई लोग यह भी बताते हैं कि आर्य शिक्षा मंडल के प्रधान दैनिक वीर प्रताप के संपादक चंद्र मोहन के पिता की मौत के बाद कई वर्ष पहले ही आर्य प्रतिनिधि सभा से अलग करके आर्य शिक्षा मंडल का प्रधान बनाकर कुछ स्कूल व कॉलेज का प्रभार थमा कर उन्हें सभा से अलग कर दिया गया था जबकि उनके पिता श्री वरिंदर दैनिक वीर प्रताप के संपादक के साथ-साथ वर्षों तक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रभावी प्रधान रहे हैं कुछ लोगों का मानना है कि अस्पताल की सदस्यता में दावा आर्य शिक्षा मंडल की ओर से भी पेश किया जा सकता है