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मुद्दे की बात : बढ़ती बीमारी डायबिटीज भारत में गंभीर चुनौती

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डायबिटीज के लिए डब्ल्यूएचओ का 2030 का लक्ष्य हासिल करने के वास्ते भारत को डाइग्नोसिस बढ़ानी होगी

साल 1990 में दुनिया में डायबिटीज वाले लोगों की तादाद लगभग 20 करोड़ थी, जो 2022 में चार गुना होकर 80 करोड़ के पार हो चुकी है। वहीं वैश्विक स्तर पर बालिगों में डायबिटीज की मौजूदगी दर 1990 और 2022 के बीच 7 फीसदी से बढ़कर 14 फीसदी हो गयी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसी 13 नवंबर को डायबिटीज के लेटेस् आंकड़े लैंसेट ने जारी किए। भारत में 21.2 करोड़ डायबिटीज वाले मरीजों की संख्या सबसे अधिक है। जबकि चीन में यह तादाद 14.8 करोड़ है। भारत उन देशों की सूची में भी शीर्ष पर है, जहां 30 साल से ऊपर के सबसे ज्यादा डायबिटीज पीड़ित बिना इलाज के हैं। भारत में ऐसे लोगों की संख्या 13.3 करोड़, जबकि चीन में 7.8 करोड़ है। द हिंदू ने भी अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई है। डायबिटीज वाले लोगों की तादाद में इस भारी वृद्धि का एक कारण आंकड़े एकत्र करने और उनके विश्लेषण की पद्धति थी। डायबिटीज के लिए दवा लेना, या खाली पेट (फास्टिंग) प्लाज्मा ग्लूकोज 7·0 मिलीमोल प्रति लीटर या ज्यादा होना, या एचबीए1सी का 6.5 फीसदी या ज्यादा होना। पहले के अध्ययन ज्यादातर बढ़े हुए फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज या अन्य सिंगल-बायोमार्कर आंकड़े पर निर्भर होते थे। इसके उलट, विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ द्वारा समर्थित ‘एनसीडी रिस्क फैक्टर कोलैबरेशन’ के विश्लेषण में उन लोगों को शामिल किया गया, जिनका फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज या ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन यानि एचबीए1-सी बढ़ा हुआ था। अपने अध्ययन में बढ़े हुए ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन को शामिल किये बगैर, सिर्फ फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज देखने से डायबिटीज वाले बहुत से लोग छूट जाते हैं। खासकर दक्षिण एशिया में।

यहां गौरतलब है कि पिछले तीन दशक में भारत में पीड़ितों की कुल संख्या भले ही विवादित हो, पर इसमें कोई शक नहीं कि लोगों के बीच डायबिटीज की मौजूदगी दर बढ़ी है। गैर-सेहतमंद भोजन, खासकर कार्बोहाइड्रेट और संतृप्त वसा से भरपूर उच्च कैलोरी वाला भोजन, और एक जगह बैठे रहने वाली जीवनशैली डायबिटीज के दो ऐसे प्रमुख ‘रिस्क फैक्टर’ हैं, जो नियंत्रित किए जा सकते हैं। मगर डायबिटीज होने में तंबाकू की भूमिका को पर्याप्त रूप से उजागर नहीं किया गया है। डब्ल्यूएचओ की नवंबर, 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बात के प्रबल साक्ष्य हैं कि सिगरेट पीने से डायबिटीज होने का जोखिम सिगरेट ना पीने वालों के मुकाबले 30-40 फीसदी बढ़ जाता है। निकोटिन यानि तंबाकू में मौजूद वह पदार्थ जिसकी लत लगती है, इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं के काम और मात्रा को नुकसान पहुंचाता है। जिससे इंसुलिन बनना और ग्लूकोज उत्पादन पर नियंत्रण प्रभावित होता है, जो साथ मिलकर डायबिटीज होने में अहम भूमिका निभाते हैं। निकोटिन इंसुलिन प्रतिरोध को भी जन्म देता है, जो डायबिटीज होने का एक और कारक है। सभी रूपों में तंबाकू का परहेज करने से डायबिटीज का जोखिम तेजी से कम होने के अलावा, डायबिटीज वाले लोगों में हृदय रोग और मौत का जोखिम घट जाता है।

वहीं आगे चलकर मां और बच्चे में डायबिटीज विकसित होने में गर्भावधिक डायबिटीज को प्रबंधित करने की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर नहीं दिया जा सकता। डब्ल्यूएचओ का 2030 का लक्ष्य है कि डायबिटीज वाले 80 फीसदी लोगों में बीमारी की पहचान हो जाए और डायबिटीज पीड़ित के रूप में पहचाने गये 80 फीसदी लोगों में ग्लाइसीमिया पर अच्छा नियंत्रण रहे। देश में डायबिटीज वाले 13.3 करोड़ लोग अब भी बिना डाइग्नोसिस के हैं, जिसे देखते हुए भारत को यह लक्ष्य हासिल करने के लिए डाइग्नोसिस बढ़ानी होगी। यहां यह भी गौरतलब है कि भारत में चिकित्सा सुविधाओं का स्तर कैसा है, यह किसी से नहीं छिपा है। ऐस में इस जानलेवा बीमारी की गंभीर होती चुनौती से कैसे निपटा जाएगा, यह विचारणीय मुद्दा है।

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