देश में हर 40 सैकेंड में एक व्यक्ति को होता है स्ट्रोक
बिगड़ते लाइफ-स्टाइल का नतीजा है कि भारत भी एक निहायत गंभीर बीमार के मकड़जाल में फंसता जा रहा है। जी हां, यह जानलेवा बीमारी ब्रेन-स्ट्रोक है। विश्व स्ट्रोक संगठन यानि डब्ल्यूएसओ के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल एक करोड़ 22 लाख से ज्यादा लोगों को पहली बार स्ट्रोक होता है। इनमें से लगभग 65 लाख लोगों की हर साल मौत हो जाती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मामले में भारत की स्थिति भी कम चिंताजनक नहीं है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक भारत में कोरोनरी हार्ट डिसीज के बाद स्ट्रोक मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। देश में हर चार मिनट में स्ट्रोक से एक मौत दर्ज होती है। हर साल लगभग 1 लाख 85 हजार स्ट्रोक की घटनाएं होती हैं। इसका मतलब है कि देश में हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति को स्ट्रोक हो रहा है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज यानि जीबीडी के आंकड़े भारत के लिए बेहद चिंताजनक हैं। जीबीडी के मुताबिक भारत में 1990 से अब तक 30 साल में स्ट्रोक के मामलों में 51% की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, दुनिया में 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को जिंदगी में कभी ना कभी स्ट्रोक होता है। इसका रिस्क उम्र के साथ बढ़ता जाता है।
डब्ल्यूएसओ के मुताबिक मौजूदा वक्त में इसका रिस्क इतना बढ़ गया है कि 25 साल की उम्र के बाद हर 4 में से एक व्यक्ति को जीवन में कभी ना कभी स्ट्रोक हो सकने की आशंका बनी रहती है। ब्रेन स्ट्रोक का मतलब है कि हमारे ब्रेन की आर्टरीज के फटने से या ब्लॉकेज के कारण ब्रेन सेल्स तक पहुंचने वाला ब्लड फ्लो रुक गया है। इससे ब्रेन तक ऑक्सीजन सप्लाई रुक जाती है और ब्रेन सेल्स मरने लगती हैं। इसके लक्षण बहुत तेजी से और बिना किसी चेतावनी के सामने आते हैं।
माहिरों के मुताबिक स्ट्रोक के लक्षण जितनी जल्दी पहचान लिए जाएं, पेशेंट को उतनी ही जल्दी और सही डायरेक्शन में ट्रीटमेंट मिल सकता है। इससे पेशेंट को बचाना भी आसान होता है। अगर मरीज स्ट्रोक के साढ़े 4 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंच जाए तो उसकी ब्लॉक हुई आर्टरीज में ब्लड फ्लो फिर से शुरू किया जा सकता है। इस ट्रीटमेंट को थ्रॉम्बोलिसिस कहा जाता है। इसलिए जितनी जल्दी हो सके एक्शन लें और मरीज को तुरंत हॉस्पिटल पहुंचाएं। अगर किसी व्यक्ति को स्ट्रोक हुआ है तो इसके शुरुआती लक्षण चेहरे पर और चेहरे के आसपास के अंगों में नजर आते हैं। इससे चेहरे का एक हिस्सा सुन्न पड़ सकता है और उस हिस्से पर कंट्रोल खत्म हो सकता है। भ्रम की स्थिति बन सकती है, बोलने में मुश्किल हो सकती है। आपको लग सकता है कि जैसे जीभ आपके कंट्रोल में नहीं है। अचानक एक या दोनों आंखों में धुंधलापन हो सकता है। कई बार चक्कर आने लगते हैं और चलने में मुश्किल होने लगती है।
हर साल तेजी से बढ़ रहे स्ट्रोक के मामलों को देखते हुए अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन ने अपडेटेड गाइडलाइंस जारी की हैं। इसमें बताया गया है कि कैसे प्रिवेंटिव मेजर्स और लाइफ-स्टाइल में बदलाव करके स्ट्रोक के जोखिम को कम किया जा सकता है। इसमें बताया गया है कि किसी भी घातक बीमारी से बचने का सबसे अच्छा उपाय स्क्रीनिंग है। स्ट्रोक से बचने के लिए समय-समय पर ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल लेवल, ब्लड शुगर लेवल और मोटापे की जांच कराते रहना चाहिए। इनके कंट्रोल में रहने से स्ट्रोक का संभावित खतरा टाला जा सकता है। अगर स्ट्रोक से बचना है तो हार्ट फ्रेंडली हेल्दी डाइट लेनी चाहिए। इससे ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल लेवल, डायबिटीज और वेट कंट्रोल में रहते हैं। कोशिश करें कि खाने में ज्यादा-से-ज्यादा सब्जियां, फल और बीन्स हों। ड्रिंक्स में नींबू पानी, नारियल पानी अच्छे विकल्प हो सकते हैं। हार्ट अटैक और स्ट्रोक के लिए मोटापा सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है। इसलिए वेट कंट्रोल में रखें। फिजिकल एक्टिविटी ना करना भी स्ट्रोक के सबसे बड़े रिस्क फैक्टर्स में से एक है। स्मोकिंग से स्ट्रोक का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। ज्यादा शराब पीने से हमारा ब्लड प्रेशर तेजी से बढ़ सकता है। अगर कोई शराब के साथ सिगरेट पी रहा है तो स्ट्रोक का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।
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