डीएमसी अस्पताल में गुपचुप तरीके से 11 नए मेंबर शामिल करने का मामला
लुधियाना 24 मार्च। लुधियाना के नामी डीएमसी अस्पताल की मैनेजिंग कमेटी में गुपचुप तरीके से 11 नए मेंबर्स को जोड़ने का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। जबकि डीएमसी को डीएमसी अस्पताल बनाने वाले सबसे पुराने मेंबर्स के परिवारों में भी रोष पाया जा रहा है। चर्चा है कि पहले तो अस्पताल की मैनेजिंग कमेटी द्वारा नए मेंबर नहीं बनाए गए, लेकिन जब बनाए गए तो चुनिंदा को ही पहल दी गई। वहीं चर्चा है कि यैस मैन करने वालों को ही कमेटी में एंट्री मिली है। इस बीच जहां यूटर्न टाइम अखबार द्वारा बेक्टर परिवार, लुधियाना स्टील परिवार को पीछे रखने का मामला उठाया गया था। वहीं अब डीएमसी को डीएमसी अस्पताल बनाने के लिए सीढ़ी बनने और स्टैंड करने वाले परिवारों को भी इस मेंबरशिप से साइड़ रखा गया है। दरअसल, मेला राम जैन सूत वाले परिवार की और से डीएमसी को यहां तक लाने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन आज उनके परिवार को मैनेजिंग कमेटी द्वारा पूछा तक नहीं जा रहा। वहीं इस कमेटी में सिर्फ नई डोनेशन करने वाले परिवारों के सदस्यों को पहल दी जा रही है। वहीं इसके अलावा एसटी कोटैक्स के प्रेम गुप्ता के बेटे को भी कमेटी में जगह नहीं मिल सकी।
1982 में अस्पताल को दी थी 5.1 लाख की डोनेशन
चर्चा है कि मेला राम जैन परिवार की और से 1982 में अस्पताल को 5.1 लाख रुपए की डोनेशन दी गई थी। उस समय की मैनेजिंग कमेटी की अपील करने के बाद ही मेला राम परिवार से यशपाल गुप्ता मेंबर बने थे। हालांकि तब 25 हजार रुपए मेंबरशिप फीस होती थी। चर्चा है कि 5.1 लाख दान देने के चलते मेला राम परिवार को 25 मेंबर बनाने की कमेटी द्वारा ऑफर दी गई थी। लेकिन उनकी तरफ से इसे स्वीकार न करते हुए सिर्फ एक ही मेंबर बनाया था। यहां तक कि मेला राम परिवार के नाम से अस्पताल में ईएनटी डिपार्टमेंट भी शुरु किया गया था।
जरुरतमंद हुए मौकाप्रस्त, मददगार किए दरकिनार
चर्चा है कि मेला राम परिवार से डोनेशन लेने के दौरान कई ऐसे परिवार भी गए थे, जिन परिवारों के मेंबर आज कमेटी के मुखी बने हुए हैं। यहां तक कि उन परिवारों के चार चार मेंबर्स कमेटी में शामिल हैं। हालांकि पहले उनकी परिवारों के सीनियर्स द्वारा शहर के प्रतिष्ठ परिवार से अस्पताल के आगे बढ़ाने के लिए फंड लिया जाता रहा है। लेकिन आज उनके परिवारों को नजरअंदाज कर खुद सारा कंट्रोल अपने हाथ में लिए हुए हैं। जिसके चलते शहर में चर्चा है कि पहले जब अस्पताल को आगे बढ़ाने के लिए जरुरतमंदों द्वारा दान लिया गया। लेकिन फिर मौकाप्रस्त बनते हुए खुद आगे हो गए और मददगारों को साइड़ कर दिया।
फाउंडर परिवार नजरअंदाज करने की क्या मजबूरी
जानकारी के अनुसार पहले अस्पताल की कमेटी में 30-31 मेंबर्स थे, लेकिन कइयों की मौत होने के बाद अब 10-11 मेंबर रह गए। जिसके चलते नए मेंबर्स को इसमें शामिल किया गया। वहीं शहर के प्रतिष्ठ परिवारों में चर्चा है कि मेंबर बनाना अच्छा कार्य है, लेकिन फिर अस्पताल के फाउंडर परिवारों को नदरअंदाज क्यों किया गया। ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि उन्हें साइड़लाइन कर दिया गया।
कई बार पत्र भी भेजे, लेकिन नहीं दिया जवाब
चर्चा है कि शहर के प्रतिष्ठ परिवारों और अस्पताल के फाउंडर परिवारों द्वारा अस्पताल की मैनेजिंग कमेटी को कई पत्र भी भेजे गए थे। जिसमें उन्होंने मेंबर्स बनाने की बात रखी थी। लेकिन कमेटी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया। हैरानी की बात तो यह है कि पत्र भेजकर याद दिलाने के बावजूद भी उन्हें पूछा तक नहीं गया।
डॉक्टर्स की प्राइवेट प्रैक्टिस अभी भी जारी
वहीं, मैनेजिंग कमेटी द्वारा कुछ समय पहले अस्पताल के डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस बंद करने के आदेश दिए थे। जिसके चलते करीब 30 नामी डॉक्टर्स द्वारा रिजाइन कर दिया गया था। लेकिन चर्चा है कि अभी भी कई डॉक्टर्स की प्राइवेट प्रैक्टिस जारी है। जिसकी जानकारी मैनेजिंग कमेटी को भी है, लेकिन फिर भी वह कुछ बोल नहीं रहे। ऐसे में चर्चा छिड़ी हुई है कि क्या उन 30 डॉक्टर्स को ही निकालने के लिए अस्पताल द्वारा पहले आदेश जारी किए गए थे।
सिर्फ नाम का चैरीटेबल रह चुका अस्पताल
अस्पताल की कमेटी द्वारा डीएमसी अस्पताल को चैरीटेबल बताया जाता है। जबकि इसकी आड़ में सरकार से फंड भी लिया जाता है। लेकिन असलियत में अस्पताल चैरीटेबल सिर्फ नाम का ही रह चुका है। वहां पर हफ्ते में 4 दिन 800 की पर्ची और 2 दिन 90 रुपए की पर्ची ही कटती है। 2016 में डीएमसी को नंबर वन अस्पताल का अवॉर्ड मिला था। लेकिन आज उसके मुकाबले सर्विस मरीजों को नहीं मिल पा रही। सर्विस के मुकाबले अस्पताल काफी नीचे सत्र पर आ चुका है।