Ludhiana 21 सितम्बर : श्री रामशरणं मंदिर, किचलू नगर की ओर से *परम पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणी श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज एवं परम पूज्य भक्त श्री हंसराज जी महाराज (स्नेही पिता जी) की असीम कृपा से पूज्य पिता श्री कृष्ण जी महाराज एवं पूज्य माँ श्री रेखा जी महाराज के पावन सानिंध्य में राज्य स्तरीय “रामायण-ज्ञान-यज्ञ” जो कि बुधवार 02 अक्टूबर* से आरंभ होने जा रहा है, के उपलक्ष्य में पहला लड़ीवार अमृतवाणी सत्संग दशहरा मैदान, उपकार नगर में हुआ।
सत्संग में भारी संख्या में राम नाम के साधकों ने शामिल होकर राम कृपा प्राप्त की।
सभा में आदरणीय श्री नरेश सोनी जी ने कहा की श्री स्वामी जी महाराज का कहना है की
तीनों लोकों का सार यही है कि सुख परमेश्वर की शरण में है। हम दूसरों को देख के सोचते हैं कि वह सब सुखी हैं। परंतु असली सुख राम नाम के जाप और सत्संग में है। सत्संग में जा कर संतों के संग से पता चलता है की मैं कौन हूं और मेरा कौन है। जब सात्विक वृति जागृत होती तो पैर सत्संग की ओर जाते हैं। सत्संग में जा कर अच्छा बनने की प्रवृति उत्पन होती है। प्रभु की कृपा के बिना सुख के साधन तो आ सकते हैं पर सुख और शांति राम नाम के जाप, सत्संग और समर्पण से मिलती है। बुरे काम के लिए यदि व्यक्ति संकोच नही करता तो अच्छे काम के लिए संकोच क्यों करना। इस लिये हमनें सत्संग का अधिक से अधिक प्रचार करना है। अधिक से अधिक व्यक्तियों को राम नाम से जोड़ना है। राम नाम का सिमरन करने वाला ही सुखी रह सकता है। हमें काम, क्रोध, लोभ और मोह से हमने बचना है। हमें कुसंग से भी बचना है। कामना और वासना व्यक्ति की सब से बड़ी शत्रु है। कामना जब पूर्ण नहीं होती तो क्रोध उत्पन होता है। केवल ज्ञानी ही इन से बच सकता है। ज्ञान पाने के लिए हमें शरणागत होना पड़ेगा। हमें बुरे कामों में जल्दी नही करनी चाहिए और अच्छे कामों में देरी नही करनी चाहिए। भूल जायो पीछे क्या होया। जब जागों तब ही सवेरा होता है।
उत्तम का संग करके ही हम ज्ञान को पा सकते है। जैसे नाली का जल गंगा जी में मिल का चारणामत बन जाता है ऐसे ही अवगुणी व्यक्ति संत का संग करके ज्ञानी बन जाता है।।ज्ञानी और अज्ञानी की सोच का केवल इतना ही फर्क होता है की ज्ञानी राम नाम का जाप करते हुए इस जन्म के साथ साथ अगले जीवन को भी सवारता है और अज्ञानी केवल आज की और अभी की सोच रखता है। हमने ज्ञानी भक्त बनना हैं। ज्ञान संतो के संग और सत्संग में ही मिलता है। इस लिए हमे सत्संग में आवश्यक जाना चहिए।
सुख दुख हानि लाभ प्रभु के हाथ में है। दुख के समय बड़े बड़ों का धैर्य छूट जाता है। निराशा बहुत बुरी है। रामायण जी के अध्यन से आशा की किरण जागृत होती है। हमें आशा वादी का संग करना है। निराशा वादियों से बचना है। दुख की रात बहुत लंबी लगती है और सुख का समय बहुत थोड़ा लगता है। परंतु जैसे रात के बाद दिन आता है, ऐसे है दुख के बाद सुख आता ही आता है।
सत्संग में शहर के गणमान्य व्यक्तियों (MLA श्री मदन लाल बग्गा जी, श्री मति ममता आशू जी, श्री हेमराज अग्रवाल जी, श्री मति राशि अग्रवाल जी, श्री रमेश जोशी जी, अवतार कृष्ण तारी जी, श्री मिंटू शर्मा जी, जयप्रकाश जी, श्री नरिंदर मल्ली जी, राजू थापर जी, चन्नी गिल जी, अशोक सरीन जी, श्री विजय गर्ग जी, श्री सुनील मेहरा जी, श्री सचिन गुप्ता केशव जी, श्री राकेश जी, विकास गुप्ता जी, श्री पुष्पिंदर भनोट जी, श्री शिव धीर जी,
ने उपस्थित हो कर प्रभु श्री राम एवं सत्संग का आशीर्वाद प्राप्त किया।