इमारत की ‘नींव’ ही नजरअंदाज कर बस सजा लिए मैनेजमेंट कमेटी में ‘कंगूरे’
—–
मददगार ही कर दिए ‘दरकिनार’ और चहेतों की ही चांदी होगी ?
लुधियाना 24 मार्च। किसी दौर में महानगर का दयानंद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल यानि डीएमसीएच अपनी पहचान के लिए जूझ रहा था। तब इसी औद्योगिक नगरी की नामचीन हस्तियों ने ‘नींव’ मजबूत करने को आर्थिक-मदद देकर इसकी मौजूदा इमारत बुलंद की थी। अब पंजाब ही नहीं, आसपास के सूबों से भी आने वाली मरीजों के चलते इस कथित-चैरिटेबल अस्पताल को बेहिसाब कमाई होती है। ताजा हालात ये हैं कि डीएमसीएच की मैनेजिंग कमेटी में गुपचुप तौर पर 11 नए मेंबर जोड़ लिए गए। इस मसले ने तूल इसलिए पकड़ा कि जिन्होंने इस नामी हेल्थ-इंस्टीट्यूशन की नींव मजबूत की, उनके ही परिवार नजरंदाज कर दिए गए। जबकि इसकी इमारत में चार-चांद लगाने को अब नए ‘कंगूरे’ या कहें तो ‘चेहेते’ भर्ती कर लिए हैं। नतीजतन उन ‘टकसाली-परिवारों’ के वारिस बहुत आहत हैं, जिनके बुजुर्गों ने इसकी बुलंदियों पर चढ़ने वाली सीढ़ियां तैयार की थीं।
अपनी बेबाकी के लिए पहचान रखने वाले ‘यूटर्न टाइम’ ने डीएमसीएच को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले परिवारों के उन सदस्यों से बात की, जो इसकी मैनेजमेंट कमेटी द्वारा (जान-बूझकर) भुला दिए गए। इसे लेकर आम लोगों में भी चर्चा है कि इस नामचीन हेल्थ-इंस्टीट्यूशन में ‘पिक एंड चूज’ पॉलिसी पर जोरदारी से अमल किया जा रहा है। जब ऐसे परिवारों से संपर्क किया गया तो चौंकाने वाले पहलू सामने आए।
नामी उउद्यमी निमेश के सवालों के जवाब शेष !
जब यूटर्न टीम ने खोजबीन की तो टैक्सटाइल एक्सपोर्ट में खास पहचान रखने वाले नामचीन इंडस्ट्रियलिस्ट निमेश गुप्ता का नाम सामने आया। उनके दादा मेला राम जैन सूत कारोबारी थे, जिन्होंने इस औद्योगिक नगरी में टैक्सटाइल इंडस्ट्री को पहचान दिलाई थी। बताते हैं कि तब दयानंद अस्पताल की मैनेजिंग कमेटी के प्रमुख बीएम मुंजाल उनसे मिले थे। तब उस दौर में मेला राम परिवार ने 1982 में अस्पताल को 5.1 लाख रुपए डोनेशन किए थे। तब मैनेजिंग कमेटी ने नामी उद्यमी मेला राम के बेटे यशपाल गुप्ता को मेंबर बनाया। तब महज 25 हजार रुपए मेंबरशिप फीस होती थी। बकौल निमेश गुप्ता मेला राम परिवार को तब 25 मेंबर बनाने का प्रस्ताव मिला था। हालांकि इस परिवार ने सिर्फ एक ही मेंबर बनाया था। बाद में तत्कालीन सांसद सतपाल मित्तल ने इस परिवार से कमेटी में हर बार एक मेंबर रखने का ऐलान किया था। निमेश कहते हैं कि उसके बाद कमेटी के सेक्रेटरी प्रेम गुप्ता को उन्होंने लिखित तौर पर यह बात याद दिलाई, लेकिन आज तक कोई उत्तर नहीं मिल सका। वह तर्क देते हैं कि चर्चा तो यह रही कि मैनेजमेंट कमेटी ने स्वर्गीय हो चुके मेंबरों को कमेटी में जगह ना देने का फैसला किया। ऐसे में यह सवाल है कि कई नए वारिस मेंबर भी तो ऐसे हैं, जिनके बुजुर्ग गुजर चुके हैं। यहां काबिलेजिक्र है कि नामचीन उद्यमी मेलाराम जैन के नाम पर डीएमसीएच ने बाकायदा सम्मान देते हुए उनकी याद में स्पीच एंड हियरिंग सेंटर खोल एक ब्लॉक तक बनाया था।
हमारा दर्द ना जान सकी मैनेजमेंट कमेटी : सुरिंदर
अविभाजित पंजाब के दौर में लुधियाना से सन 1962 में मेरा पिता दीनानाथ अग्रवाल विधायक थे। जो दयानंद अस्पताल की मैनेजमेंट कमेटी के फाउंडर मेंबर थे। उनके बेटे व लुधियाना इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के पूर्व चेयमैन सुरिंदर अग्रवाल ने यह जानकारी देते दर्द जाहिर किया कि तब टैक्सटाइल इंडस्ट्री के प्रेसिडेंट रहे उनके पिता समेत कई फाउंडर मेंबरों ने इस अस्पताल के लिए फंड इकट्ठा कराने में अहम भूमिका निभाई थी।
चैरिटी कहां गई, अब तो कमर्शिय हो गई मैनेजमेंट :
नामचीन उद्यमी निमेश गुप्ता और सुरिंदर अग्रवाल ऐसे परिवारों के वारिस हैं, जिन्होंने डीएमसीएम की नींव मजबूत की। साथ ही इस महानगर में इंडस्ट्री का वजूद भी मजबूत किया। उन समेत ऐसे कई लोग हैं, जो डीएमसीएच मैनेजमेंट के मेंबरों के वारिस हैं। अपनी उपेक्षा से आहत होकर वे तो यहां तक कहते हैं कि कभी चैरिटी के नाम पर नर सेवा, नारायण सेवा का नारा बुलंद करने वाली इस अस्पताल की मैनेजमेंट कमेटी अब क्यों खामोश है। जब अस्पताल में मरीजों से इलाज के नाम पर मोटी फीस वसूली जा रही है।
उपेक्षा के साइड-इफेक्ट !
डीएमसीएच मैनेजमेंट द्वारा अपने पुराने मेंबरों की उपेक्षा के घातक-नतीजे भी सामने आने लगे हैं। इसका ही नतीजा है कि नामी उद्ममी निमेश गुप्ता का परिवार अब महानगर में जवद्दी पुल के पुल के पास मुफ्त डायलसिस करने वाली संस्था द्वारा संचालित अस्पताल को आर्थिक सहयोग करने लगा है। शहरी आशंका जता रहे हैं कि कही ऐसी ही मुफ्त सेवा देने वाली चिकित्सा संस्थाओं के अभियान से डीएमसीएच जैसे नामचीन संस्थानों के सामने बड़ी चुनौती ना पैदा हो जाए।
—————