शोकॉज नोटिस जारी हुए निगम के एमटीपी, एटीपी सहित पांच अफसरों को, अधिकारियों में मचा हड़कंप
लुधियाना 18 नवंबर। नगर निगम के जोन डी में लगते बाड़ेवाल रोड स्थित ओरिसन अस्पताल गड़बड़ियों के चलते विवादों में है। इस मामले में नगर निगम के कई सीनियर अफसरों के लपेटे में आने की आशंका है।
जानकारी के मुताबिक स्थानीय निकाय विभाग ने इस मामले की जांच के तहत नगर निगम की बिल्डिंग ब्रांच के पांच अफसरों को टारगेट किया है। बताते हैं कि चीफ विजिलेंस अफसर ने निगम के एमटीपी, एटीपी सहित पांच अफसरों को शोकॉज नोटिस जारी कर दिए हैं। इनमें वह अधिकारी भी शामिल हैं, जिनके कार्यकाल में यह निर्माण कार्य किया गया। नोटिस के जरिए कार्रवाई करने से पहले एमटीपी संजय कंवर, एटीपी मोहन सिंह, तत्कालीन बिल्डिंग ड्राफ्ट्समैन जगदीप सिंह, इंस्पेक्टर हरजीत सिंह और कशिश गर्ग को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया है।
अफसरों को 21 दिन में रखना होगा पक्ष :
विभागीय सूत्रों के मुताबिक निगम की बिल्डिंग ब्रांच के अफसरों को जारी शोकॉज नोटिस में सूचित किया गया है कि उन्होंने ने बिना-राजीनामा योग्य इस बिल्डिंग को फीस वसूल कर रैग्युलर करा दिया। ऐसा लगता है कि अधिकारियों ने मिलीभगत कर प्रॉपर्टी धारक को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया है। जारी किए गए नोटिस के मुताबिक आरोपी अफसरों को 21 दिनों में जवाब देना होगा। वर्ना उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की सिफारिश की जाएगी।
नोटिस में किया खामियों का खुलासा :
बताते हैं कि निगम अफसरों को जारी नोटिस में जिक्र है कि इस प्रॉपर्टी में 846 गज जगह पर भवन निर्माण करने के लिए साल 2016 में नक्शा मंजूर हुआ था। हालांकि प्रॉपर्टी धारक ने साथ लगती एक अन्य 300 गज की प्रॉपर्टी भी अस्पताल में क्लब कर ली। इस तरह से इस प्रॉपर्टी का रकबा 1146 गज बन गया। नियमों के मुताबिक 1000 गज तक बिल्डिंग बायलॉज के लिए मौके पर 40 फुट रोड की चौड़ाई होनी चाहिए। जबकि 1000 गज से अधिक रकबे वाली इमारत के लिए बिल्डिंग बायलॉज के अनुसार सड़क की चौड़ाई 60 फीट होनी चाहिए। मौके पर सड़क की चौड़ाई 60 फुट नहीं है। लिहाजा यह बिल्डिंग ना-राजीनामा योग्य की कैटेगरी में आती है। प्रॉपर्टी धारक ने नियमों के खिलाफ अस्पताल की इमारत बना ली। इसके अलावा मंजूर नक्शे से अतिक्ति निर्माण किया। इसके बावजूद नॉन कंपाउंडेबल वाइलेशन को नियमों के विपरित जाकर कंपाउंड करने के लिए राजीनामा फीस जमा करा दी। इस मामले में निगम अफसरों का रवैया प्रॉपर्टी धारक के साथ मिलीभगत वाला साबित होता है।
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