पहलगाम में हमले के आरोपी आतंकी का पीओके में प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार

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यही संस्कार कार्यक्रम भी हमले से पाकिस्तान के संबंधों का संकेत देता है

चंडीगढ़, 3 अगस्त। जम्मू-कश्मीर में हाल ही में मारे गए आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे, इसके सांकेतिक सबूत मिले हैं। घाटी में ऑपरेशन महादेव में मारे गए आतंकवादियों में से एक ताहिर हबीब जिब्रान का हाल ही में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पीओके स्थित उसके पैतृक गांव खाई गाला में प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार यानि जनाज़ा-ग़ैब इस बात की पुष्टि करता है।

इस घटना ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में इस्लामाबाद के हाथ होने की पुष्टि की, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी। टेलीग्राम पर पोस्ट जारी फुटेज में स्थानीय बुज़ुर्गों सहित ग्रामीण, पूर्व पाकिस्तानी सैनिक और लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य हबीब की याद में अंतिम प्रार्थना के लिए इकट्ठा होते दिखाई दिए। श्रेणी ‘ए’ का आतंकी घोषित ताहिर, सीमा पार आतंकवाद में अपनी भूमिका के कारण भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक प्रमुख लक्ष्य था। पिछले हफ़्ते श्रीनगर में ऑपरेशन महादेव में दो अन्य लोगों के साथ उसकी मौत भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता थी।

हालांकि, अप्रत्याशित मोड़ तब आया, जब शोक समागम में स्थानीय लश्कर कमांडर रिज़वान हनीफ़ ने इसमें शामिल होने का प्रयास किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, परिवार ने लश्कर के गुर्गों की मौजूदगी से इंकार किया, लेकिन हनीफ़ ने अपनी बात पर अड़ा रहा, जिसके परिणामस्वरूप तनावपूर्ण बातचीत हुई। लश्कर के गुर्गों ने शोक मनाने वालों को बंदूक दिखाकर धमकाया, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया। खाई गाला के निवासी, जो लंबे समय से कट्टरपंथ से आशंकित थे, अब आतंकवादी भर्ती का विरोध करने के लिए सार्वजनिक बहिष्कार की योजना बना रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिकएक लश्कर कमांडर को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा तो मजबूर भाग निकला। जो इस क्षेत्र में बदलती गतिशीलता का प्रमाण है। हबीब के अंतिम संस्कार को लेकर तनाव ना केवल आतंकवादी समूहों के प्रति स्थानीय आक्रोश को दर्शाता है, बल्कि पहलगाम नरसंहार के बाद सीमा पार आतंकवादी नेटवर्क को ध्वस्त करने के उद्देश्य से भारत द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर जैसे जवाबी अभियानों की व्यापक पहुंच को भी दर्शाता है।

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