संदीप शर्मा
रतन जी टाटा नहीं रहे। विदा हो गए इस दुनिया जहान से लेकिन दुनियाभर के लोगों को दिखा गए जीने की राह, सिखा गए हैं तमाम व्यावसायिक व्यस्तता के बावजूद भी जीवन जीने की कला। रतन टाटा वास्तव में अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे। बहुमुखी प्रतिभावान रतन टाटा दिल और दिमाग के बीच ताउम्र संतुलन बनाकर चलने वाले विरले उद्योगपति थे। उन्होंने टाटा समूह की विरासत को न केवल संभाला बल्कि टाटा समूह के उत्पादों को विश्वव्यापी पहचान दिलाकर देश की आन,बान और शान में भी इजाफा किया है।
आज रतन जी टाटा हमारे बीच नहीं है लेकिन कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जंग जीतकर टाटा मेमोरियल कैंसर हास्पिटल से घर आए अनेकों-अनेक लोगों के लिए तो रतन टाटा अजर-अमर हो गए हैं।
आपदा के समय टाटा समूह बचाव और राहत के कामों हमेशा अग्रणी रहता है। बाढ़ की विभीषिका हो या फिर भूकंप का विनाशलीला हर जगह और हर बार टाटा समूह पीड़ितों की पीड़ा में मरहम लगाता नज़र आता है तो इसके पीछे रतन टाटा की दयालुता के साथ ही कर्त्तव्य, समर्पण और निष्ठा का भाव ही तो है। शिक्षा के क्षेत्र में टाटा की तालीम का कोई सानी नहीं है।
टाटा समूह के उत्पादन बारे में मान्यता है कि टाटा सुंई से लेकर सबल तक सब बनाता है। टाटा समूह को इतनी ऊंचाई तक ले जाने में टाटा समूह के संस्थापक जमशेदी जी टाटा के परपोते रतन टाटा की कर्मठता और दूरदर्शिता असंदिग्ध है। दिल और दिमाग के बीच अद्भुत सामंजस्य बिठाने वाले युग पुरुष रतन टाटा का मानना था कि हम लोग इंसान हैं,कोई कंप्यूटर नहीं इसलिए जीवन का मजा लीजिए, इसे हमेशा गंभीर मत बनाइए।
रतन टाटा एक विजनरी बिजनेसमैन और सततभाव से समाज के लिए समर्पित संवेदनशील महामना थे। 86 साल की आयु में रतन टाटा का नश्वर शरीर भले ही शांत हो गया है, उनके जीवन का कालक्रम भले ही पूरा हो चला है। लेकिन देशवासियों के दिलो-दिमाग में रतन टाटा सदैव अमर रहेंगें।
देश ने टाटा का नमक खाया है और खाता रहेगा। टाटा के ‘रतन’ को शत-शत नमन।
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