कार्पोरेट घराने पीएम के नजदीकी, मगर इंडस्ट्रियल हब से क्यों बना ली दूरी
पीएम नरेंद्र मोदी 23-24 मई को पंजाब के दो दिनी चुनावी दौरे पर थे। उन्होंने पहले दिन शाही-शहर पटियाला में चुनावी रैली की। दूसरे दिन वह गुरदासपुर और जालंधर लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवारों के हक में रैलियां कर लौट गए। बेशक पीएम एनडीए-बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं और वह सियासी-तौर पर फिलहाल काफी व्यस्त हैं। इसके सबके बावजूद एक बड़ा सवाल तमाम पंजाबियों की तरफ से है कि प्रधानमंत्री लुधियाना से किनारा क्यों कर गए ? यह ऐसे में है, जबकि कार्पोरेट घरानों से मोदी की नजदीकियां अकसर सियासी-सुर्खियां बनती रही हैं।
यह बात पंजाबी ही नहीं, देश-दुनिया के लोग जानते हैं कि भले ही पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ है, लेकिन इस सूबे की खास पहचान औद्योगिक-नगरी लुधियाना से है। मुल्क के बंटवारे में उजड़े पंजाब के इस शहर की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई थी। यहां के पारंपरिक छोटे-कुटीर उद्योग दम तोड़ रहे थे। ऐसे में स्थानीय कारोबारियों और बंटवारे में उजड़कर आए लोगों ने यहां कई नए उद्योग-धंधों की नींव रखी। आगे चलकर लुधियाना की होजरी, साइकिल के अलावा अन्य कई इंडस्ट्री ने देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। सूबे में कैरों-सरकार के दौर में हरित-क्रांति का केंद्र बिंदु भी यही महानगर रहा।
हालांकि तेजी से आए बदलाव के साथ तकनीकी तौर पर यहां के उद्योग-धंधे कई विकसित-विकासशील देशों की तुलना में पिछड़े भी। ऐसे में कई दशक से यहां के उद्यमी केंद्र सरकार से आस लगाए बैठे हैं। हर छोटे-बड़े चुनाव में इस इंडस्ट्रियल-हब की कायाकल्प करने के वादे-दावे तो बहुत होते हैं, लेकिन पूरी तरह अमल नहीं होता है। ऐसे में यहां के उद्यमी इस बार भी उम्मीद लगाए बैठे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महानगर में चुनावी रैली करेंगे तो जाहिर तौर पर कोई पक्का वादा यहां की इंडस्ट्री की तरक्की के लिए भी करके जाएंगे। उनके नजरिए से चुनावी-घोषणापत्रों में लिए संकल्प और राज्य के किसी दूसरे हिस्से में रैली के दौरान लुधियाना के प्रति चिंता जताना अलग बात है। अगर पीएम इसी महानगर में आकर जनता से रु-ब-रु होते तो कम से कम उद्यमियों को भी यह संतोष रहता कि औद्योगिक नगरी की अनदेखी नहीं हुई।
अब सियासी-जानकारों के नजरिए से देखें तो लुधियाना में पीएम की रैली कराने का फैसला भाजपा के केंद्रीय-प्रांतीय नेतृत्व के हाथ में था। अगर वह सूबे में बदले सियासी-हालात के नजरिए से भी ठोस दलीलें रखते तो पीएम मोदी यहां पहल के आधार पर रैली कर सकते थे। अगर राजनीतिक-तौर पर भी आकंलन करें तो लुधियाना को मालवा-बैल्ट की सियासी नब्ज टटोलने वाला केंद्र भी माना जाता है। जिस तरह पटियाला या जालंधर में आसपास की लोकसभा सीटों के बीजेपी प्रत्याशी भी पीएम की रैली के मंच पर बुलाए गए, यही राजनीतिक प्रयोग यहां भी संभव था। एक तरह से लुधियाना पंजाब का केंद्र है तो यहां से भी मोदी कोई बड़ा राजनीतिक संदेश आसानी से पूरे सूबे के लिए दे सकते थे। खैर, मोदी की रैलियों के नजरिए से लुधियाना की अनदेखी के चलते राजनीतिक तौर पर नकारात्मक प्रभाव भी होना मुमकिन है। विरोधियों को यह कहने का मौका मिल गया कि भाजपा ने लुधियाना की बजाए दूसरी सीटों को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल माना। यानि कुल मिलाकर इस लोस सीट से बीजेपी प्रत्याशी रवनीत सिंह बिट्टू के उस दावे पर भी बड़ा सवालिया निशान लग गया कि मोदी भी यहां चुनावी रैली करने आएंगे। क्या चुनावी-चरणों में तेजी से बदलते सियासी-समीकण चलते बीजेपी की प्राथमिकता सूची में से लुधियाना बाहर हो गया ?
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