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मुद्दे की बात : डोभाल पीएम संग क्यों नहीं गए अमेरिका ?

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ऐसा पहली बार, विदेश दौर पर पीएम के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नहीं !

पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर हैं, इस यात्रा की एक तस्वीर चर्चा में है। जिसमें अमेरिका की तरफ़ से राष्ट्रपति जो बाइडन, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन और भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी हैं। भारत की ओर से इसी तस्वीर में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस.जयशंकर, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा नज़र आए। इस तस्वीर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानि एनएसए अजित डोभाल नहीं दिखे। देश-दुनिया के मीडिया में यही बात सुर्खियों में है।

ऐसा मानते हैं कि भारतीय डिप्लोमेसी में तीन अहम लोग हैं, पीएम मोदी, विदेश मंत्री जयशंकर और तीसरे एनएसए डोभाल। आमतौर पर पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे में डोभाल साथ होते हैं। ऐसे में सवाल उठा कि आख़िर इस बार डोभाल अमेरिका क्यों नहीं गए ? पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे संजय बारू ने ट्वीट किया कि शायद यह पहली बार है, जब कोई एनएसए पीएम के साथ अमेरिका ना गया हो। डोभाल का अमेरिका ना जाना कई कारणों से चर्चा में है। हाल ही में पीएम मोदी के दौरे से ठीक पहले अमेरिका में शीर्ष अधिकारियों ने खालिस्तान समर्थक नेताओं से मुलाक़ात व्हाइट हाउस में की थी। मोदी के दौरे से पहले अमेरिका के इस रुख़ की आलोचना हो रही है।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, 19 सितंबर को शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों ने सिख ‘वकीलों’ से मुलाकात की। 2023 में सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या कराने की साज़िश में उंगलियां भारत सरकार पर भी उठी थीं। अमेरिका इस मामले में भारत से जांच में मदद की बातें कहता रहा। अमेरिका इस मामले में भारत के शमूलियत की भी जांच कर रहा है। पन्नू ने अपनी हत्या की साज़िश को लेकर न्यूयॉर्क की अदालत में याचिका दाखिल की। इसी मामले को लेकर न्यूयॉर्क की अदालत ने भारत से कई लोगों को समन किया था। इस समन में अजित डोभाल, निखिल गुप्ता और पूर्व रॉ प्रमुख सामंत गोयल जैसे शीर्ष अधिकारियों के नाम हैं। 21 दिनों के अंदर इस समन का जवाब दिया जाना है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस समन को ग़ैर-ज़रूरी बताया। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने मीडिया से कहा था-जब ये मामला हमारे संज्ञान में लाया गया तो हमने एक्शन लिया और उच्च स्तरीय कमेटी बनाई। ऐसे में सवाल उठा कि क्या इस समन के कारण ही डोभाल अमेरिका नहीं गए ? अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू से अधिकारियों ने डोभाल के अमेरिका ना जाने की वजह के पीछे समन होने की बात से इंकार किया। उन्होंने कहा कि डोभाल जम्मू-कश्मीर चुनाव और अन्य घरेलू मुद्दों के कारण अमेरिका नहीं गए। सवाल हो रहा है कि ऐसे वक़्त में जब पीएम मोदी का दौरा होना है, तब अमेरिकी कोर्ट का भारत को समन भेजने की मंशा क्या है ?

द हिंदू ने सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा-ऐसे समन अतीत में भी भेजे जाते रहे हैं। यह समन पन्नू की याचिका में पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन, कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी, कमलनाथ को भी भेजे थे। 2002 के गुजरात दंगों के मामले में ये समन अतीत के अमेरिकी दौरों के दौरान पीएम मोदी को भी भेजे गए थे।

अमेरिकी शीर्ष अधिकारियों से सिख अलगाववादियों के मिलने को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने कोई टिप्पणी नहीं की।

कुछ वक़्त पहले डोभाल रूस दौरे पर गए थे। उस दौरान वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मिले थे। तब उन्होंने पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे की जानकारी पुतिन को दी थी। आमतौर पर ऐसा कम ही होता है कि किसी देश के एनएसए की सीधी भेंट दूसरे देश के राष्ट्र प्रमुख से हो। ऐसे में डोभाल-पुतिन भेंट ख़ास मानी गई थी। अमेरिका में डिप्लोमैट रहे एक पूर्व अधिकारी ने द हिंदू से कहा-व्हाइट हाउस ने मोदी के दौरे से पहले ये क़दम उठाकर दोहरा संदेश दिया है। एक संदेश- भारत के लिए कि यह चिंता का विषय है। अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने इस मामले में शामिल अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराने की बात कही थी। यह साफ़ संदेश था कि ऐसी किसी हरकत के कुछ अंजाम भी होंगे। भारत के पूर्व विदेश सचिव और रूस में राजदूत रहे कंवल सिब्बल ने कहा कि यह समझना मुश्किल है कि ऐसे उकसावे से अमेरिका क्या हासिल करना चाहता है। जो लोग भारत की संप्रभुता के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं, अमेरिका उनका हौसला बढ़ा रहा है। अगर व्हाइट हाउस अपनी स्थिति साफ़ नहीं करता है तो ये भारत के लिए झटके की तरह है।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार ज़ोरावर दुलत सिंह ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ऐसा लगता है, अमेरिका भारत को नीचा दिखाना चाह रहा है। विदेशी मामलों के जानकार ब्रह्मा चेलानी ने लिखा-बाइडन प्रशासन भारत के ख़िलाफ़ सिख मिलिटेंसी का कार्ड इस्तेमाल कर फ़ायदा उठाना चाह रहा है। अमेरिका की ओर से साझा की अधूरी जानकारी से भारत और कनाडा के बीच विवाद शुरू हो गया। द विल्सन सेंटर के साउथ एशिया डायरेक्टर माइकल कुगलमैन ने लिखा- ‘व्हाइट हाउस की सिख एक्टिविस्ट से मुलाक़ात ये बताती है कि खालिस्तान का मुद्दा द्विपक्षीय संबंधों में तनाव की अहम वजह है और बना रहेगा। इस ट्वीट पर जवाब देते कंवल सिब्बल ने लिखा-खालिस्तानियों का स्वागत कर अमेरिका इस मसले पर तनाव को और बढ़ा रहा। द हिंदू अख़बार के फॉरेन एडिटर स्टेनली जॉनी मानते हैं-अमेरिकी अधिकारियों का वहां रह रहे सिख नागरिकों से मिलने में कुछ भी ग़लत नहीं, मगर जिस वक़्त अलगाववाद समर्थको से मुलाक़ात की गई, वो किसी से छिपा नहीं है। याद रहे कि जब जुलाई में मोदी रूस गए थे, तब एक अहम नेटो समिट वॉशिंगटन में चल रहा था। अब जब क्वॉड समिट के लिए मोदी अमेरिका गए हैं तो अमेरिकी अधिकारी खालिस्तान समर्थकों से मिल रहे हैं। अमेरिका-भारत संबंधों में अब ये आम बात है। मज़े की बात, अमेरिका चाहता है कि भारत रूस के सरकारी मीडिया आरटी को बैन करे। संजय बारू ने ट्वीट किया-अमेरिका और चीन संदेश दे रहे हैं कि भारत अपनी जगह जान ले। चीन चाहता है कि भारत झुका रहे, अमेरिका चाहता है कि भारत हद ना पार करे। चार ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल विकल्प हैं। उधर, अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद 2014 तक पन्नू ने न्यूयॉर्क में वॉल स्ट्रीट में सिस्टम एनालिस्ट के रूप में काम किया। इस दौरान पन्नू राजनीतिक रूप से भी सक्रिय रहा।

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