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मुद्दे की बात : पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल की असल ताकत कौन

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शानदार रिकॉर्ड के चलते पांच महिला खिलाड़ियों से हैं बहुत बड़ी उम्मीदें 

पेरिस ओलंपिक को लेकर भारतीय दल में शामिल पांच महिला खिलाड़ियों से बड़ी उम्मीदें देशवासियों को है। दरअसल ये धुरंधर खिलाड़ी ओलंपिक खेलों में पदक जीतने की प्रबल दावेदार हैं। दुनिया भर की निगाहें ओलंपिक खेलों के साथ भारतीय दल पर भी टिकी हैं। देश-दुनिया का मीडिया भी इसे लेकर समीक्षात्मक राय जाहिर कर रहा है। मसलन, बीबीसी ने भी अपनी स्पोर्ट्स रिपोर्टिंग में भारतीय ओलंपिक दल को खास तवज्जो दी है। जिसके मुताबिक सीधेतौर पर कहें तो भारतीय पदक तालिका में इस बार नारी-शक्ति का योगदान अहम रहने की संभावना है। अब इन भारतीय महिला खिलाड़ियों की बात करें तो वेटलिफ्टर मीराबाई चानू, पिछले दो ओलंपिक खेलों की पदक विजेता बैडमिंटन प्लेयर पीवी सिंधु, मुक्केबाज़ निकहत ज़रीन, महिला पहलवान अंतिम पंघाल और निशानेबाज़ सिफत कौर सामरा इस सर्वोच्च सूची में शामिल हैं।

इस ओलंपिक में शामिल वेटलिफ़्टर्स में मीराबाई चानू बेहतर प्रदर्शन करने वालीं वेटलिफ्टर हैं। वह लगातार दूसरे ओलंपिक में पदक जीतने की दावेदार हैं। टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली मीराबाई चानू हांगझू में एशियाई खेलों में चोटिल होने की वजह से पदक नहीं जीत सकी थीं। वहां से जब लौटकर वह दिल्ली एयरपोर्ट व्हीलचेयर पर उतरीं तो उनके स्वागत के लिए कोई नहीं था। उन्होंने उस समय ही तय कर लिया था कि वह जब पेरिस ओलंपिक से लौटेंगी तो उनके गले में पदक होगा। चानू भारत की सबसे सफल महिला वेटलिफ्टर हैं। वह ओलंपिक रजत के अलावा विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण और रजत, कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। चानू अपने ग्रुप में शामिल 12 वेटलिफ्टर्स में इकलौती हैं, जो 200 किलो वज़न को पार करती हैं। वह स्नैच में 90 किलो और क्लीन एंड जर्क में 115 किलो के साथ कुल 205 किलो वज़न उठा रही हैं। माहिरों की नजर में इस प्रदर्शन पर पदक तो पक्का है। वह अगर अपने स्नैच के प्रदर्शन में पांच किलो का सुधार कर सकें तो गोल्ड भी आ सकता है।

भारत के लिए ओलंपिक खेलों में दो पदक रजत और कांस्य जीतने वाली पीवी सिंधु इकलौती बैडमिंटन महिला खिलाड़ी हैं। सिंधु को बड़े मौकों पर अपना बेस्ट देने वाली खिलाड़ी के तौर पर माना जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सिंधु अभी पूरी रंगत में नहीं हैं। इसकी वजह उनका पिछला कुछ समय से चोटिल रहना है। हालांकि सिंधु के लिए बीडब्ल्यूएफ सर्किट में अच्छी फॉर्म में रहना ओलंपिक में प्रदर्शन के लिए मायने नहीं रखता है। सिंधु का खेल रिकॉर्ड प्रभावशाली रहा है, उनके साथ मेंटर बतौर जुड़े महान शटलर प्रकाश पादुकोण के मुताबिक वह उनकी रणनीति पर काम कर रहे हैं। किसी भी खिलाड़ी की सफलता में बड़ी भूमिका सही मौकों पर सही शॉट खेलना ही है।

भारतीय महिला पहलवान अंतिम पंघाल का दबदबा इसी से चलता है कि विनेश फोगाट जैसी पहलवान को यह वज़न वर्ग छोड़ना पड़ा है। अंतिम को पेरिस में गोल्ड जीतने के लिए अकारी फुजीनामी को फ़तह करना होगा, वह 130 से ज़्यादा कुश्तियों में अजेय हैं। पंघाल वह अगर अकारी के हाफ़ में रहती हैं तो रेपचेज से कांस्य पदक तक पहुंच सकती हैं। दूसरे हाफ में रहने पर रजत तक जा सकती हैं। उनके पिता रामनिवास ने अंतिम को पहलवान बनाने के लिए अपनी ज़मीन, ट्रैक्टर और गाड़ी आदि बेच दी थी। बेटी ने भी पिता के बलिदान को खाली नहीं जाने दिया है। अंतिम के खेल की सबसे बड़ी खूबी डिफेंस है। वह विपक्षी पहलवान को अंक लेने से रोके रखती हैं।

भारतीय मुक्केबाज निकहत ज़रीन का यह पहला ओलंपिक है। वह तीन साल पहले टोक्यो ओलंपिक में ट्रायल के दौरान मैरिकॉम से हारने की वजह से नहीं जा सकी थीं। हालांकि पिछले तीन सालों में वह देश की नंबर वन मुक्केबाज़ का दर्जा हासिल कर चुकी हैं। निकहत अब तक विश्व चैंपियनशिप में दो गोल्ड और कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड और एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीत चुकी हैं। उनकी कैबिनेट में ओलंपिक गोल्ड की कमी है, बहुत संभव है कि वह इस कमी को इस बार पूरा कर दें। निकहत ने 2022 में सुर्खियां बटोरनीं शुरू की थीं, उसके बाद से वह फ्लाइवेट वर्ग में सिर्फ दो मुकाबले हारी हैं। उन्होंने पेरिस पहुंचकर एक्स पर संदेश डाला कि वह अपना सपना साकार करने आ गईं। उनके पिता मोहम्मद जमील तारीफे-काबिल हैं कि उन्होंने आलोचनाओं पर कान दिए बगैर बेटी को कामयाब मुक्केबाज़ बनने में भरपूर मदद की।

भारतीय निशानेबाज़ पिछले टोक्यो ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके थे, पर तब सिफत उस दल का हिस्सा नहीं थीं। वह पिछले एशियाई खेलों में स्वर्ण और रजत पदक जीतकर सुर्खियों में आई थीं। सिफत ने पिछले साल 50 मीटर थ्री-पोजिशन राइफल स्पर्धा में ब्रिटेन की सियोनेड का विश्व रिकॉर्ड तोड़कर 469.6 अंकों का नया रिकॉर्ड बनाया था। सिफत कौर का चचेरा भाई शेखों शूटिंग करता था और वह जब 9 साल की थीं, तब उसके साथ शूटिंग रेंज चली जाती थीं। उसने शूटिंग में गंभीरता लाने के लिए मेडिकल की पढ़ाई छोड़ इस खेल को पूरी तरह से अपनाया था। सिफत कहती हैं कि इसमें बेहतर परिणाम निकालने के लिए दबाव से बचने की ज़रूरत होती है।

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