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मुद्दे की बात : अबकी बार, फिर महंगाई की मार

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आम आदमी रसोई का बजट बिगड़ने से हैरान-परेशान

दशहरा-दीवाली के दौरान खाने वाले तेल, दालों के भाव चढ़े थे। उससे पहले भारी बरसात और बाद में फेस्टिवल सीजन के चलते फलों-सब्जियों की कीमतों में तेजी से इजाफा हो गया था। अब खुले बाजार में गेहूं के दाम बढ़ने की वजह से इस समय अनब्रांडेड आटा, मैदा और ब्रेड आदि सब महंगे हो गए हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देश की राजधानी दिल्ली में, जहां हुक्मरान खुद बैठे हैं, वहां बी महंगाई तेजी से सिर उठा रही है। कुछ महीने पहले 700 ग्राम के ब्रेड या पावरोटी का जो लोफ 45 रुपये में मिला करता था, उसकी कीमत पहले 55 रुपये हुई। अब पिछले दिनों ही चुपके से भी ब्रेड कंपनियों ने इसकी कीमत बढ़ा कर 60 रुपये कर दी। ऐसे में ही महंगाई को हवा देने में अब मसाले भी पीछे नहीं हैं। राजधानी दिल्ली में मसालों के थोक बाजार खारी बावली में छोटी इलायची, बड़ी इलायची, काली मिर्च से लेकर अन्य मसालों की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। कारोबारियों के मुताबिक डिमांड की अपेक्षा सप्लाई कम है, जिसकी वजह से मसाले के भाव बढ़ रहे हैं।

यहां गौरतलब है कि न‌वभारत टाइम्स की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक खारी बावली में मसालों की एक बड़ी मार्केट है, जहां सभी प्रकार के मसाले थोक दाम में बिकते हैं। दिल्ली से लेकर आसपास के प्रदेशों में यहां से मसालों की सप्लाई होती है। फिलहाल ठंड की दस्तक तेज हो गई, ऐसे में आमतौर पर साग-सब्जी सस्ती हो जाती हैं, जबकि इस बार अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। अभी भी दिल्ली में गोभी 80 रुपये किलो तो गाजर 40-50 रुपये किलो, टमाटर 60 रुपये किलो, आलू 40 रुपये किलो और प्याज 50 रुपये किलो बिक रहे हैं। कहा जाता है कि इस बार बारिश का मौसम देर तक चला। इसलिए सब्जियों की बुवाई समय पर नहीं हो पाई। इसलिए लोकल सब्जियां अभी तक बाजार में नहीं आई हैं।

खैर, आम आदमी महंगी सब्जियों की बजाए दाल से गुजारा कर सकता है। जबकि दिल्ली के थोक बाजार में मसालों के दाम चढ़ गए हैं। जाहिर है कि दाल में भी मसाले ही डलते हैं। इसे लेकर नॉर्दर्न स्पाइसेज ट्रेडर्स एसोसिएशन के मुताबिक ठंड की दस्तक के बाद से मसालों की डिमांड बढ़ी है। आलम यह है कि बड़ी इलायची की कीमत थोक मंडी में 1500 रुपये प्रति किलो थी, जो अब 1700 रुपये प्रति किलो हो गईे। इसके अलावा छोटी इलायची की कीमत 2600 रुपये प्रति किलो थी, अब इसकी कीमत 3000 रुपये प्रति किलो हो गई। इसके पीछे का कारण क्रॉप की कमी है, जिसकी वजह से दाम बढ़ रहे हैं। वहीं काली मिर्च की कीमत में प्रति किलो 20 रुपये और दालचीनी की थोक कीमत में 5 से 10 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी हुई है।

ऐसे में आम आदमी हैरान-परेशान है कि उसकी रसोई का बजट कैसे काबू में रहे। जबकि बेकाबू महंगाई को रोकने के लिए सरकार गंभीर नजर नहीं आती है। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने थोक के बाद खुदरा महंगाई भी बढ़ने का मुद्दा उठाया था। केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा ने इसे सियासी-आरोप बता खारिज कर दिया था। चुनावी शोर में भले ही यह मुद्दा दबा दिया गया था, लेकिन महंगाई दर के जारी आंकड़ों को आखिर सरकार कैसे झुठला पाएगी।

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