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मुद्दे की बात : राजनीति में खुशियों की किस्में भी अलग-अलग

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नेताओं की जीत की खुशी भी अलग-अलग

वाकई गजब होती है राजनीति भी। इसमें दुख और खुशी भी अलग-अलग किस्म की होती हैं। मसलन, केंद्र में तीसरी बार मोदी सरकार बनने की खुशी बीजेपी ने अलग तरीके से मनाई। जबकि लुधियाना जैसी लोकसभा सीट हारकर भी पूर्व सांसद रवनीत सिंह बिट्‌टू के राज्यमंत्री बनने की खुशी अलग तरह की देखने को मिली। किसी खुशी में आतिशबाजी के साथ लड्‌डू बांटे गए तो कोई खुशी सिर्फ तस्वीरें खिंचवाने और बयान जारी करने तक ही सीमित रही।

दूसरी तरफ इसी सीट से कांग्रेस के प्रदेश प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग की जीत की खुशी के भी अलग-अलग रंग दिखे। कांग्रेस हाईकमान के फरमान पर पहरा देने वालों में जमकर जश्न मनाया। मीडिया हाउस तक मिठाईयां बांट आए। बहुत से नेता ऐसे भी तंगदिल दिखे जो सांसद वड़िंग के साथ तस्वीरें खिंचवा अपनी पोस्ट डालकर उंगली कटा शहीदों में शामिल रहे।

बहरहाल राजनीति में खुशी और गम के इजहार के यह अंदाज हर स्तर पर चर्चा में हैं। जो सियासत के दांव-पेंच जानते हैं, तंज भी कर रहे हैं। उनके मुताबिक यह कोई नई सियासी-परंपरा नहीं है। विभीषण शुरु से राजनीति में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं। इतना जरुर है कि चार सौ पार के नारे से काफी पीछे रही भाजपा ने केंद्र में जोड़तोड़ कर सरकार बनाई तो दिग्गज नेताओं के चेहरे पर तनावभरी खुशी साफ झलक रही थी। इसी तरह पंजाब में बीजेपी का वोट-प्रतिशत बढ़ने की खुशी के बावजूद पार्टी के दिग्गज नेता भी उसका जोरदार प्रचार पता नहीं क्यों करते दिख रहे। जबकि पार्टी का हाईटेक प्रचार तंत्र तो पंचायती चुनाव जीतने पर भी खुशी की आंधी लाने में माहिर है। खैर, ये तो सब राजनीतिक दलों का निजी मसला है कि वह खुशी या गम का इजहार कैसे करें। हालांकि जनता उनसे ज्यादा होशियार है, वो सब जानती है कि किस राजनेता के दिल में क्या है।

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