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मुद्दे की बात : अब भारत के अमेरिका से बिगड़ते रिश्ते

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अमेरिका ने रुस की मदद के आरोप में भारतीय कंपनियों पर लगाया प्रतिबंध

कनाडा से बिगड़ते रिश्तों के बीच अब अमेरिका ने भारत की 19 कंपनियों पर बैन लगा दिया है। हालांकि भारत समेत रूस, चीन, मलेशिया, थाईलैंड, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात जैसे एक दर्जन से ज्यादा देशों की 398 कंपनियों पर वहां प्रतिबंध लगा है। अमेरिका का आरोप है कि ये कंपनियां फरवरी, 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस को साजो-सामान उपलब्ध करा रही हैं, जिनका इस्तेमाल रूस युद्ध में कर रहा है।

इनमें से ज्यादातर कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सप्लायर हैं। जबकि कुछ कंपनियां विमान के पुर्जे, मशीन टूल्स आदि भी सप्लाई करती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत सरकार ने अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अमेरिका ने एक बयान जारी कर कहा है कि विदेश, ट्रेजरी और वाणिज्य विभाग ने ये प्रतिबंध लगाए हैं। अमेरिकी विदेश विभाग ने रूसी रक्षा मंत्रालय के कई सीनियर अफसरों और रक्षा कंपनियों पर भी राजनयिक प्रतिबंध लगाए हैं। उनके मुताबिक इस प्रतिबंध का उद्देश्य तीसरे पक्ष के देशों को सजा देना है। सवाल यह है कि आखिर भारतीय कंपनियों पर क्या आरोप लगे हैं ? अमेरिकी विदेश विभाग ने 120 कंपनियों की लिस्ट तैयार की हैं। इसमें भारत की चार कंपनियां भी शामिल हैं। इसमें इनके खिलाफ लगे आरोपों का विवरण भी दिया गया है। इन चार कंपनियों में एसेंड एविएशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, मास्क ट्रांस, टीएसएमडी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड और फुट्रेवो शामिल हैं। अमेरिका ने दो भारतीय नागरिकों पर भी प्रतिबंध लगाया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक एसेंड एविएशन ने मार्च, 2023 और मार्च, 2024 के बीच रूस स्थित कंपनियों को 700 से ज्यादा शिपमेंट भेजे हैं। इसमें करीब 2 लाख अमेरिकी डॉलर यानि एक करोड़ 68 लाख रुपए से ज्यादा कीमत की वस्तुएं शामिल थीं।

यहां गौरतलब है कि अमेरिका ने एसेंड एविएशन से जुड़े दो भारतीय नागरिकों पर भी प्रतिबंध लगाया है। इनका नाम विवेक कुमार मिश्रा और सुधीर कुमार है। अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक ये दोनों एसेंड एविएशन से जुड़े हैं। एसेंड एविएशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की वेबसाइट के मुताबिक यह कंपनी यह कंपनी मार्च, 2017 में बनी थी। दूसरी भारतीय कंपनी मास्क ट्रांस पर आरोप है कि उसने जून, 2023 से अप्रैल, 2024 के बीच 3 लाख डॉलर यानि करीब 2.52 करोड़ रुपए के सामान भेजें। इनका इस्तेमाल रूस ने एविएशन से जुडे़ कामों में किया। टीएसएमडी ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पर आरोप है कि उसने 4.30 लाख डॉलर यानि 3.61 करोड़ रुपए का सामान रूसी कंपनियों को दिया। इसमें इलेक्ट्रॉनिक इंटेग्रेटेड सर्किट, सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट और दूसरे फिक्स कैपेसिटर शामिल थे। एक और कंपनी फुट्रेवो पर आरोप है कि उसने जनवरी, 2023 से फरवरी, 2024 के बीच 14 लाख डॉलर यानि 11.77 करोड़ रुपए के इलेक्ट्रॉनिक सामान रूस को दिया है। इसके अलावा भारत की अबहार टेक्नोलॉजीज एंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, डेनवास सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, ईएमएसवाई टेक, गैलेक्सी बियरिंग्स लिमिटेड, इनोवियो वेंचर्स, केडीजी इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और खुशबू ऑनिंग प्राइवेट लिमिटेड पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस लिस्ट में लोकेश मशीन्स लिमिटेड, ऑर्बिट फिनट्रेड एलएलपी, पॉइंटर इलेक्ट्रॉनिक्स, आरआरजी इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड, शार्पलाइन ऑटोमेशन प्राइवेट लिमिटेड, शौर्य एयरोनॉटिक्स प्राइवेट लिमिटेड, श्रीजी इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड और श्रेया लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड का नाम भी है।

अहम सवाल है कि क्या यह कंपनियां लेनदेन नहीं कर पाएंगी ? विशेषज्ञों के मुताबिक प्रतिबंध के जरिए कंपनियों को स्विफ्ट बैंकिंग सिस्टम में ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है। इससे ये कंपनियां उन देशों से लेन-देन नहीं कर पाती हैं, जो रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस के खिलाफ हैं। जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगा है, उनकी संपत्तियां भी उन देशों में फ्रीज हो सकती हैं, जो इस बैन के पक्ष में हैं। अमेरिका चाहता है कि रूस की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाए और उसकी डिफेंस इंडस्ट्री को वो सामान ना मिल पाए, जिसकी मदद से वह युद्ध लड़ रहा है। हालांकि इस कदम से भारत-अमेरिका के संबंधों पर खास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि दोनों देशों के बीच पहले से अच्छे संबंध हैं। पहले भी भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुका है। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब अमेरिका ने भारतीय कंपनियों को निशाना बनाया है। इससे पहले नवंबर, 2023 में भी एक भारतीय कंपनी पर रूसी सेना की मदद करने के आरोप में प्रतिबंध लगाया गया था। अप्रैल, 2024 में भी ईरान के साथ व्यापार करने वाली तीन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया गया था। जिन भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए गए, उनमें जेन शिपिंग, पोर्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटिड और सी आर्ट शिप मैनेजमेंट कंपनी शामिल थीं। अमेरिका का आरोप था कि ये कंपनियां ईरान के ड्रोन्स ट्रांसफर करती हैं।

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