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मुद्दे की बात : मोदी-पुतिन का गले मिलना जायज ?

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इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने जारी किया था पुतिन के ख़िलाफ़  अरेस्ट वॉरंट

रूस के दौर पर गए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात अब बहस का विषय बनी है। दरअसल मोदी बड़ी गर्मजोशी से पुतिन के साथ गले मिले तो खासकर वेस्टर्न कंट्री में तीखी बहस शुरु हो गई। यूं तो मानवीय नजरिए से एशियन देशों में भी इस पर आलोचनात्मक हैरानी जताई जा रही है।

पीएम मोदी जब मॉस्को पहुंचे थे तो राष्ट्रपति पुतिन ने अपने घर पर गर्मजोशी से उनका स्वागत किया था। दोनों ने एक-दूसरे को गले भी लगाया। भारत के पीएम मोदी और रुसी राष्ट्रपति पुतिन के गले लगने की तस्वीर पश्चिमी देशों के विश्लेषकों को रास नहीं आई। उन्होंने इसकी जमकर आलोचना की है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में यह खबर सुर्खियों में बनी रही। अब सवाल यह उठता है कि मोदी-पुतिन गले मिले तो भला पश्चिमी देशों या मानवता के पैरोकारों को क्या तकलीफ हो गई।

दरअसल इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने पुतिन के ख़िलाफ़ मार्च, 2023 में यूक्रेन में हमले को लेकर अरेस्ट वॉरंट जारी किया था। लिहाजा उसी नजरिए से यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने भी पीएम मोदी के पुतिन से गले मिलने पर निशाना साधा था। जेलेंस्की ने तो यहां तक कहा था कि यह बहुत ही निराशाजनक है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र (भारत) दुनिया के ख़ूनी अपराधी को गले लगा रहा है। वो भी तब जब यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर जानलेवा हमला हुआ है। अब सवाल यही उठता है कि इस नजरिए से क्या मौजूदा केंद्र सरकार की विदेशी कूटनीति सही है ?

जब भारतीय छात्र रुसी द्वारा छेड़ी जंग के दौरान यूक्रेन में फंसे थे, तब भारत सरकार ने रुस के रवैये की आलोचना की थी। अब भारत के प्रधानमंत्री रुस गए तो उन्होंने वहां जबरन फौज में भर्ती किए भारतीयों का मुद्दा उठाया तो पुतिन उनकी भारत वापसी पर सहमत हो गए। सवाल नैतिकता-मानवता का है। यूक्रेन में तो हजारों भारतीय छात्र जंग के दौरान फंसे थे और एक छात्र को जान भी गंवानी पड़ी थी। तब यूक्रेन नहीं, रुस की गलती थी कि भारतीय छात्रों के हॉस्टलों पर भी हमले हो रहे थे।

अब शायद कुछ भारतीय, खासकर पंजाबी जबरन रुसी सेना में भर्ती किए गए हैं। उनमें से कमोबेश सभी सुरक्षित हैं और रहने भी चाहिएं। हमारी ओर से (पीएम ने) उनका मुद्दा तो रुस के सामने उठा दिया, लेकिन यूक्रेन में फंसे रहे भारतीय छात्रों के मामले पर चर्चा तक नहीं की, क्यों ? जिन भारतीय अभिभावकों ने अपने खून-पसीने की कमाई के लाखों रुपये दांव पर लगा मेडिकल एजुकेशन के लिए बच्चों को यूक्रेन भेजा था, उनका भविष्य तो दांव पर लगा। बहुत से दहशतजदा बच्चे फिर यूक्रेन वापस जाने को राजी नहीं हुए। उनको भारत में भी मेडिकल कालेजों में दाखिले देने में आनाकानी की गई। पीएम मोदी को क्या उनके मुद्दे पर रुस के सामने आपत्ति दर्ज नहीं करानी चाहिए थी। खैर, यह कोई नई बात नहीं है। भारत में आतंकी हमलों को लेकर पाकिस्तान की शह कोई नई बात नहीं है। इस सबके बावजूद पीएम मोदी तो अचानक पाक-प्रधानमंत्री से मिलने जा पहु्ंचे थे। वो भी बाकायदा उनके परिजनों के लिए गिफ्ट लेकर तो अब रुस में पुतिन से गले मिलने पर किसी को हैरानी या परेशानी क्यों हो।

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