महंगाई दर के ताजा आंकड़े कैसे झुठलाएगी सरकार
कभी महंगाई के मुद्दे पर सरकार गिरने की नौबत आ जाती थी। अब फेस्टिवल सीजन में भले ही महंगाई की मार आम आदमी पर साफ नजर आ रही है, लेकिन त्यौहार की रौनक-शोर के बीच यह मुद्दा कहीं दबा नजर आ रहा है। बेशक बीते लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने महंगाई को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। सियासी-रवायत के मुताबिक तब भी केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा गठबंधन ने इसे नकारते हुए कांग्रेस का मखौल भी उड़ाया था।
खैर बीते दिनों थोक महंगाई दर के आंकड़ों के बाद खुदरा महंगाई के आंकड़े भी जारी हुए। जिसके सितंबर में भारत की खुदरा महंगाई दर सालाना आधार पर 5.49 प्रतिशत तक बढ़ गई। यह इजाफा खाने-पीने के चीजों की कीमतें लगातार बढ़ने के कारण हुआ। खुदरा महंगाई दर पिछले महीने दर्ज किए गए 5 साल के निचले स्तर 3.65% से कहीं अधिक है। जुलाई के बाद पहली बार यह भारतीय रिजर्व बैंक के 4% के मध्यम अवधि के लक्ष्य को पार कर गई।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानि सीपीआई बास्केट में आधी हिस्सेदारी रखने वाले खाद्य पदार्थों की महंगाई दर सितंबर में 9.24% पर पहुंच गई। अगस्त महीने में खाद्य पदार्थों की खुदरा महंगाई दर 5.66 थी। इससे पहले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानि सीपीआई आधारित खुदरा महंगाई दर जुलाई 2024 में 3.6 प्रतिशत और अगस्त 2024 में 3.65 प्रतिशत थी। जुलाई-अगस्त दोनों ही महीनों में खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक के 4 प्रतिशत के लक्ष्य के भीतर थी। दूसरी तरफ अगस्त, 2023 में सीपीआई आधारित खुदरा महंगाई दर 6.83 प्रतिशत थी।
सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के महंगे होने से थोक मूल्य मुद्रा-स्फीति सितंबर में बढ़कर 1.84 फीसदी हो गई। अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक यानि डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति 1.31 फीसदी थी। पिछले साल सितंबर में यह 0.07 फीसदी घटी थी। सोमवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य मुद्रास्फीति सितंबर में बढ़कर 11.53 फीसदी हो गई, जबकि अगस्त में यह 3.11 फीसदी थी। इसकी वजह सब्जियों की मुद्रास्फीति रही, जो सितंबर में 48.73 फीसदी बढ़ी थी। अगस्त में यह 10.01 फीसदी घट गई थी। आलू की मुद्रास्फीति सितंबर में 78.13 और प्याज की 78.82 प्रतिशत पर उच्च स्तर पर बनी रही। ईंधन और बिजली श्रेणी में सितंबर में 4.05 फीसदी की अपस्फीति देखी गई, जबकि अगस्त में 0.67 प्रतिशत की अपस्फीति हुई थी।
इसके बावजूद सरकार यह बात मानने की राजी नहीं है कि महंगाई दर किसी भी स्तर पर बढ़ी है। हालांकि जमीनी हकीकत यही है कि खुदरा महंगाई बढ़ने का साफ असर आम आदमी यानि मध्यम व निन्म-मध्यम वर्ग की जेब पर नजर आ रहा है। तभी फेस्टिवल सीजन में नौकरीपेशा और कामगार अपने खरीदारी के बजट में बेहद कटौती कर चुके हैं। इस सबके बीच भले ही सरकार महंगाई के मुद्दे को विपक्ष का राजनीतिक पैतरा बताकर इसकी धार कुंद करने की कोशिश करे, लेकिन देर-सबेर इसका व्यापक असर देखने को मिल सकता है।
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