इसरो ने किया लॉन्च यह मिशन, जो भारतीय अंतरिक्ष उड़ानों के लिए निहायत जरूरी
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो ने 2024 के अंत व 2025 की शुरुआत में अंतरिक्ष में खास मिशन की नींव रख रहा है। जो भविष्य की उड़ानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इस स्पेडेक्स मिशन मिशन में दो छोटे अंतरिक्ष यान शामिल हैं, जिनमें हर एक का वजन करीब 220 किलो है। इन्हें रॉकेट पीएसएलवी-सी-60 के जरिए लॉन्च किया गया है।
इसरो ने 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा से स्पेडेक्स मिशन यानि स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन लॉन्च किया था। इसके तहत पीएसएलवी-सी 60 रॉकेट से दो स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी से 470 किमी ऊपर तैनात किए थे। नवभारत टाइम्स की इस रिपोर्ट में इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार, ये यान पृथ्वी से 470 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाएंगे। इनमें एक चेजर और दूसरा टारगेट नाम का उपग्रह है। इस मिशन का मकसद सफल डॉकिंग, डॉक किए गए अंतरिक्ष यानों में एनर्जी ट्रांसफर करना और अनडॉकिंग के बाद पेलोड का संचालन करना है।
इसरो ने स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट का सफल ट्रायल कर दो स्पेस सैटेलाइट के बीच दूरी पहले 15 मीटर, फिर 3 मीटर तक रखी। इसके बाद दोनों सैटेलाइट को वापस सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया। इसरो ने बताया, डॉकिंग ट्रायल का डेटा एनालिसिस किया जा रहा है। इसके बाद आगे की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। स्पेडेक्स मिशन की डॉकिग दो बार टल चुकी है। इसरो में साइंटिस्ट रहे विनोद कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि स्पेडेक्स मिशन के तहत किसी अंतरिक्ष यान को ‘डॉक’ और ‘अनडॉक’ करने की क्षमता को प्रदर्शित किया जाएगा। सरल शब्दों में कहें तो एक अंतरिक्ष यान से दूसरे अंतरिक्ष यान के जुड़ने को ‘डॉकिंग’ और अंतरिक्ष में जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को ‘अनडॉकिंग’ कहते हैं। यह प्रक्रिया बेहद सावधानी से की जाती है, क्योंकि 28,800 किमी की रफ्तार से दूसरे ऑब्जेक्ट से जुड़ने वाले स्पेसक्रॉफ्ट के तेजी से टकराकर भस्म होने का खतरा रहता है। स्पेडेक्स मिशन एक किफायती मिशन है।
यह तकनीक चंद्रयान-4 और गगनयान जैसी भारत की अंतरिक्ष से जुड़ी महत्वकांक्षाओं के लिए आवश्यक है। इनमें भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन के अलावा चंद्रमा पर भारतीय एस्ट्रोनॉट के भेजने जैसी योजनाएं शामिल हैं। ‘इन-स्पेस डॉकिंग’ टेक्नोलॉजी की जरूरत तब होती है, जब एक कॉमन मिशन को अंजाम देने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने की जरूरत होती है। यह एक जटिल काम है, जिसे अंजाम देने के लिए बेहद संवेदनशील तरीके से डेटा का इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि इसरो हर कदम फूंक-फूंककर रख रहा है। स्पेडेक्स मिशन के तहत अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले दोनों तेज रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगाएंगे। ये दोनों समान गति के साथ एक ही कक्षा में स्थापित होंगे। इसे ‘फार रांदेवू’ भी कहा जाता है। स्पेडेक्स मिशन की सफलता के बाद अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत दुनिया में ऐसा चौथा देश बन गया है, जिसके पास स्पेस डॉकिंग टेक्नोलॉजी है।
इस तैनाती के बाद दोनों स्पेसक्राफ्ट्स करीब 29,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अंतरिक्ष में गए। ये रफ्तार बुलेट की स्पीड से 10 गुना ज्यादा थी। विनोद कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक 5 किमी से 0.25 किमी के बीच की दूरी तय करते समय लेजर रेंज फाइंडर का इस्तेमाल किया गया। 300 मीटर से 1 मीटर की रेंज के लिए डॉकिंग कैमरे का इस्तेमाल होगा। वहीं, 1 मीटर से 0 मीटर तक की दूरी पर विजुअल कैमरा इस्तेमाल में आएगा। सफलतापूर्वक डॉकिंग के बाद दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर को दिखाया जाएगा। फिर स्पेसक्राफ्ट्स की अनडॉकिंग होगी और ये दोनों अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन को शुरू करेंगे। करीब दो साल तक ये इससे वैल्युएबल डेटा मिलता रहेगा। यदि मिशन आगे सफल रहता है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। मिशन की कामयाबी पर ही भारत का चंद्रयान-4 मिशन निर्भर है, जिसमें चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे।
अपने छोटे आकार और भार की वजह से स्पेडेक्स और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि दो बड़े अंतरिक्ष यान को डॉक करने की तुलना में मिलन और डॉकिंग युद्धाभ्यास के लिए अधिक सटीकता की आवश्यकता होती है। यह मिशन पृथ्वी से जीएनएसएस के समर्थन के बिना चंद्रयान-4 जैसे भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए आवश्यक स्वायत्त डॉकिंग का अग्रदूत होगा।
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