मुद्दे की बात : डॉ.मनमोहन काबिल पीएम रहे तो कांग्रेसी बोलते क्यों नहीं

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मनमोहनी-चाल फिर भूल गई कांग्रेस ?

इस वक्त लोकतंत्र का महापर्व यानि लोकसभा चुनाव समापन की ओर बढ़ रहा है। चुनाव के शुरुआती चरण में तो सत्ता-पक्ष पूरी तरह आक्रमक और विपक्ष बिखरा सा शांत दिखा। एकबारगी लगा कि शायद चुनाव एकतरफा होने के आसार हैं। फिर तीसरे-चौथे चरण में एकदम से पाला पलटता दिखने लगा। विपक्ष एकजुट हो तेवर दिखाने लगा, वहीं सत्ता पक्ष डिफेंसिव होता नजर आया। अब चारों तरफ यह चर्चा तो होने लगी है कि चुनावी नतीजे जो भी आए, लेकिन चार सौ पार वाला जुमला दमदार नहीं लग रहा।

खैर, इस सबके बीच एक बड़ी चूक विपक्ष की तरफ से सामने आई। इंडिया गठबंधन की अगुवाई कांग्रेस कर रही है, लिहाजा वही उस चूक यानि गलती को फिर-फिर दोहराने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार नजर आती है। याद करिए पहली बार यूपीए एलायंस सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री पद को लेकर नया राजनीतिक-प्रयोग किया गया था। एलायंस की चेयरपरसन सोनिया गांधी के ही प्रस्ताव पर आमराय से डॉ.मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया। फिर जो कुछ उतार-चढ़ाव आए हों, सरकार पूरे पांच साल आराम से चली। फिर 2009 के आम चुनाव में विपक्ष ने भाजपा की अगुवाई में यूपीए को शिकस्त देने के लिए पूरा जोर लगाया, मगर नाकाम रही। कांग्रेस ने डॉ.मनमोहन का चेहरा ही सामने रखा और कुल मिलाकर नतीजा यह निकला की यूपीए ने दोबारा सत्ता हासिल कर ली।

यहां काबिलेजिक्र पहलू हैं कि तब तक डॉ.मनमोहन ऐसी सियासी शख्सियत भी बन गए, जो नेहरु के बाद लगातार दो बार पीएम बने। उनकी बाकी उपलब्धियां जो भी रहीं, वह सबसे पढ़े-लिखे यानि काबिल पीएम के तौर पर भी दुनियाभर में भारत की इमेज को और निखारने का श्रेय ले गए। खैर, आगे बढ़ते हैं तो साल 2014 के आम चुनाव में बड़ा उलटफेर हो गया। सत्ता का केंद्र भाजपा बनी और पीएम पद नरेंद्र मोदी के हिस्से में आया। तब हताश-निराश कांग्रेस व उसके सहयोगी बचाव में बड़ा तर्क दे रहे थे कि हम मनमोहन सरकार की उपलब्धियां जनता तक सही तरीके से नहीं पहुंचा सके।

विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस को 2019 में फिर मौका मिला था, लेकिन शायद तैयार पहले से नहीं कर सके। मोदी-लहर की काट के लिए मनमोहन सरकार की पुरानी उपलब्धियां भी सही से जनता के सामने पेश नहीं कर सके। नतीजतन नेहरु और डॉ.मनमोहन के रिकॉर्ड की बराबरी करते हुए मोदी लगातार दूसरी बार पीएम बन गए। इस बार आम चुनाव को अग्नि-परीक्षा मानते हुए भाजपा-एनडीए ने मोदी की अगुवाई में मनोवैज्ञानिक-दांव चला। उन्होंने हुंकार भरी-अबकी बार चार सौ पार। इतनी बड़े चेलेंज के बावजूद यूपीए से इंडिया-गठबंधन बन चुके विपक्ष की लीडर कांग्रेस तक नहीं जागी। डॉ.मनमोहन की अगुवाई वाली अपनी दस साल की सरकार की उपलब्धियों को मजबूती से जनता के बीच नहीं रखा गया। हद ये कि कांग्रेसियों ने भी शायद ही चुनाव प्रचार में कहीं भूले-भटके डॉ.मनमोहन का नाम लिया हो या तस्वीरें इस्तेमाल की हो। खैर, चुनावी नतीजे जो भी आए, लेकिन अगर तीसरी बार एनडीए सरकार बनी तो इसके लिए किसी हद तक डॉ.मनमोहन, उनकी कारगुजारियों की अनदेखी भी जिम्मेदारी होगी।

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