आया राम, गया राम ने तेजी से गिराया राजनीति का नेैतिक स्तर
राजनीति में नैतिकता का स्तर कितनी तेजी से गिर रहा, इसी आम चुनाव में साफ संकेत मिल रहे हैं। पूरे देश में प्रमुख राजनीतिक दल भी आया राम, गया राम वाली मौकापरस्त राजनीति से अछूते नहीं रहे। पंजाब भी राजनीति की नैतिक गिरावट की चपेट में है। यहां एक पार्टी छोड़कर दूसरी में जाकर टिकट लेने वाले नेताओं की तो फहरिस्त खासी लंबी है। कुछ नेताओं ने हद ही कर दी। जैसे जालंधर में पिछली बार एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाकर सुशील रिंकू उप चुनाव जीत सांसद बने। दोबारा उसी पार्टी ने इस लोस चुनाव में टिकट दिया तो वह पाला बदल बीजेपी में चले गए। अब बीजेपी से वहां उम्मीदवार हैं।
इधर, लुधियाना में तीसरी बार कांग्रेस से सांसद बने रवनीत सिंह बिट्टू को चौथी बार फिर इसी पार्टी से टिकट मिलना तय था। इसके बावजूद वह ऐन मौके पर बीजेपी में जाकर उसके उम्मीदवार हैं। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से दो कदम आगे चंडीगढ़ से शिरोमणि अकाली दल-बादल के उम्मीदवार हरदीप सिंह बुटरेला नजर आए। सुश्री निर्मला ने तो टिकट मिलने से पहले ही चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं होने का तर्क देकर मैदान छोड़ा था। चंडीगढ़ से शिअद उम्मीदवार हरदीप ने तो हद ही कर दी। उन्होंने तो चुनाव प्रचार के चरम पर पहुंचने के बाद मैदान छोड़ टिकट ही पार्टी मुखिया को लौटा दिया। हालांकि उन्होंने भी तर्क यही दिया कि वह चुनाव का खर्च नहीं उठा सकते हैं। खैर, ये तो पंजाब से बानगी भर हैं।
देशभर में ऐसे तमाम राजनेता हैं, जिन्होंने अपने निजी हितों की खातिर मतदातों का भरोसा ही तोड़ दिया। जिन पार्टियों से उम्मीदवार रहते उनको मतदाताओं ने जिताया था, उसी पार्टी को छोड़ने में उन्होंने पलभर की देरी भी नहीं की। ऐसे कई राजनेता अब विपरीत विचारधारा वाली किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार बन चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं।
ऐसे हालात में आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर इन मौकापरस्त नेताओं को इस आम चुनाव में मतदाताओं ने जिता दिया तो वे भविष्य में क्या करेंगे। क्या वाकई वे मतदाताओं का भरोसा फिर से नहीं तोड़ेंगे। उनके लिए क्या जनहित सर्वोपरि होगा या उनके निजी हित हावी रहेंगे। गंभीरता से विचार करें तो मौकापरस्ती की राजनीति धीरे-धीरे लोकतंत्र को खोखला कर रही है, जिसका सबसे बड़ा खमियाजा लोकतंत्र के इस महापर्व में मतदान करने वाले ही भुगतेंगे।
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