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मुद्दे की बात : त्यौहार का ‘धर्म’ तय कर रहे ठेकेदार

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दिवाली सिर्फ हिंदुओं की, एमपी में लगे बजरंग दल के होर्डिंग

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की असली ताकत उसका कौमी भाईचारा है। जहां परंपराओं की जड़ों को मजबूत करने वाले सभी पर्व मिल-जुलकर मनाए जाते हैं। इसके बावजूद देश में भाईचारे की फिजां में जब-तब सांप्रदायिकता का जहर घोलने की साजिशें कथित धर्म के ठेकेदार करते रहते हैं। अब खुशियों-रौशनियों के पवित्र त्यौहार दिवाली से पहले मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव को ठेस पहुंचाने वाली मुहिम चलाई गई।

प्रदेश के अलग-अलग शहरों में बजरंग दल ने होर्डिंग-पोस्टर लगाए हैं। जिनके जरिए इस हिंदूवादी संगठन ने लोगों से अपील की है कि दिवाली पर हिंदुओं की दुकान से ही सामान खरीदें। दरअसल, अलग-अलग चौक-चौराहों पर यह पोस्टर लगाए गए हैं। इसमें लिखा है कि अपना त्यौहार, अपनों से व्यवहार। दिवाली की खरीदी उनसे करें, जो आपकी खरीदी से दिवाली मना सकें। इसके बाद नीचे लिखा है कि निवेदक बजरंग दल। ऐसे पोस्टर मध्य प्रदेश के अलग-अलग शहरों में दिख रहे हैं।
बजरंग दल ने इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है कि यह हिंदुओं का त्यौहार है। आप हिंदुओं की दुकान से ही सामान खरीदें। हालांकि पहली बार एमपी में ऐसे पोस्टर सार्वजनिक रूप से लगाए गए हैं। इससे पहले बड़े पैमाने पर ऐसे पोस्टर नहीं लगे थे। देवास में भोपाल चौराहे पर यह होर्डिंग है। वहीं, भोपाल शहर में अलग-अलग जगहों पर होर्डिंग लगाई गई है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में दिवाली को लेकर सीएम मोहन यादव ने यह अपील जरुर की थी कि आप देसी दुकानों से सामान खरीदें। उन्होंने इसकी शुरुआत खुद से कर भी दी थी। वह लोकल दुकानों से जाकर सामान की खरीदी करने गए थे। वहीं, बजरंग दल ने सीएम की स्वदेशी अपनाने की इस इसे अलग ही रंगत देते हुए ‘देसी’ की बजाए ‘हिंदू’ का नारा बुलंद कर दिया। खैर, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। यूपी के अति-संवेदनशील जिले मुजफ्फर नगर में महा शिवरात्रि पर ऐसा ही सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश की गई थी। जो अदालती फरमान के बाद नाकाम हो गई थी। बीते दिनों देवभूमि कहलाने वाले उत्तराखंड में भी ऐसे ही प्रयास हुए थे। इस सबके बावजूद सबसे आशाजनक पहलू यही है कि दिवाली की आतिशबाजी, शिवरात्रि की कांवड़ बनाने वाले गैर-हिंदू भी होते हैं। देश की जनता बिना भेदभाव उनके हुनर की कद्र करते हुए उनके बनाए उत्पाद खरीदती रही और भविष्य में भी ऐसी ही उम्मीदें हैं।

यह बात दीगर है कि भारतीय संस्कृति से अंजान कथित धर्म के ठेकेदार देश में त्यौहारों को भी जाति-धर्म के चश्मे से देखते हैं। संतोष की बात यही है कि ऐसे सांप्रदायिक तत्वों की अपील या मुहिम कौमी भाईचारे के बेहिसाब पैरोकारों पर कोई नकारात्मक असर नहीं डालती, यह हमारे भारतवर्ष की विशेषता है।

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