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मुद्दे की बात : म्यांमार का फायदा भारत नहीं चीन उठा रहा

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चीन फिलहाल म्यांमार से दुर्लभ खनिजों का भंडार जमा कर रहा

चीन फिलहाल म्यांमार से दुर्लभ खनिजों का भंडार जमा कर रहा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे चीन जल्द ही इन खनिजों के लिए एक बड़ा आपूर्तिकर्ता बन सकता है। साल 2023 की पहली छमाही में चीन ने म्यांमार से दुर्लभ खनिजों का आयात 70 फीसदी तक बढ़ा दिया है। यह जानकारी चीनी सीमा शुल्क के आंकड़ों से मिली है। चीन की यह रणनीति उसे भविष्य में दुर्लभ खनिजों की सप्लाई चैन पर कंट्रोल दिला सकती है।

चीन की खनन कंपनियां म्यांमार के काचिन क्षेत्र में अपना कामकाज बढ़ा रही हैं। यहां काबिलेजिक्र है कि काचिन दुर्लभ खनिजों से भरपूर है। खासतौर पर पनवा और चिप्वे शहरों के आसपास, जो दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत से सटे हैं, खनन गतिविधियां होती हैं। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वे के अनुसार, 2023 में दुनिया के कुल दुर्लभ खनिज उत्पादन में म्यांमार का हिस्सा 11 फीसदी तक था। जबकि चीन का हिस्सा 68 फीसदी और अमेरिका का 12 फीसदी तक ही रहा। इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाले डिस्प्रोसियम और टर्बियम जैसे दुर्लभ खनिज म्यांमार और चीन में ही ज़्यादा पाए जाते हैं। हालांकि, म्यांमार में इन खनिजों को रिफाइन करने की क्षमता नहीं है। जानकारों की नजर में चीन उसकी इसी कमजोरी का जमकर फायदा उठा रहा है।

चीन फिलहाल म्यांमार से कच्चे दुर्लभ खनिजों का आयात कर रहा है और उन्हें अपने देश में ले जाकर रिफाइन कर रहा है। इससे चीन को दुर्लभ खनिजों की सप्लाई पर नियंत्रण मिल रहा है। दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा उद्योगों में इन खनिजों की मांग बढ़ रही है। ऐसे में चीन की यह रणनीति उसे वैश्विक बाजार में एक मजबूत स्थिति में ला सकती है। म्यांमार के एक प्रमुख मीडिया आउटलेट, द इरावदी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘म्यांमार का चीन के दुर्लभ खनिजों के गोदाम में तब्दील होना तेज और विनाशकारी रहा है। काचिन क्षेत्र, जो कभी अपने घने जंगलों और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता था, अब खनन गड्ढों से भरा एक चांद जैसा उजाड़ जैसा दिखता है। यह खनन पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। स्थानीय लोगों के जीवन पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। जबकि भारत इस मामले में कोई फायदा नहीं उठा सका है।

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