मुद्दे की बात : हिंसक होते बच्चे बन रहे हत्यारे

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यूं तो दुनिया के तमाम देशों में, खासतौर पर यूरोप में बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति के घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। हाल-फिलहाल ही ऐसे दो मामले देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आए, जो समाज के लिए बेहद चिंतित करने वाले हैं। ये मामले सरकार के साथ समाज द्वारा भी सामने खड़े बहुत बड़े खतरे को नजरंदाज करने के घातक परिणाम भी माने जा सकते हैं।
ताजा मामला कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से सामने आया। जहां एक 18 साल युवक ने मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने के दौरान बहस के बाद अपने छोटे भाई की हथोड़े से पीट-पीटकर हत्या कर दी। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की यह स्तब्ध कर देने वाली खौफनाक खबर लोकसभा चुनाव के शोर में कही दबकर रह गई। खबर के मुताबिक, मरने वाला बच्चा प्रणीश था और आरोपी उसका बड़ा भाई शिवकुमार है। पढ़ाई छोड़ देने की वजह से ही शायद शिवकुमार को मोबाइल फोन चलाने की लत लगी होगी। छोटे भाई ने फोन देने से इंकार किया तो वह आपा खो बैठा। दिल दहलाने वाली इस घटना के वक्त उनके माता-पिता घर में नहीं थे।
दूसरी घटना उत्तराखंड से लगे यूपी के जिला बिजनौर में वीरवार देर रात घटी। जहां 5 और 7 साल की दो बहनों की हत्या कर दी गई। हैरानी की बात यह है कि हत्यारोपी 13 साल की उन दोनों बच्चियों की सौतेली बड़ी बहन है। उसने साथ सो रही दोनों बहनों का दुपट्टे से गला घोंटा। पुलिस पूछताछ में उसने बताया कि हमारा बड़ा परिवार है, पिता परेशान रहते थे। घर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता था। इस कारण मैंने दोनों छोटी बहनों को मार दिया। लड़की की मां ने दो शादी कीं । आरोपी लड़की पहले पति से और मरने वाली दोनों मासूम दूसरे पति से थीं।
इसे लेकर पंजाब यूनिवर्सिटी के जीएचजी खालसा कॉलेज गुरुसर सुधार की मनोविज्ञान विभाग की प्रमुख डॉ. परमजीत कौर की टिप्पणी बेहद अहम लगी। उनके मुताबिक ऐसे से अपराध जानबूझकर और कभी-कभी पूर्व-निर्धारित होते हैं। जैसे झगड़े, लूटपाट, गोलीबारी और हत्याएं इसी श्रेणी में आती। इसके मुख्य कारण ये हो सकते हैं कि कई बच्चे और किशोर अपने स्कूलों और आस-पड़ोस और यहां तक कि अपने घरों के भीतर भी हिंसा का शिकार होते हैं।
हिंसा के संपर्क में आने वाले कुछ बच्चे अपने संघर्षों को हिंसक तरीके से हल करना सीखते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अन्य लोग हिंसा और दूसरों के दर्द और संकट के प्रति असंवेदनशील हो गए हैं।
बकौल डॉ. परमजीत, कुछ लोग अपने आस-पास के लोगों और दुनिया से बचते हुए एक आवरण में छिप जाते हैं। लंबे समय तक कुछ जोखिम में रहने वाले बच्चों में इसका खतरा बढ़ जाता है। ऐसे जोखिम व्यवहारिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक समस्याओं के रुप में होते हैं। लिहाजा इस एक्सपर्ट व्यू से यह भी नतीजा निकाल सकते हैं कि शैक्षणिक विफलता, शराब और मादक द्रव्यों का सेवन आदि इसी साइको-ट्रैक से गुजरने के दौरान बच्चों को मनोविकृत और हिंसक बना देता है। जब ये बच्चे अपने द्वारा अनुभव की गई हिंसा को दोहराते हैं, तो वे हिंसा के चक्र में फंस जाते हैं जो आने वाली पीढ़ियों तक जारी रह सकता है। यह बाल अपराध की सबसे घातक श्रेणी भी मान सकते हैं। यदि समाज के साथ सरकारें समय रहते इसके प्रति सचेत नहीं होंगी तो देश के तमाम हिस्सों से ऐसे क्रूरतम अपराध बच्चों द्वारा किए जाने की आशंका को नकारा नहीं जा सकेगा।
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