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मुद्दे की बात : एनडीए में बदले बीजेपी के समीकरण

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केंद्र सरकार बनाने के बाद से सहयोगियों संग भाजपा का रुख लचीला

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानि एनडीए में भारतीय जनता पार्टी के समीकरण बदल गए हैं। जाते साल में 25 दिसंबर को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एनडीए दलों के सभी नेताओं को अपने आवास पर चाय-नाश्ते के लिए आमंत्रित किया। यह अवसर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म शताब्दी वर्ष मनाने का था। भाजपा के दिग्गज नेता, जिन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की संकल्पना की और उसे क्रियान्वित किया।

बैठक के दौरान सभी दलों ने बीआर अंबेडकर को लेकर भाजपा और उसके नेताओं पर कांग्रेस के हमले का जवाब देने के लिए एकजुट स्वर में बोलने पर सहमति व्यक्त की। यह भी सहमति हुई कि एनडीए के सभी दल महत्वपूर्ण मुद्दों पर मिलते रहेंगे और एक संयुक्त रणनीति बनाएंगे। देशभर में एनडीए सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करने में भाजपा नेतृत्व की अगुवाई के साथ एनडीए की गूंज मजबूत हुई है। इस साल की शुरुआत में हुए आम चुनाव तक सब कुछ भाजपा के इर्द-गिर्द ही था, क्योंकि पार्टी ने पिछले दो चुनावों में अपने दम पर बहुमत हासिल किया था। इससे सहयोगी दलों के लिए बहुत कम गुंजाइश बची थी।

हालांकि, इस साल के चुनावों के बाद समीकरण बदल गए, क्योंकि भाजपा बहुमत के आंकड़े से नीचे 240 पर ही रह गई। वर्ष 2025 एनडीए के लिए एक इकाई के रूप में निर्णायक वर्ष होने की संभावना है। इसमें सरकार विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर सहयोगियों से समर्थन मांगेगी। साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव भी एनडीए की संयुक्त ताकत की परीक्षा लेंगे। जब बिहार में एनडीए के सहयोगी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाह काराकाट से लोकसभा चुनाव हार गए तो उन्होंने हार के लिए बीजेपी नेताओं के एक वर्ग को जिम्मेदार ठहराया।

जैसे ही नई सरकार बनी तो दो प्रमुख सहयोगी, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और बिहार में जेडीयू ने केंद्रीय बजट में अपने राज्यों के लिए विशेष पैकेज की मांग शुरू कर दी। हालांकि, पार्टियों ने राज्यों को विशेष दर्जा देने की अपनी पिछली मांग पर नरम रुख अपनाया, लेकिन विशेष पैकेज पर जोर दिया। अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण वर्गीकरण पर फैसला सुनाया। एससी/एसटी आरक्षण वर्गीकरण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। केंद्रीय मंत्री और लोजपा नेता चिराग पासवान ने फैसले का विरोध किया और यहां तक कहा कि वह शीर्ष अदालत में समीक्षा याचिका दायर करेंगे।

इसी महीने केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री स्कीम के तहत 45 मिड-लेवल सरकारी पदों के लिए विज्ञापन निकाला। विज्ञापन जारी होने के बाद बिहार के दो सहयोगी दलों लोजपा और जेडीयू ने इस पर आपत्ति जताई। लोजपा नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि वह सरकार से विज्ञापन वापस लेने का अनुरोध करेंगे। वक्फ बिल पर एनडीए के प्रमुख सहयोगियों ने अपनी आपत्ति जताई और सरकार ने इसे जेपीसी को भेजने पर सहमति जताई। बीजेपी की तरफ से की गई पैंतरेबाजी की उपर्युक्त सभी घटनाओं ने सुर्खियां बटोरीं, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि सहयोगियों ने अपनी आवाज बुलंद कर ली है और महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय खुलकर सामने रख रहे हैं।

बीजेपी लीडरशिप ने पार्टी के भीतर और साथ ही सरकार के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए कार्रवाई की। एनडीए को एक एकजुट इकाई के रूप में पेश करने के प्रयास में सरकार के साथ-साथ सरकार के बाहर भी समावेश की राजनीति की गई। अगस्त में, उपेंद्र कुशवाहा बिहार से राज्यसभा के लिए एनडीए उम्मीदवारों में से एक थे। पार्टी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में एक ओबीसी नेता को नाराज नहीं करना चाहती थी।

लोकसभा चुनाव के दौरान, कुशवाहा मतदाताओं का एक वर्ग विपक्षी इंडिया ब्लॉक के साथ था। उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजकर, बीजेपी ने न केवल अपने सहयोगियों में से एक को मैनेज किया, बल्कि बिहार में लगभग 4.3% की हिस्सेदारी रखने वाले कुशवाहा समुदाय को भी एक संदेश दिया। केंद्रीय बजट में, आंध्र प्रदेश और बिहार पर विशेष ध्यान दिया गया। इसमें सरकार ने दोनों राज्यों को अतिरिक्त वित्तीय मदद की पेशकश की। सरकार ने लैटरल एंट्री भर्ती पर अपना रुख वापस ले लिया और कुछ सहयोगी दलों की मांग के अनुसार विज्ञापन वापस ले लिया। पार्टी और सरकार यह संदेश देने में सफल रही कि वे निर्णय लेने में लचीले हैं। साथ ही सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। लैटरल एंट्री वापस लेने के फैसले का चिराग पासवान और अन्य ने स्वागत किया। सहयोगी दल नीतिगत निर्णयों में अपनी बात रखने से खुश थे और विवादास्पद मुद्दों पर वे बीजेपी के साथ आए।

बीजेपी ने टीडीपी, आंध्र प्रदेश में जन सेना और कर्नाटक में जेडीएस को शामिल करके दक्षिण में एनडीए के कुनबे का विस्तार किया है। हालांकि, इसे तमिलनाडु में इसका विस्तार करने की जरूरत है, जहां पार्टी छोटी पार्टियों के साथ आगे बढ़ी और एआईएडीएमके के साथ गठबंधन नहीं किया। शुरुआती संकेत यह हैं कि भाजपा 2026 में राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर एआईएडीएमके के साथ गठबंधन पर विचार कर रही है। सबको साथ लेकर चलने के भाजपा के प्रयासों की सबसे बड़ी पुष्टि है। जब सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पेश किया, तब भी ये प्रयास सफल रहे। एनडीए के सभी दलों ने प्रस्तावित विधेयक को समर्थन दिया।

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