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मुद्दे की बात : बांग्लादेश-पाकिस्तान की सेना में साझेदारी, भारत के लिए चुनौती !

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द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के साथ ही दोनों देश सैन्य सहयोग बढ़ाने में भी लगे

बांग्लादेश की सत्ता से शेख़ हसीना के बेदख़ल होने के बाद उसकी पाकिस्तान से क़रीबी बढ़ने की आशंका भारत को पहले से ही थी। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच ना केवल द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर बात हो रही है, बल्कि दोनों देश सैन्य सहयोग बढ़ाने में भी लगे हैं।

मीडिया में आ रही खबरों और बीबीसी की खास रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए यह मसला बड़ी चिंता पैदा कर सकता है। बांग्लादेश पहले पूर्वी पाकिस्तान था और 1971 में पाकिस्तान से आज़ाद होकर एक संप्रभु राष्ट्र बना था। शेख़ हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग जब भी सत्ता में रहीं हैं, तब पाकिस्तान से संबंध तनाव भरे रहे। ख़ालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी जब सत्ता में रही तो पाकिस्तान से संबंध अच्छे रहे। अभी दोनों पार्टियां सत्ता से बाहर हैं और मोहम्मद युनूस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार पाकिस्तान से संबंध बढ़ा रही है।

पिछले साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस के बीच दो बार मुलाक़ात हो चुकी है। बांग्लादेश के हाई-रैंकिंग सैन्य अधिकारी जनरल एसएम कमरुल हसन 14 जनवरी को पाकिस्तान गए थे। जनरल कमरुल ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से मुलाक़ात की थी। पिछले हफ़्ते पाकिस्तान से बांग्लादेश के लिए एक और हाई प्रोफाइल दौरा हुआ था। पाकिस्तान के शीर्ष के ट्रेड निकाय फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ का एक प्रतिनिधिमंडल बांग्लादेश गया था। पिछले एक दशक में इस तरह का ट्रेड प्रतिनिधिमंडल पहली बार पाकिस्तान से बांग्लादेश गया था।

इस प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात बांगलादेश के वाणिज्य मंत्री से हुई थी. इस दौरे में दोनों देशों के बीच एक एएमओयू पर हस्ताक्षर हुआ था. पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने बांग्लादेश से मुक्त व्यापार समझौते की अपील की है। अभी बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सालाना द्विपक्षीय व्यापार महज 70 करोड़ डॉलर का है। अगले एक साल में बांग्लादेश से पाकिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार तीन अरब डॉलर तक होने की उम्मीद है। विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग गहराया तो भारत की चिंता और बढ़ सकती है। माहिरों की मानें तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती क़रीबी के कारण ही भारत ने तालिबान से क़रीबी बढ़ानी शुरू कर दी।

थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्टडीज़ एंड फॉरन पॉलिसी के वाइस प्रेजिडेंट प्रोफ़ेसर हर्ष पंत भी मानते हैं कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग बढ़ना भारत के लिए परेशान करने वाला हो सकता है। उनके मुताबिक यह बांग्लादेश को तय करना है कि अपनी दिशा किस ओर करना चाहता है। अगर उसका मक़सद भारत विरोध के नाम पर पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ानी है तो इसे आज़मा लेने में उसे कौन रोक देगा। शेख़ हसीना के समय में भी बांग्लादेश और चीन के बीच काफ़ी गहरा सैन्य सहयोग था.।भारत जब बांग्लादेश और चीन की सैन्य साझेदारी के बीच रह सकता है तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग के बीच भी रह सकता है।

बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीब-उर रहमान पाकिस्तान को लेकर बहुत सख़्त रहे थे। यहां तक कि शेख मुजीब-उर रहमान ने बांग्लादेश को मान्यता दिए बिना पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो (बाद में प्रधानमंत्री) से बात करने से इनकार कर दिया था। पाकिस्तान भी शुरू में बांग्लादेश की आज़ादी को ख़ारिज करता रहा। हालांकि पाकिस्तान के तेवर में अचानक परिवर्तन आया। फ़रवरी, 1974 में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ़्रेंस का समिट लाहौर में आयोजित हुआ, तब भुट्टो प्रधानमंत्री थे और उन्होंने मुजीब-उर रहमान को भी औपचारिक आमंत्रण भेजा। पहले मुजीब ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में इसे स्वीकार कर लिया था। 1974 में पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी थी, भुट्टो ने यह मान्यता ओआईसी समिट में ही देने की घोषणा की थी।

बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन मानती हैं कि शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान को लेकर उत्साह बढ़ा है। बांग्लादेश में बांग्ला बोलने वाले पाकिस्तान समर्थकों ने मोहम्मद अली जिन्ना की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी थी, उसके बाद जिन्ना की जयंती मनाई गई। बांग्लादेश में अचानक जिन्ना प्रेम क्यों बढ़ा है ? सच यह है कि जिन्ना प्रेम कोई नया नहीं है बल्कि शुरू से ही था।

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