चार-धाम यात्रा : बइंतजामी से 10 श्रद्धालुओं की मौत
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवभूमि उत्तराखंड में चारों धाम की यात्रा 1200 साल से होती चली आ रही है। इस बार तमाम व्यवस्थाएं एकतरह से ध्वस्त हो चुकी हैं। विडंबना ही कहेंगे कि दस बेकसूर श्रद्धालु बीते चार दिनों में लंबे जाम में फंसकर दम तोड़ चुके हैं। इसके बावजूद चुनावी-शोर में यह त्रासदी एकतरह से दबी रही।
यह तो संयोग से उत्तराखंड और केंद्र में भाजपा की ही सरकारें हैं। वर्ना भाजपा नेता अब तक आसमान सिर पर उठा विपक्षी सरकारों को कोसते नजर आते। खैर, इस मामले में उत्तराखंड के शासन-प्रशासन की नाकामी तो सामने आ गई। ऐसे में अब केंद्र सरकार नैतिक-तौर पर जवाबदेही माने तो उसे तत्काल प्रभाव से उत्तराखंड सरकार से जवाब—लब करना चाहिए। रही बात विपक्ष की तो उसका भी फर्ज बनता है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों से इस मामले में जवाब मांगे।
गौरतलब है कि गंगोत्री-यमुनोत्री धामों पर रिकॉर्ड तोड़ भीड़ के चलते सरकारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हुईं। दोनों धामों के लिए हरिद्वार से आगे बढ़ते ही 170 किमी दूर बरकोट तक करीब 45 किमी लंबा जाम लगा है। बरकोट से आगे यमुनोत्री और गंगोत्री के रास्ते हैं, जो जाम पड़े हैं। यहां से उत्तरकाशी का 30 किमी का रूट वन-वे है, इसलिए मंदिर से लौट रही गाड़ियां पहले निकाली जा रही हैं। मंदिर जाने वाली गाड़ियों का नंबर 20-25 घंटे बाद आ रहा है। इसी इंतजार में बीते चार दिन में यमुनोत्री-गंगोत्री जा रहे दस लोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। चार दिन में जिन श्रद्धालुओं की मौत हुई, उनकी उम्र 50 साल से अधिक थी। इनमें से चार को डायबिटीज के साथ ब्लड प्रेशर की शिकायत थी।
गंगोत्री जाते वक्त उत्तरकाशी से 20 किमी आगे बढ़ते ही सड़क किनारे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग आराम करते दिखने लगेंगे। यहां न खाने का ठिकाना है और न रुकने का कोई पुख्ता प्रबंध है। आसपास के गांवों के लोग पानी की बोतल के 30-40 तो शौचालय उपयोग करने पर सौ रुपये तक ले रहे हैं। गंगोत्री रूट पर छह दिन से कई सूबों के श्रद्धालु जाम में फंसे है। जबकि सात हजार यात्री बीच रास्ते से ही लौट गए। हांलाकि, केदारनाथ और बद्रीनाथ के रास्तों पर कम जाम है। मंगलवार को यहां 23 हजार लोगों ने दर्शन किए।
उत्तराखंड के डीजीपी अभिनव कुमार की मानें तो पिछले साल 28 मई तक यमुनोत्री में 12,045 तो गंगोत्री में 13,670 यात्री ही पहुंचे थे। मंगलवार को दिनभर में 27 हजार लोग यमुनोत्री पहुंचे। सड़कों पर बहुत दबाव है। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस ऐतिहासिक चार-धाम यात्रा को लेकर देश की आजादी के बाद से ही राज्य सरकार सारे प्रबंध करती रही है। ऐसे महा-आयोजन के लिए केंद्र सरकार भी निगरानी वाली भूमिका में होती है। चार-धाम से वैसे भी करोड़ों हिंदुओं की गहरी आस्था है। इस सबके बावजूद जब उत्तराखंड में इस बार एकाएक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी तो शासन-प्रशासन आखिर कहां था ? बदइंतजामी से पहले ही हालात पर काबू पाने के जमीनी-प्रयास क्यों नहीं हुए। यह सब तब है कि जब केंद्र से लेकर उत्तराखंड और साथ लगते यूपी में भाजपा की ही सरकारें हैं। जो हमेशा से हिंदू समाज की सबसे बड़ी पैरोकार होने के दावे करते नहीं थकती हैं। अब उत्तराखंड में फंसे कई राज्यों के श्रद्धालु राज्य सरकार मुर्दाबाद के नारे लगा रोष जता रहे हैं, अगर राज्य सरकार अब भी नहीं जागी तो यह रोष और बढ़ेगा।
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