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मुद्दे की बात : दो माह, 149 रेप, 93 बच्चियां से

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देश की राजधानी रही है सबसे असुरक्षित

निर्भया-कांड के बाद एक बार फिर देशभर में महिला की सुरक्षा का मुद्दा सबसे ज्वलंत बना है। दरअसल कोलकाता में 9 अगस्त को ट्रेनी डॉक्टर से रेप-मर्डर के बाद से ही महिलाओं की सुरक्षा को लेकर देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। इस बीच मीडिया एजेंसी पीटीआई ने खुद की खबरों के हवाले से देशभर में रेप केसेस पर एक रिपोर्ट जारी की। यह आंकड़ा 1 जुलाई से 31 अगस्त के बीच का है।

जिसका सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि 18 साल से छोटी बच्चियों के साथ सबसे अधिक रेप केस हुए। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 2 महीने में देश में 149 रेप केस दर्ज हुए हैं। इनमें सबसे अधिक 93 केस 13 से 18 साल की बच्चियों के साथ हुए हैं। सबसे दरिंदगी की मिसाल देखिए, यौन-हिंसा की शिकार सबसे छोटी बच्ची की उम्र सिर्फ 18 महीने है। साथ ही निहायत शर्मनाक पहलू यह भी है कि रेप केस के ज्यादातर मामलों में आरोपी कोई जान-पहचान वाला या फिर रिश्तेदार ही आरोपी निकला। रिपोर्ट के अनुसार देशभर में सबसे अधिक रेप के मामले महाराष्ट्र के ठाणे, यूपी के बलिया और राजधानी दिल्ली से आए।

अब नौ महीने पहले जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की  2022 की रिपोर्ट पर नजर डालें। जो 3 दिसंबर, 2023 में  जारी की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर है। यहां 2022 में एक दिन में 3 रेप केस दर्ज किए गए। एनसीआरबी की 546 पेज की रिपोर्ट में बताया कि देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4 लाख 45 हजार 256 केस दर्ज किए गए। यानि हर घंटे लगभग 51 एफआईआर हुईं। साल 2021 में यह आंकड़ा 4 लाख 28 हजार 278 था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 की तुलना में महिला अपराधों में 4% की बढ़ोतरी हुई। वहीं 2022 में 28 हजार 522 मर्डर केस दर्ज हुए यानि हर दिन 78 हत्याएं हुईं। जब देश में 4 राज्यों के चुनाव परिणाम चर्चा में थे, उस दिन एनसीआरबी ने रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि देश में बच्चों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ अपराधों के अलावा साइबर क्राइम बहुत ज्यादा बढ़े हैं। खैर, यह आंकड़े भले ही दो साल पहले के हैं, लेकिन सोचने को मजबूर तो करते ही हैं। जब देश की राजधानी में ही महिलाएं सुरक्षित नहीं तो भला दूरदराज पिछड़े राज्यों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं।

एक ओर हम विकसित और सभ्य समाज तैयार करने के सपने देख रहे हैं, दूसरी तरफ आंखों के सामने नंगी सच्चाई बेहद भयावह है। आज बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा बेमायने हो चला है। फिलवक्त हालात ये हैं कि किसी तरह भी बस बेटी बचा लें, उसे पढ़ाने और आगे बढ़ाने की बात तो बाद में सोचने वाली है।

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