माहिरों की राय, ट्रंप को गलतफहमी, सारे देशों को अपने से कम आंकते हुए धमका सकते हैं
ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ख़त्म हो गया, लेकिन इसकी चर्चा अभी जारी है। जिसकी वजह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले 10 देशों के इस संगठन के संस्थापक सदस्यों में भारत भी शामिल है।
दरअसल सम्मेलन के बाद एक घोषणापत्र जारी किया गया, जिसके बाद ट्रंप की तीखी प्रतिक्रिया आई। उन्होंने उन देशों को सीधी धमकी दी है जो ‘ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों के साथ’ चलेंगे, उनसे ‘टैरिफ’ के जरिए निपटा जाएगा। उन्होंने धमकी ऐसे समय दी, जब कहा जा रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच एक ‘मिनी ट्रेड डील’ की घोषणा कुछ ही दिनों में हो सकती है। साथ ही ट्रंप ने घोषणा की, कई देशों के साथ ट्रेड डील की घोषणा की जाएगी। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि ट्रंप की ब्रिक्स संगठन को दी गई धमकी के क्या मायने हैं ? साथ ही ब्रिक्स के संस्थापक सदस्य होने के नाते भारत के आगे क्या चुनौतियां हैं। दरअस उसकी अमेरिका के साथ ट्रेड डील भी जल्द घोषित होने वाली है ? ट्रंप ने पोस्ट की, जो भी देश ख़ुद को ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों के साथ जोड़ता है, उस पर अतिरिक्त 10 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया जाएगा। इस नीति में कोई छूट नहीं दी जाएगी।
गौरतलब है कि रियो घोषणापत्र में ‘वैश्विक शासन में सुधार करने’ से लेकर ‘अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता’ पर बात की गई। इसके साथ ही इसमें एकतरफ़ा टैरिफ़ और नॉन-टैरिफ़ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई। माना जा रहा है कि घोषणापत्र में इसी मुद्दे को लेकर ट्रंप ने टैरिफ़ लगाने की धमकी दी। हालांकि घोषणापत्र में अमेरिका का नाम नहीं लिया। अहम सवाल कि ट्रंप ने आखिर ‘ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीति’ को लेकर धमकी क्यों दी ? बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इस पर दिल्ली स्थित ट्रेड रिसर्च ग्रुप ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि ‘ट्रंप को हर चीज़ में लगता है कि अमेरिका के ख़िलाफ़ साज़िश हो रही है। इसमें कोई शक भी नहीं कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हुई है। ट्रंप को लगता है कि सारे देश उनके उपनिवेश हैं, वह एकतरफ़ा अपनी नीतियां लागू करना चाहते हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जानकार मंजरी सिंह, ट्रंप की धमकी को लेकर कहती हैं कि कोई भी ऐसा संगठन, जिसमें अमेरिका नहीं है, जैसे कि एससीओ या ब्रिक्स, उसे ट्रंप हमेशा से अमेरिका विरोधी मानते आए हैं।
यहां बता दें कि ब्रिक्स के संस्थापक सदस्य देशों में भारत के साथ ही रूस और चीन भी हैं, जो दुनिया की ताक़तवर अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं। रूस और चीन आपस में अपनी करेंसी में व्यापार करते रहे हैं और साल 2022 में रूस ने ब्रिक्स देशों के लिए एक नई अंतर्राष्ट्रीय रिज़र्व करेंसी का प्रस्ताव दिया था। ब्रिक्स की कोई भौगोलिक इकाई नहीं है, क्योंकि इसमें सब अलग-अलग विचारधाराओं वाले देश हैं। इस संगठन की कोई राजनीतिक ताक़त नहीं है, लेकिन इसमें चीन जैसा ताक़तवर देश भी शामिल है, जो इसे ख़ास बनाता है। ब्रिक्स के ताक़तवर ना होते हुए भी ट्रंप इसे धमकी दे रहे हैं तो इसकी वजह रिज़र्व करेंसी का मुद्दा है। कोई भी देश अपनी करेंसी में व्यापार करने की बात कहता है तो अमेरिका इस तरह की बात करता है। क्या ब्रिक्स की कोई कॉमन करेंसी हो सकती है ? इस सवाल पर अजय कहते हैं कि यूरोप ने यूरो करेंसी बनाई, लेकिन उनकी भी बहुत सारी समस्याएं हैं। अगर ब्रिक्स में कोई कॉमन करेंसी बनती है तो उसके लिए काफ़ी सोचना पड़ेगा। ये संगठन चीन केंद्रित है तो बहुत सारे देश एक कॉमन करेंसी में शायद ही दिलचस्पी दिखाएं।
वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अपराजिता कश्यप कहती हैं कि ब्रिक्स के कमज़ोर पड़ने की संभावनाएं बेहद कम हैं। दरअसल ब्रिक्स प्लस में दुनिया की कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और आर्थिक रूप से प्रभावशाली देश शामिल हैं। माहिरों की मानें तो भारत समेत बाकी ब्रिक्स देशों को ट्रंप कीस देमिल हैं.दोनों नौजवानों को काट डाला धमकी से नहीं डरना चाहिए।
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