मुद्दे की बात : पाकिस्तान के साथ अमेरिका का क्या रहेगा रवैया ?

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व्हाइट हाउस में पाक आर्मी चीफ को डिनर, फिर अमेरिका ने परोसा ‘कड़ुवा-पकवान’

व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के साथ रात्रि-भोज के बाद अमेरिका ने एक ‘कड़वा पकवान परोसा। अमेरिका ने द रेसिस्टेंस फ्रंट यानि टीआरएफ को को विदेशी आतंकवादी संगठन एफटीओ और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी एसडीजीटी घोषित कर दिया। यह वही संगठन हैं, जो पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की शैडो-यूनिट माने जाते हैं। जिसने इसी 22 अप्रैल  को पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस फैसले को भारत-अमेरिका के बीच आतंकवाद विरोधी सहयोग की मज़बूत पुष्टि बताया। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि टीआरएफ लश्कर-ए-तैयबा की एक फ्रंट और प्रॉक्सी इकाई है। जिसने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली। यह हमला 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत में सबसे बड़ा नागरिकों पर हमला था।

विदेश विभाग ने यह भी कहा कि यह कार्रवाई अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा, आतंकवाद का मुकाबला करने और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की न्याय की मांग को लागू करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। भारत के विदेश मंत्रालय अमेरिका के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, हम इस निर्णय में अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो की भूमिका की सराहना करते हैं। टीआरएफ, पाकिस्तान-स्थित लश्कर-ए-तैयबा की प्रॉक्सी है और यह कई आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है। जिनमें 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में नागरिकों पर हुआ जघन्य हमला भी शामिल है। भारत लगातार आतंकवाद से मुकाबले और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर देता रहा है। टीआरएफ को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाना भारत-अमेरिका के बीच आतंकवाद विरोधी साझेदारी का प्रतीक है। भारत ने लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में टीआरएफ को नामित करने का प्रयास किया, लेकिन पाकिस्तान ने इसमें बाधा डाली।

गौरतलब है कि टीआरएफ और इससे जुड़े अन्य नामों को भी अब अमेरिका के कानून इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट की धारा 219 और एग्जीक्यूटिव ऑर्डर 13224 के तहत एफटीओ और एसडीजीटी सूची में जोड़ा गया है। साथ ही, अमेरिका ने लश्कर-ए-तैयबा की एफटीओ स्थिति की भी समीक्षा की और उसे बरकरार रखा। इस मामले में अमेरिका ने साफतौर पर कहा कि एफटीओ घोषित किए जाने से आतंकवादी गतिविधियों को मिलने वाला समर्थन सीमित होता है और आतंकी समूहों पर दबाव बनता है कि वे आतंकवाद का रास्ता छोड़ें। जानकारों की मानें त इस कदम के ज़रिए अमेरिका ने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद का समर्थन करने वालों को अब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बख्शा नहीं जाएगा।

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