मुद्दे की बात : ट्रंप का नया वीज़ा मंत्र, पहले पैसा दिखाओ, फिर अमेरिका आओ

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एक्सपोर्टरों को होगा नुकसानअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब खासकर भारत को बड़ा आर्थिक-झटका देने वाला फरमान जारी कर दिया। बकौल ट्रंप, अमेरिका आओ, लेकिन 1 लाख डॉलर या 88 लाख रुपये दिए बिना नहीं। इसे लेकर माहिर तीखी प्रतिक्रिया जता रहे हैं।

मसलन, कुछ माहिरों का मानना है कि यह वैसा ही है, जैसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बिहार के प्रवासी मजदूरों से कहें कि 3 लाख रुपये दो और फिर काम करने के लिए महाराष्ट्र आओ। ट्रंप एक ला-ला लैंड में रह रहे हैं और उन्हें दुनिया भर के हालात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है। वह एक बड़े व्यवसायी हैं और शायद उन्हें समय बिताने का शौक भी नहीं था। अमेरिकी दक्षिणपंथ की बदौलत संयोगवश राष्ट्रपति बन गए और यहां हम ट्रंप की मार झेल रहे हैं। अमेरिका में वीज़ा पर काम कर रहे भारतीय पेशेवरों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले एक कदम के तहत ट्रंप ने शुक्रवार को एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसके तहत एच 1-बी वीज़ा शुल्क सालाना 1,00,000 अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाएगा। यह आव्रजन पर नकेल कसने के प्रशासन के प्रयासों का नवीनतम कदम है।

व्हाइट हाउस के स्टाफ सचिव विल शार्फ ने कहा कि एच1-बी गैर-आप्रवासी वीज़ा कार्यक्रम देश की वर्तमान आव्रजन प्रणाली में सबसे अधिक दुरुपयोग की जाने वाली वीज़ा प्रणालियों में से एक है। यह उन उच्च कुशल श्रमिकों को अमेरिका आने की अनुमति देता है, जो उन क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां अमेरिकी काम नहीं करते। ट्रंप प्रशासन ने कहा कि 1,00,000 डॉलर का शुल्क यह सुनिश्चित करने के लिए है कि देश में लाए जा रहे लोग वास्तव में अत्यधिक कुशल हों और अमेरिकी श्रमिकों की जगह ना लें। इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। साथ ही यह तय करना है कि कंपनियों के पास वास्तव में असाधारण लोगों को नियुक्त करने और उन्हें अमेरिका लाने का एक रास्ता हो। कंपनियां एच1-बी आवेदकों को प्रायोजित करने के लिए भुगतान करती हैं।

ट्रम्प ने वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक की उपस्थिति में ओवल ऑफिस में घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि हमें बेहतरीन कामगारों की ज़रूरत है। यह लगभग सुनिश्चित करता है कि यही होगा। लुटनिक ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, रोज़गार-आधारित ग्रीन कार्ड कार्यक्रम ने प्रति वर्ष 2,81,000 लोगों को प्रवेश दिया। वे लोग औसतन 66,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष कमाते थे और सरकारी सहायता कार्यक्रमों में भाग लेने की उनकी संभावना पांच गुना अधिक थी। हम निचले चतुर्थक वर्ग को, औसत अमेरिकी से नीचे, भर्ती कर रहे थे। यह अतार्किक था, दुनिया का एकमात्र देश, जो निचले चतुर्थक वर्ग को भर्ती कर रहा था। उन्होंने आगे कहा, हम ऐसा करना बंद करने जा रहे हैं। हम केवल शीर्ष पर असाधारण लोगों को लेंगे, ना कि उन लोगों को, जो अमेरिकियों से नौकरियां छीनने की कोशिश कर रहे हैं। वे व्यवसाय बनाएंगे और अमेरिकियों के लिए नौकरियां पैदा करेंगे। और यह कार्यक्रम संयुक्त राज्य अमेरिका के खजाने के लिए 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक जुटाएगा।

वहीं, ट्रंप ने कहा कि देश इस राशि का इस्तेमाल करों में कटौती और कर्ज चुकाने में करेगा। ट्रंप ने कहा, हमें लगता है कि यह बहुत सफल होगा। लुटनिक ने दावा किया कि सालाना 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का शुल्क लिया जाएगा। यहां गौरतलब है कि ट्रंप सरकार के इस कदम का उन भारतीय तकनीकी कर्मचारियों पर गहरा असर पड़ेगा, जिन्हें टेक कंपनियां और अन्य कंपनियां H1-B वीजा पर नियुक्त करती हैं। ये वीजा तीन साल के लिए वैध होते हैं और इन्हें अगले तीन साल के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है। अगर कोई कंपनी किसी कर्मचारी को ग्रीन कार्ड के लिए प्रायोजित करती है तो स्थायी निवास की अनुमति मिलने तक वीजा का नवीनीकरण किया जा सकता है। हालांकि, अमेरिका में वर्क वीजा पर रहने वाले भारतीयों को ग्रीन कार्ड के लिए दशकों लंबे इंतजार में फंसना पड़ता है। इस नए कदम का असर इस बात पर पड़ सकता है कि अगर उनकी कंपनियां वीजा बनाए रखने के लिए सालाना 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का शुल्क नहीं चुकाने का फैसला करती हैं तो क्या वे अमेरिका में रह पाएंगे ?

माना जा रहा है कि अब ये बड़ी टेक कंपनियां या अन्य बड़ी कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को प्रशिक्षित नहीं करेंगी। उन्हें सरकार को 1,00,000 अमेरिकी डॉलर देने होंगे, फिर उन्हें कर्मचारी को वेतन देना होगा। इसलिए यह आर्थिक रूप से ठीक नहीं है। लुटनिक ने यह भी कहा कि अगर आप किसी को प्रशिक्षित करने जा रहे हैं तो आप हमारे देश के किसी महान विश्वविद्यालय से हाल ही में स्नातक हुए किसी व्यक्ति को प्रशिक्षित करेंगे, अमेरिकियों को प्रशिक्षित करेंगे। हमारी नौकरियां छीनने के लिए लोगों को लाना बंद करें। यही यहां की नीति है और सभी बड़ी कंपनियां इसमें शामिल हैं। हमने उनसे इस बारे में बात की है। एकमात्र समस्या यह है कि ट्रम्प ऐसे युवा को इंजीनियर बनाना चाहते हैं, जिनकी महत्वाकांक्षा और योग्यता एक प्लंबर की है। ताकि उच्च कुशल नौकरियां एशियाई, और अधिक सटीक रूप से भारतीयों और चीनियों द्वारा ना छीन ली जाएं।

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