अमेरिका बना रहा है भारत पर आर्थिक नजरिए से दबाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार को कहा कि भारत अमेरिकी सुरक्षा उपकरण और ख़रीदे। ट्रंप ने यह भी कहा कि अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार उचित तरीक़े से होना चाहिए, यानि ट्रंप चाहते हैं कि व्यापारिक घाटा अमेरिका का नहीं होना चाहिए। काबिलेजिक्र है कि सोमवार को पीएम मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच फ़ोन पर बातचीत हुई थी। इसके बाद व्हाइट हाउस ने बयान जारी किया।
ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों नेताओं के बीच यह पहली बातचीत है। इससे पहले पीएम मोदी ने नवंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत पर उन्हें बधाई देने के लिए फ़ोन किया था। व्हाइट हाउस के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच ठोस बातचीत हुई। मोदी के व्हाइट हाउस आने की योजना पर भी बातचीत हुई। बीबीसी सहित अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोदी और ट्रंप की मुलाकात जल्द हो सकती है। मोदी फ़रवरी के दूसरे हफ़्ते में पेरिस में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समिट में शरीक होने जाएंगे और यहीं से वॉशिंगटन रवाना हो सकते हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक़ ट्रंप ने कहा कि मेरी मोदी से लंबी बातचीत हुई, शायद फ़रवरी में वह व्हाइट हाउस आएंगे।
व्हाइट हाउस ने अपने बयान में पहली बार आधिकारिक रूप से पीएम मोदी के आने के संकेत दिए। ट्रंप से बातचीत के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने जो बयान जारी किया, उसमें कहा कि दोनों नेता जल्द ही आपसी सहमति से तय तिथि पर मिलेंगे। भारत ने अपने दोनों नेताओं ने पारस्परिक फ़ायदे और भरोसेमंद साझेदारी को लेकर प्रतिबद्धता जताई है।
भारत ने कहा कि ट्रंप से तकनीक, व्यापार, निवेश, ऊर्जा और रक्षा के मुद्दे पर बात हुई। दोनों नेताओं की बातचीत के बाद भारत और अमेरिका के बयान में मुद्दों को लेकर कोई अंतर नहीं है, लेकिन व्हाइट हाउस ने जिन चीज़ों पर ज़ोर दिया है, उन पर सबका ध्यान जा रहा है।
व्हाइट हाउस ने अपने बयान में कहा है कि भारत के अमेरिका से ज़्यादा सुरक्षा उपकरण ख़रीदने और संतुलित द्विपक्षीय व्यापार पर बात हुई। जहां भारत ने कहा कि ट्रंप से तकनीक, व्यापार, निवेश, ऊर्जा और रक्षा पर बात हुई है, वहीं व्हाइट हाउस ने कहा कि ट्रंप ने पीएम मोदी से बातचीत में दो मुद्दों पर ज़ोर दिया। एक, भारत ज़्यादा से ज़्यादा अमेरिकी रक्षा उपकरण ख़रीदे और दूसरा यह कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार संतुलित हो ना कि किसी एक की तरफ़ झुका हो। थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो-पैसिफिक एनलिस्ट डेरेक ग्रॉसमैन ने लिखा कि ट्रंप ने मोदी को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया, लेकिन रणनीतिक साझेदारी को लेकर कुछ शर्तें भी लगा दीं। ट्रंप ने अमेरिकी रक्षा उपकरण ख़रीदने पर ज़ोर देकर द्विपक्षीय व्यापार को संतुलित करने के लिए कहा।
ट्रंप अक्सर भारत को ‘टैरिफ़ किंग’ कहते हैं, भारत के ट्रेड सरप्लस का मुद्दा ट्रंप अक्सर उठाते रहे हैं, यानि भारत अमेरिका में ज़्यादा क़ीमत के सामान बेचता है और कम ख़रीदता है। ट्रंप हमेशा से कहते रहे हैं कि भारत अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर ज़्यादा टैरिफ़ लगाता है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने भारत का जीएसपी दर्जा ख़त्म कर दिया था। इसके तहत भारत को अमेरिका में अपने कुछ ख़ास उत्पादों के कर मुक्त निर्यात की अनुमति थी।
साल 2024 में जनवरी से नवंबर तक अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस 41 अरब डॉलर का था। अमेरिकी मीडिया आउटलेट ब्लूमबर्ग के अनुसार, भारत सरकार ट्रंप की चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रही है। अगर ट्रंप भारत के मामले में टैरिफ़ को लेकर अड़ जाते हैं तो मोदी सरकार एक ट्रेड डील के लिए तैयार हो जाएगी। ट्रंप नहीं चाहते हैं कि भारत के साथ व्यापार घाटा अमेरिका का हो। भारत अमेरिका से आयात होने वाले सामानों पर टैरिफ़ कम कर सकता है और साथ ही आयात बढ़ा सकता है। भारत अमेरिका से ज़्यादा व्हिस्की, स्टील और तेल ख़रीद सकता है। इसके अलावा भारत अमेरिका से आयात होने वाले सामान पर टैरिफ में कटौती कर सकता है। भारत ट्रंप प्रशासन से टकराने के मूड में नहीं है। भारत अमेरिका से अपने 18 हज़ार अवैध प्रवासियों को भी वापस बुलाने पर तैयार हो गया है।
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के मुताबिक़, भारत के अवैध आप्रवासियों को लेने से जुड़े सवाल पर ट्रंप ने कहा कि ‘मोदी वही करेंगे जो सही है। भारत के ख़िलाफ़ ट्रंप की टैरिफ धमकी को लेकर भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा कि ट्रंप भारत पर टैरिफ़ लगाते हैं तो यह अमेरिका की आर्थिक दादागिरी होगी। अमेरिका की अर्थव्यवस्था भारत से बहुत बड़ी है। सिब्बल ने लिखा कि अमेरिकी नीतियों से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती हैं, अमेरिका भारत से अपनी तुलना नहीं कर सकता। मुक़ाबला बराबरी में होता है। अमेरिका का व्यापार घाटा मुख्य रूप से चीन के साथ ज़्यादा है। भारत रूस पर अपनी रक्षा निर्भरता लगातार कम कर रहा है और रक्षा ख़रीद का दायरा बढ़ा रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत रक्षा ख़रीद ज़्यादा से ज़्यादा उससे करे ना कि रूस से। व्हाइट हाउस के बयान में अमेरिका की इस सोच की झलक भी मिलती है।
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