बड़ी बहस शुरु, क्या जिन राज्यों से चुनावी लाभ की उम्मीद है, उन्हें भारी निवेश देकर लुभाया जा रहा !
जब देश के कई राज्य प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहे हैं, तब केंद्र सरकार द्वारा राहत और विकास पैकेज का वितरण एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बिहार के लिए 7500 करोड़ के पैकेज की घोषणा की, जो चुनावी मौसम में आया है। इससे पहले मिज़ोरम और मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों को भी केंद्र से मोटी धनराशि मिली। जबकि बाढ़ से तबाह हुए पंजाब को केवल 1600 करोड़ और हिमाचल प्रदेश को मात्र 1500 करोड़ की राहत दी गई।
यहां काबिलेजिक्र है कि बिहार में इसी साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में मोदी सरकार का यह भारी-भरकम पैकेज सीधे तौर पर वोट बैंक को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। यह राशि सड़क, पुल, सिंचाई और ग्रामीण विकास के लिए घोषित की गई है। हालांकि इसकी टाइमिंग पर संदेह करना स्वाभाविक है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह ‘वोट फॉर फंड’ की स्पष्ट नीति का उदाहरण है। जहां जिन राज्यों से चुनावी लाभ की उम्मीद है, उन्हें भारी निवेश देकर लुभाया जा रहा है।
इसके अलावा मिज़ोरम को हाल ही में 3500 करोड़ रुपये और मणिपुर को 4000 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज मिला है। केंद्र ने इस फंडिंग को ‘पूर्वोत्तर के विकास’ के तहत घोषित किया। गौरतलब है कि इन राज्यों में भाजपा या भाजपा-गठबंधन की सरकार है। मणिपुर तो अभी भी जातीय तनाव और अस्थिरता से जूझ रहा है, फिर भी वहां चुनाव की तैयारियों को देखते हुए निवेश किया गया।
अब बात करें पंजाब और हिमाचल प्रदेश की तो ये दो ऐसे राज्य हैं, जो जुलाई-अगस्त में प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह प्रभावित हुए। पंजाब में 100 से ज्यादा मौतें हुईं, लाखों लोग प्रभावित हुए और किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। इसके बावजूद केंद्र ने सिर्फ 1600 करोड़ रुपये की मदद दी। हिमाचल में भी हालात कुछ अलग नहीं थे। पहाड़ी इलाकों में सड़कें बह गईं, गांव उजड़ गए, फिर भी वहां सिर्फ 1500 करोड़ रुपये का पैकेज मिला। यह तब है जब दोनों राज्य भाजपा-शासित नहीं हैं। दरअसल पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है।
अब चर्चाओं में बड़ा सवाल ज़्यादा गंभीर हो गया है कि क्या केंद्र सरकार केवल उन राज्यों को प्राथमिकता दे रही है, जहां भाजपा सत्ता में है या चुनावी संभावना है ? इस तरह की असमानता संघीय ढांचे और भारतीय संविधान की आत्मा पर चोट करती है। क्या किसी राज्य के नागरिकों को केवल इसलिए कम सहायता मिलनी चाहिए, क्योंकि वहां विपक्ष की सरकार है ? यह केंद्र और राज्य के रिश्तों को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृत्ति है। अगर मदद और राहत भी राजनीतिक तराजू पर तौली जाएगी तो आम जनता का लोकतंत्र और केंद्र सरकार पर से विश्वास कमजोर पड़ेगा।
जब केंद्र सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देती है तो उसे ज़मीनी हकीकत में भी उसे उतारना चाहिए। हर राज्य, हर नागरिक समान रूप से राष्ट्र का हिस्सा है। उन्हें मिलने वाली मदद का निर्धारण उनके दर्द और ज़रूरत से होना चाहिए, ना कि उनके राजनीतिक झुकाव से। यदि यह पैटर्न जारी रहा, तो यह ना केवल भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा, बल्कि जनता और सरकार के बीच विश्वास की खाई को और गहरा कर देगा।
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