विपक्ष का इलजाम, चुनाव आयोग बना है केंद्र का सहयोगी, सरकार ने नकारे आरोप
बिहार में विधानसभा चुनाव भले ही साल के अंत में होने हैं, लेकिन इसकी सरगर्मियां जारी हैं। यहां आरोप-प्रत्यारोप राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि विपक्षी पार्टियों और चुनाव आयोग के बीच चल रहे हैं। दरअसल बिहार में चुनाव आयोग स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न करवा रहा है। आयोग का तर्क है कि इस प्रक्रिया से मतदाता सूची में सुधार किया जा रहा है। वोटर लिस्ट से डुप्लीकेट, मृत लोगों के नाम या फिर ऐसे नाम हटाए जाएंगे, जो ग़लत पते पर दर्ज हैं। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि यह एक ‘साफ़-सुथरी प्रक्रिया’ नहीं, बल्कि राजनीतिक साज़िश है। इससे लाखों नाम हटाए जा रहे हैं, जो ख़ासकर एक समुदाय और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को प्रभावित करेगा। यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है, क्योंकि हाल ही में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वोटर लिस्ट और मतदान संबंधी आंकड़ों में गड़बड़ी का आरोप लगाया था।
इसे लेकर बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक राहुल गांधी ने इस विषय पर देश के प्रमुख अख़बारों में लेख लिखा था। बिहार में इस प्रक्रिया को लेकर कुछ चिंताएं भी सामने आई हैं। मसलन, कितने लोगों के पास अपने दावा साबित करने के लिए मांगे गए दस्तावेज़ हैं ? कितनी आसानी से सरकारी अधिकारी दूर-दराज़ क्षेत्रों तक पहुंच पा रहे हैं ? यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इंकार कर दिया, लेकिन चुनाव आयोग को आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को वैध मानने पर विचार करने का निर्देश दिया। अब सवाल उठते हैं कि यह प्रक्रिया पहले क्यों नहीं की गई ? जो लोग बाहर रहते हैं, वे कैसे सूची में नाम बनाए रखेंगे ? क्या सभी के पास ज़रूरी दस्तावेज़ हैं ? साथ ही यह भी सवाल है कि क्या चुनाव आयोग, जो चुनाव संबंधी प्रक्रिया की निगरानी करता है, उसके पास यह तय करने का अधिकार है या नहीं ? क्या चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर सवाल उठाकर पूरी चुनाव प्रणाली को संदेह के घेरे में लाने की कोशिश हो रही है ? कलेक्टिव स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न की प्रक्रिया एक जुलाई 2025 से शुरू हुई है। इसके तहत एक अगस्त को लिस्ट का ड्राफ़्ट पब्लिश किया जाएगा और अंतिम सूची 30 सितंबर को पब्लिश होगी। इससे पहले इतने व्यापक स्तर पर यह प्रक्रिया आख़िरी बार साल 2003 में हुई थी।
भारत जोड़ो अभियान की राष्ट्रीय सचिव कामायनी स्वामी ने कहा,हमारी चिंता ये है कि जो 11 दस्तावेज़ लोगों से मांगे जा रहे हैं, वे बड़े पैमाने पर लोगों के पास उपलब्ध नहीं हैं। एक छोटा सा सर्वे आठ ज़िलों का और 12 विधानसभा क्षेत्र का किया गया। जिसमें साफ़ निकलकर आया कि 63 फ़ीसदी लोगों के पास वो काग़ज़ात नहीं हैं जो उनसे मांगे जा रहे हैं।
एक और चिंता है कि जो हाशिए पर खड़े समुदाय हैं, दलित, वंचित और महिलाएं. क्या वे सचमुच इस तरह की जद्दोजहद में अपनी बात उठा पाएंगे और अपने फ़ॉर्म जमा कर पाएंगे।
चुनाव में जो बुनियादी मुद्दे होने चाहिए, जैसे-रोज़गार, महंगाई और भ्रष्टाचार, उसकी जगह जो लोग पहले से वोटर लिस्ट में हैं, उनके ऊपर प्रूफ़ देने की ज़िम्मेदारी डाल दी गई है। ये आज तक भारत के चुनावी इतिहास में नहीं हुआ। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी लगातार इस आरोप को ख़ारिज कर रही है कि लोगों के नाम सूची से हटाए जाएंगे। पार्टी का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य बाहरी लोगों की पहचान करना है, ना कि किसी समुदाय या वर्ग को निशाना बनाना।
बीजेपी के सांसद संजय जायसवाल ने इस मुद्दे पर कहा, नाम काटे जाने की बातें हो रही है। जब ये लोग (विपक्ष) बोलते हैं कि दलित, महिलाएं और ग़रीबों को दिक्कत होती है, लेकिन ये अपना एजेंडा नहीं बताते हैं। दिक्कत तो यह है कि जो हमारे देश से बाहर के नागरिक हैं, उन्हें वोट देना चाहिए या नहीं। बिहार में किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार जैसे ज़िले हैं, जहां पर वोटरों की संख्या से एक लाख ज़्यादा आधार कार्ड बन चुके हैं। किशनगंज कोई नोएडा तो है नहीं कि जितनी आबादी है, उससे ज़्यादा लोग नौकरी की तलाश में यहां आ रहे हैं। बल्कि यहां से बहुत बड़ी संख्या में लोग नौकरी के लिए बाहर जाते हैं।
कुल मिलाकर चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को लेकर सभी विपक्षी दल एकजुट होकर सवाल उठा रहे हैं कि आख़िर बिहार चुनाव से महज़ तीन महीने पहले ही इसकी ज़रूरत क्यों आन पड़ी ? विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के दबाव में काम कर रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था, चुनाव आयोग बीजेपी के इशारे पर काम कर रहा है और बैकडोर से एनआरसी लागू करने की कोशिश की जा रही है।
हाल ही में राहुल गांधी ने भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा, जो चोरी महाराष्ट्र में हुई, वही चोरी अब बिहार में करने की तैयारी है। हालांकि, सरकार ने विपक्ष के इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। उनका कहना है कि विपक्ष को चुनाव में हार का डर है, इसलिए वह इस तरह के आरोप लगा रहा है।
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