मुद्दे की बात : मानसून के कहर से हिमाचल और उत्तराखंड पर्यटन पर भारी असर, जागेंगी सरकारें ?

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हर साल आने वाली आपदा अब विकराल होने लगी, इस बार हो गई भारी तबाही

चंडीगढ़, 9 अगस्त। इस साल भी लगातार मानसूनी बारिश से हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड दोनों राज्य कुदरती कहर का शिकार हैं। दोनों सूबों में लोग भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन और उसके बाद तबाही का दंश झेल रहे हैं। जिसके चलते, इन नाज़ुक पहाड़ी राज्यों में पर्यटन में भारी गिरावट आई है।

इस साल दोनों राज्यों में गंभीर आपदा को लेकर एक्सपर्ट चिंतित हैं। दूसरी तरफ, कुल्लू मनाली पर्यटन विकास मंडल के अध्यक्ष अनूप ठाकुर ने दुख जताया कि केवल एक-चौथाई पर्यटन बचा है। मनाली के पर्यटन परिदृश्य के एक अनुभवी व्यक्ति ने निराशाजनक तस्वीर पेश की। उनके मुताबिक बारिश तेज़ होने के बाद से लगभग 75 प्रतिशत सामान्य पर्यटक गायब हो गए। कभी गुलज़ार रहने वाले होटलों में अब मेहमानों की मामूली संख्या है। ज़मीनी स्तर के आंकड़े इस सच्चाई के गंभीर संकेत देते हैं। शिमला के चेओग में, हाईलैंडर होमस्टे के मालिक सोहन ठाकुर बताते हैं कि जून से पर्यटन में 90 प्रतिशत की गिरावट आई है। दस में से मुश्किल से एक पर्यटक बचा है। ऐसा लग रहा है, जैसे घाटी अपनी सांसें रोक रही है। वो कहते हैं, खाली कमरे और शांत गलियां अब आम बात हो गई हैं।

इसी बीच, उत्तराखंड के पौड़ी में एक स्थानीय होमस्टे के मालिक विमान बिष्ट ने चिंता जताई कि राज्य में पर्यटक आ ही नहीं रहे हैं। हाल ही में आई बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं के कारण कोई भी यहां ट्रेकिंग या गाड़ी चलाने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है। भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने पगडंडियों और सड़कों को बंद कर दिया है। जिससे केवल पर्यटकों ही नहीं, बल्कि स्थानीय कारोबारियों और निवासियों की भी लाइफ-लाइन कट गई है। इसी तरह, हिमाचल के शिमला में ज़ॉस्टल होम्स का संचालन करने वाले संदीप वर्मा कहते हैं, एक पल आप मेहमानों का स्वागत कर रहे होते हैं, अगले ही पल, सोशल मीडिया की दहशत और सड़कें बंद होने से आपकी संपत्ति रातोंरात खाली हो जाती है। वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कैसे जलमग्न घाटियों या टूटी सड़कों की वायरल तस्वीरें, व्यवस्था से उठता भरोसा, भौतिक क्षति से भी ज़्यादा तेज़ी से सब कुछ छीन ले रही हैं।

वास्तविक आंकड़े इन तीखे निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं। जुलाई के मध्य की हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि हिमाचल में होटलों में पहले से ही मामूली स्तर से गिरकर सिर्फ़ 21 प्रतिशत रह गई है, जो पर्यटन के चरमराने का एक स्पष्ट संकेत है। शिमला और सोलन में पर्यटकों की संख्या में साल-दर-साल लगभग 8 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि कुछ इलाके अपेक्षाकृत सूखे रहे। हालांकि नुकसान सिर्फ़ आंकड़ों तक सीमित नहीं है। 20 जून से लगातार बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन ने 100 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है और लगभग 1,952 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान पहुंचा है। 280 से ज़्यादा सड़कें अवरुद्ध हैं, चंडीगढ़-मनाली जैसे राजमार्ग कट गए हैं और स्थानीय बुनियादी ढांचा चरमरा गया है। बाढ़ को रोकने के लिए, पर्यटन अधिकारियों ने एचपीटीडीसी द्वारा संचालित आवासों पर छूट की शुरुआत की और यात्रियों से केवल सत्यापित अपडेट पर ही भरोसा करने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कई गंतव्य खुले और सुरक्षित हैं।

उधर, उत्तराखंड में मानसून का प्रकोप अगस्त की शुरुआत में आई अचानक बाढ़ के रूप में सबसे दुखद रूप से सामने आया। उत्तरकाशी में बादल फटने से भीषण बाढ़ आई। घर तबाह हो गए, होटल डूब गए, 50 से ज़्यादा लोग लापता हो गए और कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई। धराली समेत पूरे के पूरे गांव बह गए, जिससे घरेलू जीवन और पर्यटक बुनियादी ढांचा, दोनों तबाह हो गए। सड़कें बह जाने और भूस्खल के चलते इलाके खतरनाक बने रहने से इन क्षेत्रों की यात्रा में पर्यटकों की रुचि खत्म हो गई है। होमस्टे जैसे व्यवसाय, जो कभी नियमित बुकिंग पर निर्भर थे, अब खाली हो गए हैं, और अनिश्चित हैं कि अगला मानसून उन्हें उबारेगा या और बर्बाद करेगा।

यह सिर्फ़ एक मौसमी झटका नहीं है। दोनों राज्यों में, आपातकाल आम बात होती जा रही है। हर साल, बादल फटना, भूस्खलन और बाढ़ पहले और ज़्यादा भयंकर रूप से आते हैं। मानो अस्थाई पर्यटन और अनियंत्रित विकास के बीच एक स्वाभाविक रेखा खींच दी गई हो। जो कुछ उभरकर सामने आ  रहा है, उससे बड़े सवाल खड़े हैं। विकास के नाम पर दोनों राज्यों की सरकारें जो कुछ कर रही हैं, उनको पहाड़ों, नदियों, जंगलों और कुदरती माहौल को बचाने के लिए भी गंभीर प्रयास करने होंगे।

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