एक्सपर्ट्स की मिली जुली प्रतिक्रियाएं, अभी कुछ भी साफ कह पाना मुमकिन नहीं
पहलगाम की बैसरन घाटी में 26 लोगों की हत्या ऐसे वक़्त हुईं, जब जम्मू-कश्मीर में पर्यटन पटरी पर लौट रहा। हमले का नतीजा यह रहा कि भारत ने इसके लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार मानते हुए सिंधु जल समझौता निलंबित कर दिया और अटारी-वाघा सीमा बंद कर दी। भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटों के भीतर देश छोड़ने के लिए कह दिया और दोनों देशों में राजनयिकों की मौजूदगी पर भी असर पड़ा।
पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई कर कहा कि ऐसा कोई भी क़दम ‘एक्ट ऑफ़ वॉर’ माना जाएगा यानि युद्ध छेड़ने जैसा होगा। भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौते निलंबित किए जा सकते हैं। साथ ही भारत से आने वाली सभी उड़ानों के लिए वायुमार्ग बंद कर दिया। इस हमले और उसके बाद हुई कार्रवाई ने कई सवाल खड़े किए हैं। इसके ज़रिए भारत सरकार ने क्या संदेश देने की कोशिश की है ? कुछ लोगों ने इसे इंटेलिजेंस की नाकामी, उसकी सच्चाई क्या है ? क्या ये अनुच्छेद 370 हटाए जाने के स्थानीय असंतोष से जुड़ा है ?
भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर इसका क्या असर हो सकता है ? क्या ये तनाव सैन्य कार्रवाई में तब्दील हो सकता है और इस मामले में चीन की क्या भूमिका हो सकती है ? तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के अलावा बीबीसी की इन मुद्दों पर चर्चा में उनके संवाददाता जुगल पुरोहित, बीजेपी मेंबर व जम्मू-कश्मीर वक़्फ़ बोर्ड की प्रमुख डॉ. दरख़्शां अंद्राबी और कश्मीर के मामलों की जानकार डॉ. राधा कुमार शामिल हुईं।
इन सबकी मिली-जुली प्रतिक्रिया के मुताबिक मोदी सरकार अब यही कहना चाह रही है कि अब जो हुआ है, वह किसी लेवल पर बर्दाश्त नहीं होगा। तभी पहली बार सिंधु जल समझौता निलंबित किया गया, जबकि किसी जंग में भी यह नहीं किया था। पुरोहित के मुताबिक हमले के बाद प्रधानमंत्री बिहार गए, रैली से पहले दो मिनट मौन रखा, फिर भाषण के अंत में अंग्रेज़ी में बोलने लगे। ज़ाहिर है, भारत सरकार कई लेवल पर संदेश दे रही है यानि समर्थन जुटाया जा रहा है। हालांकि अभी तक भारत ने मिलिट्री शब्द का प्रयोग नहीं किया। पिछली बार पुलवामा हमले के बाद पीएम मोदी ने मिलिट्री फ़ोर्सेज़ को फ्री हैंड देने की बात की थी। पीएम ने इस बार ऐसा नहीं किया है, लेकिन ग्राउंड ज़रूर तैयार किया, उनके भाषण के शब्द पूरी तरह स्पष्ट हैं। ऐसे में आशंका है कि कुछ ना कुछ ज़रूर होगा। किस रूप में, कहां, किस घड़ी, यह देखना होगा।
पहलगाम हमले को लेकर कई आलोचक इसे इंटेलिजेंस की विफलता बता रहे हैं, बैसरन घाटी में समय से इंटेलिजेंस का इनपुट क्यों नहीं मिला ? अंद्राबी कहती हैं, इसे इंटेलिजेंस की विफलता मानना ग़लत होगा, सुरक्षा बल यहां हमेशा चौकन्ना रहते हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद पर्यटकों का आना काफ़ी बढ़ गया और दुश्मन से ये ख़ुशियां देखी नहीं जातीं।
कई राज्यों में कश्मीरियों को दक्षिणपंथी संगठन धमका रहे हैं, इस पर वह कहती हैं, ऐसे कृत्य से तनाव बढ़ेगा और सीमापार बैठा दुश्मन यही तो चाह रहा है। पहलगाम में हुए हमले का क्या कोई अनुच्छेद 370 से उपजे असंतोष से संबंध लगता है या फिर कोई और वजह है ? इस पर डॉ. राधा कहती हैं, मुझे नहीं लगता है कि यह अनुच्छेद 370 से जुड़ी बात है। जिस तरह से कलमा पढ़ाकर और क्या आप हिंदू हैं, ये पूछकर मारा इससे साफ़ है कि उनका मक़सद सांप्रदायिक तनाव फैलाना था। दूसरा मक़सद, यह पता था कि अमेरिकी उप राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं, कश्मीर का मसला कहीं भी वैश्विक चर्चा में नहीं था, शायद वे यही सोच रहे थे कि किसी तरह से इसे वापस चर्चा में लाया जाए। सभी पार्टियों के साथ बैठक में यह बात सामने आई कि हमले को लेकर इंटेलिजेंस इनपुट था। बैसरन की घाटी 20 अप्रैल के बाद ही खुली, ऐसे में सोचना चाहिए था कि यहां भी घटना हो सकती है। यह इंटेलिजेंस फेल्योर नहीं, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं किए जाने की विफलता ज़रूर है। इस बार भारत ने शुरुआत राजनयिक प्रतिक्रिया से की है। सिंधु जल समझौते की शर्तों पर भाजपा सरकार काफ़ी दिनों से फिर से चर्चा करना चाह रही है, शायद इसलिए भी इस मौके का प्रयोग किया है।
सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो बात सैन्य कार्रवाई तक पहुंचती है। इसे लेकर कयास भी हैं, लेकिन कार्रवाई किस तरह की होगी ? इसे लेकर कई विकल्पों पर चर्चा चल रही है। पुरोहित कहते हैं कि इस समय यह देखना ज़रूरी है कि भारत और पाकिस्तान अगले कुछ दिनों में क्या करते हैं ? क्या किसी तरह कोई बैक चैनल बातचीत होती है ? भारत कह रहा है कि हम एक्शन लेंगे, लेकिन पहले यह देखेंगे कि सामने की तरफ़ से क्या किया जा रहा है। इस बार सीधे सैन्य कार्रवाई नहीं की जाएगी क्योंकि सभी जानते हैं कि जंग शुरू करना आसान है, लेकिन ख़त्म करना किसी के हाथ में नहीं है। डॉ.राधा कुमार कहती हैं, 2019 में बिना किसी परामर्श के जम्मू-कश्मीर से राज्य की हैसियत वापस ले ली गई और स्वायत्तता भी छीन ली गई। इस बात का ग़ुस्सा तो होगा, इससे पहले प्रदर्शन पर भी प्रतिबंध था। इस समय कश्मीरियों को आशा देना और राज्य का दर्जा वापस देते हुए कश्मीर के नेताओं के साथ बैठकर अमन का रास्ता निकालने ये सबसे बड़ा मौक़ा है। जहां तक कश्मीरी छात्रों के साथ हो रहे घटनाक्रम की बात है तो हमने यह 2010 में भी देखा है।
पुरोहित कहते हैं, इस समय सभी की नज़र दोनों देशों पर हैं कि दोनों किस तरह की घोषणाएं करते हैं ? किस तरह का क़दम उठाते हैं? ऐसे में अभी यह कह पाना मुश्किल है कि आगे क्या होगा ? दोनों देशों की सेनाएं क्या कर रही हैं ? भारतीय सेना सैन्य अभ्यास कर रही है, सेनाध्यक्ष कहां जा रहे हैं ? इस समय दो सवाल चर्चा में हैं, पहला क्या पर्यटन को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए। दूसरा क्या पर्यटन को अमरनाथ यात्रा के मॉडल पर चलाया जाए ? इसके तहत एक क्षेत्र को पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ सीमित पर्यटकों के लिए खोला जाए।
राधा कुमार कहती हैं, जहां भी ऐसी आतंकी घटनाएं और सांप्रदायिक हादसे होते हैं, हर इंसान चाहेगा कि इसे रोका जाए, तो फिर भारत-पाक यह साथ मिलकर क्यों नहीं कर रहे हैं ? कुछ साल पहले ही पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटाया गया है और अब भारत फिर से उसमें डालने की मांग करेगा, सिंधु जल समझौते में चीन का क्या रोल होगा ? वह ब्लॉक करना चाहेंगे या नहीं चाहेंगे ? यह देखना होगा।
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