मुद्दे की बात : भारत का हिमायती बन चीन क्या अमेरिका की जगह लेगा ?

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माहिरों की नजर में अमेरिका का रवैया बेशक गलत, लेकिन चीन से भी लंबे रिश्ते बनाना भारत के लिए आसान नहीं

चुप्पी या समझौता से धौंस जमाने वालों का हौंसला बढ़ता है। बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था बनाए रखने को चीन, भारत के साथ मज़बूती से खड़ा रहेगा। भारत में चीनी राजदूत शू फ़ेहॉन्ग ने भारत पर लगने वाली 50 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ़ के ख़िलाफ़ यह बात कही है।

उनका बयान दुनिया के मीडिया और सियासी हल्कों में चर्चा में है। जानकारों की मानें तो भारत में किसी विदेशी राजनयिक की ओर से किसी तीसरे देश के बारे में यह टिप्पणी असामान्य है। यह बयान ऐसे समय में आया, जब कुछ दिन बाद चीन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक होनी है। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे। हालांकि, अमेरिका ने चीनी राजदूत के बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी। अमेरिकी टैरिफ़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले देशों में चीन का नाम सबसे आगे है। दोनों देशों के बीच तल्ख़ी इतनी बढ़ गई थी कि अमेरिका ने चीनी सामानों पर 145 प्रतिशत और चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 125 फ़ीसदी का टैक्स लगा दिया था। फिर मई, 2025 में जेनेवा बैठक में व्यापार समझौते के तहत दोनों देशों ने टैरिफ़ को कम किया थ।  हालांकि, इसके बावजूद दोनों देशों के बीच टैरिफ़ का मसला पूरी तरह नहीं सुलझा।

चीन ने एक बार फिर वीरवार को अमेरिका के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, लेकिन इस बार उसने विदेशी धरती यानि भारत को चुना। शू फ़ेहॉन्ग ने अमेरिका की तुलना एक ‘धमकाने वाले देश’ से करते हुए कहा कि वह लंबे समय से मुक्त व्यापार से फ़ायदा उठा रहा है। अब वह दूसरे देशों से ‘अधिक क़ीमतें’ मांगने के लिए टैरिफ़ को ‘सौदेबाज़ी के हथियार’ के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने दोनों देशों को एशिया में आर्थिक विकास का ‘डबल इंजन’ बताया और कहा कि भारत और चीन के बीच एकता से पूरी दुनिया को फ़ायदा होगा। यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात में वृद्धि कर दी थी, जिससे अमेरिका के साथ उसके संबंधों में तनाव पैदा हुआ। एक तरफ़ अमेरिका के साथ भारत के व्यापार संबंधों में अस्थिरता दिखी तो दूसरी ओर भारत और चीन के बीच संबंधों में तेज़ी से नरमी आई। लद्दाख़ के गलवान में साल 2020 में झड़पों के बाद दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गिरावट आई थी।

दिल्ली में इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइनीज़ स्टडीज़ में डायरेक्टर प्रोफ़ेसर अलका आचार्य के मुताबिक चीन हो या अमेरिका, दोनों के ख़िलाफ़ जन भावनाओं के स्तर पर यह देखना होगा कि लोग किसके ख़िलाफ़ ज़्यादा हैं। चीन के साथ लंबे समय से सीमा विवाद है, लेकिन ट्रंप और मोदी की दोस्ती के बावजूद एकतरफ़ा टैरिफ़ का लगना भारत में तमाम लोगों के लिए धक्का है। ट्रंप ने बाकी देशों पर इतना टैरिफ़ नहीं लगाया, जितना पर लगा दिया. इसलिए यहां एंटी चाइना की तुलना में एंटी अमेरिका सेंटीमेंट कम नहीं हैं।

कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडो-पैसिफ़िक स्टडीज़ के संस्थापक प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा का मानना है कि भारत-चीन के बीच दूरियां कम होने के पीछे अमेरिका एकमात्र फ़ैक्टर नहीं है। चीन की वेबसाइट गुआंचा में छपी  रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत के साथ रिश्तों में नज़दीकी से जो लाभ हुए थे, अब दूसरे कार्यकाल में टैरिफ़ के कारण उन पर असर पड़ सकता है। साथ ही इन बदलावों से कहीं न कहीं चीन को फ़ायदा हो सकता है। जबकि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बीते कुछ सालों में लगातार बढ़ रहा है।

ऐसे में सवाल यह है कि भारत के लिए चीन क्या अमेरिका का विकल्प हो सकता है ? प्रोफ़ेसर महापात्रा का कहना है कि ऐसा कभी नहीं होगा। चीन और पाकिस्तान की दोस्ती में कोई दरार नहीं आएगी, इसलिए चीन कभी अमेरिका की जगह नहीं ले सकता। भारत ने जो मल्टी एलाइनमेंट पॉलिसी अपनाई है, उसी के तहत वह चीन से अपने संबंध सही करने की कोशिश कर रहा है। भारत और चीन के बीच लगातार बातचीत जारी है, लेकिन कई मुद्दों पर अब भी सवाल बने हुए हैं।

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