बीजेपी का हाल : आप जैसे ‘गैरों’ को नसीहत, खुद कराई फजीहत !
दिल्ली के बाद अब पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा विज्ञापनों में करोड़ों रुपये बर्बाद करने के आरोप बीजेपी लगाती रही है। हैरान करने वाला खुलासा, खुद भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार यही सब कुछ
कर रही है।
पांच साल, दस साल, 25 साल, 50 साल या 100 साल पूरे होने पर लोगों को जश्न मनाते आपने देखा या सुना होगा। क्या आपने कभी किसी आयोजन के 23 साल पूरे होने पर जश्न मनाते देखा है ? और क्या, आपने कभी उस पर करोड़ों रुपये खर्च होते देखे हैं ?
पिछले साल गुजरात में ऐसा ही हुआ, जब 7 अक्टूबर, 2024 को गुजरात सरकार के कुछ विज्ञापन सामने आए थे। इनमें एक विज्ञापन था ‘सफल और सक्षम नेतृत्व के 23 वर्ष’ का, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक पद पर 23 वर्ष (पहले गुजरात के सीएम और फिर देश के पीएम के रूप में) पूरे करने पर बधाई दी गई। इसी श्रृंखला में एक अन्य विज्ञापन था ‘विकास सप्ताह-सफल एवं सक्षम नेतृत्व के 23 वर्ष’ का।
गौरतलब है कि बीबीसी ने गुजरात सरकार के सूचना विभाग में आरटीआई के तहत इन विज्ञापनों पर हुए कुल खर्च का ब्यौरा मांगा था। विभाग ने बताया कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और सोशल मीडिया पर इन दोनों विज्ञापनों पर कुल 8,81,01,941 रुपये खर्च किए गए। सियासी और क़ानूनी माहिर ऐसे खर्च को पूरी तरह अनुचित और जनता के पैसों की बर्बादी बता रहे हैं। वहीं, बचाव में बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, अगर ऐसा कोई खर्च हुआ भी है तो उनके ध्यान में आंकडा नहीं है। वैसे सभी सरकारी खर्चों का नियमों के अनुसार ऑडिट किया जाता है। गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता यज्ञेश दवे ने कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
गौरतलब है कि इन विज्ञापनों में सात अक्टूबर, 2024 को गुजरात के एक प्रमुख दैनिक अख़बार में आधे पन्ने का एक विज्ञापन भी शामिल था। जिसमें लिखा था, 23 वर्ष सफल और सक्षम नेतृत्व के। यहां बता दें कि सात अक्टूबर, 2001 को राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के इस्तीफ़े के बाद मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। इस तरह सात अक्टूबर, 2024 को गुजरात के सीएम बतौर मोदी के सार्वजनिक जीवन की यह 23वीं वर्षगांठ थी। इस मौक़े पर, गुजरात सरकार ने अख़बारों में जो विज्ञापन दिया था, इसमें मोदी की उस समय की तस्वीर शामिल थी, जब उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। साथ ही उनकी एक हालिया तस्वीर भी शामिल थी।
विज्ञापन में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक बधाई संदेश भी शामिल किया गया। इसमें प्रधानमंत्री के लिए कई विशेषणों का इस्तेमाल किया गया जैसे, विकसित भारत के स्वप्नदृष्टा, गुजरात के गौरव के प्रकाशपुंज, विकास पुरुष और यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी।
उसी अख़बार में आख़िरी पन्ने पर एक विज्ञापन था, जिसमें बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था ‘विकास सप्ताह’ और ‘23 वर्ष… सफल और सक्षम नेतृत्व के’। इसके अलावा, इसी विज्ञापन में 2001 की मोदी की तस्वीर के साथ लिखा था, भारत के माननीय प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी ने 23 साल पहले सात अक्टूबर 2001 को पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। ऑल इंडिया रेडियो समाचार वेबसाइट के अनुसार, ‘विकास सप्ताह’ के सात दिनों के दौरान गुजरात सरकार द्वारा 3,500 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाएं शुरू की जानी थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ, 2015 के अपने एक फै़सले में सरकारी विज्ञापनों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। इस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलीलें रखी थीं। प्रशांत भूषण ने गुजरात सरकार के इन विज्ञापनो को ‘सत्ता का दुरुपयोग और जनता के पैसों की बर्बादी’ बताया। उनका कहना है, मेरी राय में, केवल प्रधानमंत्री या किसी अन्य व्यक्ति से जुड़े विज्ञापन के लिए जनता के पैसों का इस्तेमाल करना, सत्ता का दुरुपयोग होने के साथ-साथ जनता के पैसों की बर्बादी भी है।
सुप्रीम कोर्ट के फै़सले के बारे में उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार जनहित की किसी भी योजना के विज्ञापन में प्रधानमंत्री की तस्वीर लगा सकती है, लेकिन उस विज्ञापन का उद्देश्य प्रधानमंत्री का विज्ञापन करना नहीं हो सकता।
वहीं गुजरात हाईकोर्ट के वकील आनंद याग्निक ऐसे विज्ञापनों के बारे में कहते हैं, मोदी के सत्ता में आने की यह 23वीं या 24वीं वर्षगांठ है, इसका सरकार की नीतियों से कोई लेना-देना नहीं है. तुष्टिकरण की इस राजनीति में छोटा नेता बड़े नेता को खुश करने की कोशिश कर रहा है। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने गुजरात सरकार के इन विज्ञापनों को कॉमन कॉज़ और सेंटर फ़ॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दायर की गई जनहित याचिका के मामले में सार्वजनिक मामलों पर सरकारी विज्ञापनों के लिए मई 2015 में सर्वोच्च न्यायालय के दिए दिशा-निर्देशों का ‘उल्लंघन’ बताया। वहीं वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई कहते हैं, “राजनीतिक विज्ञापनों और सरकारी विज्ञापनों में फ़र्क़ होता है, लेकिन गुजरात में यह फ़र्क़ धुंधला होता जा रहा है।