मुद्दे की बात : संघ के संविधान पर फिर आपत्तिजनक बयान से बहस !

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इस मुद्दे पर कांग्रेस हो गई बीजेपी-आरएसएस पर हमलावर

कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी और उसके मातृ-संगठन आरएसएस पर संविधान विरोधी होने का इलजाम लगाते रहे हैं। अब एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों पर विवादित बयान है। जिसको लेकर कांग्रेस ने आरएसएस पर निशाना साधा है।

यह मुद्दा फिर सुर्खियों में आ गया और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि संघ व बीजेपी की सोच ही संविधान विरोधी है। कांग्रेस के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा गया, यह बाबा साहेब के संविधान को ख़त्म करने की वो साज़िश है। जो आरएसएस- बीजेपी हमेशा से रचती आई है। इससे पहले होसबाले ने एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था। इन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, बाबा साहेब ने जो संविधान बनाया, उसकी प्रस्तावना में ये शब्द कभी नहीं थे। संविधान पर संघ सरकार्यवाह होसबाले के बयान पर कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रतिक्रिया दी।

कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कहा, आरएसएस ने कभी भी भारतीय संविधान स्वीकार नहीं किया। उसने आंबेडकर, नेहरू और संविधान को तैयार करने में शामिल हर किसी पर  हमला किया। आरएसएस के शब्दों में भारत का संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था। आरएसएस—ीजेपी ने बार-बार एक नए संविधान की बात की है। यह 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में प्रचार का मुद्दा बनाया था। हालांकि लोगों ने इसे ठुकरा दिया था। इसके बावजूद आरएसएस के इकोसिस्टम से संविधान के बुनियादी स्वरूप को बदलने की मांग जारी है।

कांग्रेसी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी लिखा है, आरएसएस और बीजेपी किसी भी कीमत पर संविधान को बदलना क्यों चाहते हैं? कांग्रेस पार्टी का कहना है कि, लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी के नेता खुलकर कह रहे थे कि हमें संविधान बदलने के लिए संसद में 400 से ज्यादा सीटें चाहिए। अब एक बार फिर वे अपनी साजिशों में लग गए। कांग्रेस किसी कीमत पर इनके मंसूबे कामयाब नहीं होने देगी। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक होसबाले का बयान एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। जब इंदिरा-शासन में ये शब्द जोड़े गए और बाद में देसाई सरकार बनी तो उनके सहयोगियों ने कहा कि इन शब्दों को ना हटाएं, क्योंकि इससे फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा होगा। हमारा देश विषमताओं का देश है। जब तक देश में ग़रीब और पिछड़े लोग हैं, तब तक इसका असर है। वहीं, साल 2024 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बीजेपी के कुछ नेताओं के बयानों के बीच यह कहा जाने लगा कि अगर बीजेपी ‘अबकी बार 400 पार’ के नारे को हक़ीक़त में बदल लेती है तो वह संविधान को बदल देगी। उसी दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी चुनावी रैलियों में संविधान की एक किताब के साथ देखे गए।

हालांकि बीजेपी ने कई बार स्पष्टीकरण दिया कि ऐसा करने का उसका कोई इरादा नहीं है। जबकि ऐसे कई मौक़े देखे गए, जब बीजेपी ने संविधान में बड़े बुनियादी बदलाव की मंशा ज़ाहिर की। भारत के संविधान, राष्ट्रध्वज और जाति व्यवस्था पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों की आलोचना अक्सर होती रही है। भारत के संविधान के साथ आरएसएस का रिश्ता काफ़ी जटिल रहा है। आज़ादी के बाद से अब तक अलग-अलग मौक़ों पर संघ ने इन तीनों अहम मुद्दों पर अपने विचार कई बार बदले। मसलन ‘बंच ऑफ़ थॉट्स’ नाम की मशहूर किताब में संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर लिखते हैं, हमारा संविधान भी पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों के विभिन्न अनुच्छेदों का एक बोझिल और विषम संयोजन मात्र है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे हमारा अपना कहा जा सके। संविधान के मुद्दे पर बीजेपी के नेता भी अलग-अलग दौर में अपनी बात करते रहे हैं। 1993 को आंध्र प्रदेश के तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने भी संविधान पर नए सिरे से विचार करने की मांग दोहराई थी। वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने पर संविधान की समीक्षा के लिए एक कमेटी गठित करने का फ़ैसला किया गया था। 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने खुलकर ऐसा कुछ नहीं कहा था, लेकिन उसके कुछ नेताओं ने संविधान बदलने का शिगुफ़ा छेड़ा। बीजेपी को इसका नुक़सान भी हुआ। जबकि प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने अपने कार्यकाल की शुरुआत संविधान को भारत की एकमात्र पवित्र पुस्तक और संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहकर की थी। इसी दौरान संविधान को लेकर संघ ने अपना रुख़ स्पष्ट करने की कोशिश भी की है। 2018 में संघ के मौजूदा सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, यह संविधान हमारे लोगों ने तैयार किया और ये संविधान हमारे देश का कंसेंसस (आम सहमति) है, इसलिए संविधान के अनुशासन का पालन करना सबका कर्त्तव्य है। वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस कहती हैं, मेरे विचार में बीजेपी आरएसएस के पुराने रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है। हालांकि इसमें व्यावहारिक समस्याएं हैं, आप प्रस्तावना को नहीं बदल सकते और इस मुद्दे को कोर्ट में नहीं ले जा सकते।  किदवई भी मानते हैं कि प्रस्तावना में किसी तरह के बदलाव की कोशिश से सुप्रीम कोर्ट से टकराव बढ़ेगा।

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